आंदोलनों और यात्रा के बीच चुनाव का इंतज़ार
देश इस समय अनेक तरह के आंदोलन सड़कों पर देख रहा है;
देश इस समय अनेक तरह के आंदोलन सड़कों पर देख रहा है। इनमें प्रमुख हैं किसानों का आंदोलन और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की बजाय बैलेट पेपर पद्धति से चुनाव कराने की मांग को लेकर होने वाला आंदोलन, जिनमें ज्यादातर वरिष्ठ वकील एवं सिविल सोसायटियां शामिल हैं। दूसरी तरफ राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' अपने समापन की ओर है। वहीं इस समय बड़ी गहमागहमी सुप्रीम कोर्ट के परिसर में भी है जहां इलेक्टोरल बॉन्ड्स को लेकर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को न्यायपालिका के सामने झुकना पड़ा।
चुनावी चंदे के रूप में करोड़ों रुपये एकत्र करने वाली नरेन्द्र मोदी की केन्द्र सरकार एवं भारतीय जनता पार्टी को बचाने की कोशिशों में नाकाम एसबीआई ने आखिरकार केन्द्रीय निर्वाचन आयोग को वह सूची सौंप दी जिसमें बतलाया गया है कि किन 22 हजार से ज्यादा लोगों ने किन दलों को चंदा दिया है। यह सूची आयोग को शुक्रवार को अपनी वेबसाइट पर डालनी है। इसी दिन निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति समेत सम्बन्धित अधिनियम को चुनौती देने वाली एक याचिका पर भी सुप्रीम कोर्ट को उसी दिन सुनवाई करनी है। हालांकि आनन-फानन में केन्द्र सरकार ने दो नये आयुक्तों की नियुक्तियां कर दी हैं।
जो भी हो, साफ है कि अब जब कभी भी आम चुनावों की घोषणा हो सकती है, भाजपा कई-कई मुसीबतों के साथ उसका सामना करेगी। आंदोलनों की बात करें तो जो दो प्रमुख आंदोलन सामने हैं, उनमें पहला तो है किसानों का आंदोलन जो अब शम्भू बॉर्डर पार करता हुआ देश की राजधानी दिल्ली तक आ पहुंचा है। कृषि उत्पादों पर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप न्यूनतम समर्थन मूल्य (सी2 प्लस 50 प्रतिशत का फार्मूला) की मांग को लेकर बुधवार को देश भर के किसान संगठनों ने दिल्ली के जवाहर भवन में बैठक की।
इन किसानों की प्रमुख मांगें इस प्रकार हैं- किसानों की कर्ज माफी, मनरेगा के अंतर्गत मजदूरों को 700 रुपये प्रति दिन के हिसाब से 200 दिनों का काम, जमीन अधिकरण कानून, 2013 के तहत भू अधिग्रहण का फार्मूला तय करना, वन संरक्षण अधिनियम, 2023 को रद्द करना आदि। तय किया गया कि 23 मार्च को देश भर में इन मांगों को लेकर किसान देशव्यापी आंदोलन करेंगे। इसके साथ ही किसान ईवीएम हटाने की भी मांग कर रहे हैं। यही मांग लेकर वकीलों एवं स्वयंसेवी संगठन पहले से ही आंदोलनरत हैं। साफ है कि ऐन चुनाव के पहले इन मांगों को लेकर होने वाले आंदोलनों से भाजपा का परेशान होना लाजिमी है क्योंकि इससे उसके खिलाफ व्यापक जनमत बन रहा है।
किसानों ने 2020-21 में इसे लेकर बड़ा आंदोलन छेड़ा गया था जिसके कारण सरकार को वे तीन कृषि कानून वापस लेने पड़े थे जिनके जरिये मंडी व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त कर देश का कृषि व्यवसाय निजी हाथों में सौंपने की तैयारी मोदी सरकार ने कर रखी थी। आंदोलन वापसी के समय सरकार ने जो आश्वासन किसानों को दिये थे, उन पर अब तक अमल न होने पर किसानों ने 12 फरवरी से यह आंदोलन पुन: शुरू किया है। इस आंदोलन को दबाने के लिये सरकार ने वे सारे उपाय किये, जो उसने पहले वाले आंदोलन के दौरान किये थे। किसान व ईवीएम विरोधी आंदोलन जिस प्रकार से बड़ा रूप ले रहे हैं, उससे भाजपा विरोधी वातावरण बन रहा है।
उधर राहुल गांधी की जो यात्रा 20 मार्च को खत्म हो रही थी, उसे चुनावों के सम्भावित ऐलान के मद्देनज़र 16 मार्च को खत्म किया जा रहा है। यात्रा अंतिम राज्य यानी महाराष्ट्र में है। इस पूरी यात्रा के दौरान गुजरात समेत सारे राज्यों की तरह महाराष्ट्र में भी उसे शानदार प्रतिसाद मिला है। नन्दुरबार, धुले, नासिक, मालेगांव आदि स्थानों में हुई राहुल की यात्रा व सभाओं में लोगों ने बड़ी संख्या में शिरकत की। यात्रा की खासियत यह रही कि राहुल ने खुद की व कांग्रेस की प्रतिबद्धता किसानों के हित के प्रति जतलाई। साथ ही, महिलाओं के लिये 5 सूत्रीय विशेष वादे लोगों को अपील कर सकते हैं। इनमें प्रमुख है हर गरीब महिला को प्रति वर्ष एक लाख रुपये की सहायता राशि प्रदान करना। यह कांग्रेस के काडर पर निर्भर होगा कि वह इन गारंटियों को लोगों तक पहुंचाये। यह घोषणा प्रकारान्तर से पूरे इंडिया गठबन्धन को भी फायदा पहुंचा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट में जहां एक तरफ चुनावी बॉन्ड्स को लेकर लोगों में यह संदेश गया है कि भ्रष्टाचार हटाने के बड़े वादे कर सत्ता में आने वाली मोदी सरकार खुद ही आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई है। जिस प्रकार से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के वकील हरीश साल्वे के माध्यम से पहले सरकार ने दानदाताओं की सूची तैयार करने के लिये चार माह का समय मांगा और कई तरह के बहाने बनाये उससे जनता को यह बात समझ में आ गई है इस मामले में भाजपा व सरकार के हाथ साफ नहीं है क्योंकि यह जानकारी पहले से ही सबके सामने आ चुकी थी कि चंदे का बड़ा हिस्सा भाजपा को ही मिला है। यह राशि इकठ्ठी करने में सरकारी जांच एजेंसियों (ईडी, सीबीआई व आयकर) का भरपूर दुरुपयोग किया गया है। ऐसे ही, निर्वाचन आयोग अधिनियम, 2023 में जो प्रावधान किये गये हैं उनके उद्देश्य इस संवैधानिक संस्था को पूरी तरह से सरकार के हाथ की कठपुतली बनाने के हैं। देखना यह होगा कि चुनावी बॉन्ड्स की तरह क्या शीर्ष न्यायालय इन नियमों के अंतर्गत चुनाव कराने के लिये सरकार को रोकेगा, जैसी कि इनके खिलाफ दायर याचिकाओं में मांग की गई है। उम्मीद है कि शुक्रवार निरंकुश बनने की कोशिशों को बेअसर करने वाला दिन बनेगा।