लोकतंत्र और संविधान की जीत

मंगलवार, 4 जून 2024 का दिन देश के लोकतंत्र और संविधान के लिए बड़ा मंगलकारी साबित हुआ है;

Update: 2024-06-05 00:31 GMT

मंगलवार, 4 जून 2024 का दिन देश के लोकतंत्र और संविधान के लिए बड़ा मंगलकारी साबित हुआ है। सात चरणों में हुए चुनाव के बाद 4 जून को मतगणना हुई जो इन पंक्तियों के लिखे जाने तक जारी ही है। अब तक यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हुआ है कि देश में अगली सरकार किसकी बनेगी और प्रधानमंत्री पद पर कौन बैठेगा। क्योंकि जैसा कि अनुमानित था भाजपानीत एनडीए को इंडिया गठबंधन ने जबरदस्त टक्कर दी। पिछले दो चुनावों में पूर्ण बहुमत हासिल करने वाली भाजपा की सीटें कम हुई हैं और सबसे खास बात यह है कि जिस उत्तर प्रदेश में भाजपा का मजबूत जनाधार था, वहां भाजपा को बड़ी मात मिली है।

श्री मोदी के दिए नारे अबकी बार 4 सौ पार की सच्चाई तो पहले चरण के बाद ही सामने आ गई थी। लेकिन भाजपा फिर भी यह माहौल बनाए हुए थी कि इस बार भी वह आसानी से जीत हासिल कर लेगी और उसके नेतृत्व में एनडीए की सरकार ही बनेगी। सात चरणों के चुनाव पूरे होते ही जो एक्जिट पोल मुख्यधारा के मीडिया यानी तमाम समाचार चैनलों में दिखाए गए, उनमें भी एनडीए की एकतरफा जीत बताई जा रही थी। हालांकि भाजपा और टीवी चैनलों का बनाया माहौल 4 जून को पूरी तरह से ध्वस्त हो गया। आलम ऐसा था कि एक समाचार चैनल में एक्जिट पोल पेश करने वाले सर्वे एजेंसी के मुखिया 4 सौ पार के अपने दावे को पूरा न होते देख फूट-फूट कर रो पड़े।

इन चुनावों ने देश को कुछ बड़े सबक दिए हैं। जिनमें सबसे अहम सबक यह है कि जनता के विवेक को कम करने की भूल किसी को भी नहीं करना चाहिए। नरेन्द्र मोदी ने पहले ही अपने तीसरे कार्यकाल का ऐलान कर दिया था, उसके बाद पूरे चुनाव प्रचार में उन्होंने दस साल की उपलब्धियों और भावी नीतियों के बारे में चर्चा न कर मंगलसूत्र, मुस्लिम लीग, भैंस चोरी और मुजरे की बात की। जनता ने इस रवैये को बिल्कुल नकार दिया। भाजपा के कई नेताओं ने संविधान बदलने के लिए 4 सौ से ज्यादा सीटों को जरूरी बताया था। लेकिन इंडिया गठबंधन ने संविधान को बचाने की जरूरत देश को समझाई और जनता ने इसे समझा भी। यही वजह है कि अयोध्या में भाजपा की हार हुई, यानी राम मंदिर बनाने का दांव काम नहीं आया। इंदौर में भाजपा प्रत्याशी ने सीट तो बचा ली, लेकिन जिस तरह नोटा को ऐतिहासिक वोट मिले, उससे भाजपा को यह संदेश भी मिल गया कि तोड़-फोड़ की राजनीति जनता को स्वीकार्य नहीं है। यह इस चुनाव का दूसरा अहम सबक था। तीसरा सबक नकारात्मक और दमनात्मक राजनीति के खिलाफ मिला। चुनाव शुरु होने से पहले ही प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई और आयकर विभाग की कार्रवाईयां विपक्षी दलों और उनके नेताओं पर शुरु हुईं। कांग्रेस के खाते सीज़ किए गए, इलेक्टोरल बॉंड की जानकारी देने में आनाकानी की गई, चंडीगढ़ मेयर चुनाव में सरेआम धांधली कराई गई। जिन नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोपों पर जांच चल रही थीं, उनमें से कई को भाजपा या एनडीए में शामिल कर लिया गया। इन सारी बातों से भाजपा के खिलाफ जनता में माहौल बना, जो चुनाव परिणाम में नजर आ रहा है। चुनावों का चौथा सबक भारत की ऐतिहासिक विरासत से खिलवाड़ न करने का मिला। इस देश की खासियत गंगा-जमुनी तहजीब है, जिसे पिछले दस सालों में बार-बार कमजोर करने की कोशिशें हुईं। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद को परमात्मा का अंश बताने के अजीबोगरीब बयान देकर अपना ओहदा भगवान के समकक्ष करना चाहा, लेकिन इंसान और इंसानियत के महत्व को नहीं समझा। उनके समेत भाजपा के कई नेता खुल कर अल्पसंख्यकों के खिलाफ बयान देते रहे। माधवी लता जैसे प्रत्याशी ने मस्जिद की ओर तीर चलाने का सांकेतिक कृत्य किया। लेकिन जनता ने उन्हें हरा दिया। चुनावों का पांचवा सबक जनता के दुख दर्द से सरकार की दूरी बनाने के नुकसान के रूप में मिला। लॉकडाउन, मणिपुर, महिला पहलवान, किसान आंदोलन, अग्निवीर, पर्चा लीक जैसे अनेक मुद्दे देश में रहे, जिसमें आम जनता अनेक किस्म की दुश्वारियों में फंसी, लेकिन नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने इन मुद्दों पर जनता के साथ कभी संवेदनशीलता नहीं दिखाई। लिहाजा अब जनता ने अपना जवाब भाजपा को सुना दिया है।

इन चुनावों में देश की जनता ने सही अर्थों में लोकतंत्र और संविधान को बचाने का काम किया है। राहुल गांधी के शब्दों में कहें तो राजनैतिक विवेक का परिचय दिया है। राहुल गांधी ने इस शब्दावली को खास तौर पर उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए इस्तेमाल किया, क्योंकि भाजपा को सबसे अधिक उम्मीदें इसी राज्य से थीं। हालांकि अब उप्र समेत तमाम राज्यों में समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं। दो-दो भारत जोड़ो यात्राएं निकाल कर राहुल गांधी ने देश में एक नये किस्म की राजनैतिक जागरुकता उत्पन्न की थी और उसके बाद विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन ने इस जागरुकता का और प्रसार किया। गठबंधन के तमाम 28 दलों और उनके नेताओं, कार्यकर्ताओं ने अथक मेहनत करके देश में फिर से ऐसा माहौल बना दिया है, जिसमें जनतंत्र की धड़कनें सुनाई दे रही हैं और तानाशाही प्रवृत्ति की विदाई नजर आ रही है।

इंडिया गठबंधन के नेता बुधवार को बैठक करके भावी रणनीति पर विचार करने वाले हैं। इस बीच देश की प्रशासनिक मशीनरी और सबसे बढ़कर चुनाव आयोग के सामने यह चुनौती है कि वह निष्पक्षता और पारदर्शिता से परिपूर्ण फैसले ले, क्योंकि आखिर में यह किसी एक व्यक्ति, एक दल का सवाल नहीं है, पूरे देश के भविष्य का सवाल है। अटल बिहारी बाजपेयी के शब्दों में सरकारें आती-जाती रहेंगी, यह देश बचा रहना चाहिए।

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