उत्तराखंड : कैम्पों में ठहरे मजदूरों में बढ़ी घर जाने की बेचैनी

कोरोना प्रकोप से बचाने के लिए लॉकडाउन का दूसरा चरण शुरू हो गया है।;

Update: 2020-04-15 18:07 GMT

देहरादून | कोरोना प्रकोप से बचाने के लिए लॉकडाउन का दूसरा चरण शुरू हो गया है। ऐसे में उत्तराखंड के राहत कैम्पों में ठहरे प्रवासी मजदूरों में बेचैनी बढ़ गई है। राहत कैम्पों में ठहरे मजदूरों का कहना है कि यहां पर रहने और खाने की समस्या नहीं है। मजदूरों का मानना है कि यहां पर खाली बैठकर क्या फायदा, गांव जाकर जो भी थोड़ी बहुत खेती है उसे करके अपना परिवार चला सकते हैं।

देहरादून में 25 राहत शिविर हैं यहां पर करीब 500 लोग ठहरे हुए हैं। सभी को लग रहा था कि 14 अप्रैल के बाद से लॉकडाउन खुल जाएगा। लेकिन लॉकडाउन नहीं खुला और उनके पास बचे पैसे भी खत्म होने लगे हैं। इन्हें चिंता है कि अब यह अपना परिवार कैसे देखेंगे और उनका खर्च कैसे चल रहा होगा। इसे लेकर मजदूर बेचैन हैं।

आईएएसबीटी के पास राजा राम मोहन राय एकेडमी में ठहरे मुरादाबाद के रामशंकर का कहना है कि सोचा था कि 14 को लॉकडाउन खुल जाएगा। कुछ खेती का काम कर लिया जाएगा। फसल खड़ी है, उसी की चिंता सता रही है।

डीएम आशीष श्रीवास्तव ने बताया, "शिविरों में ठहरे लोगों को अभी वहीं रखा जाएगा। इनके खाने-पीने की व्यवस्था हो रही है। 20 अप्रैल के बाद जो भी गाइडलाइन आएगी उसके अनुसार ही निर्णय लिया जाएगा।"

उत्तरकाशी के रमेश कहते हैं, "जो भी पैसा था वह खर्च हो गया है। घर वालों को पैसा देना है आगे की यात्रा भी करनी है। यही सब परेशानी है। किसी भी तरह घर चलें जाएं तो बेहतर होगा।"

वहीं इसी कैम्प में ठहरे अशोक का कहना है कि बीमारी फैली हुई है घर परिवार की सुरक्षा देखना भी अनिवार्य है।

वहीं हरिद्वार में ठहरे लोग भी घर जाने के लिए बेताब दिखे। वह साइकिल और पैदल ही अपने घर जाने की अनुमति मांग रहे हैं। यहां प्रशासनिक अधिकारी कह रहे हैं कि मजदूरों को घर भिजवाने के लिए शासन से अनुमति मांगी गयी है। बागेश्वर में भी कई लोग फंसे हैं उन्हें भी अपने घर जाने का इंतजार है।

रूड़की के राहत कैम्प में मथुरा के सोहन ने बताया कि गेंहू की फसल खड़ी है। घर पर पत्नी और बच्चे हैं। हमारा पहुंचना बहुत जरूरी है। इसी शिविर में रूके एक अन्य मजदूर का भी कहना कि उन्हें भी कृषि कार्य के लिए जाना बहुत जरूरी है।

मजदूरों की अवाज उठाने वाले चेतना आन्दोलन के सहसंयोजक शंकर गोपाल ने बताया, "प्रवासी मजदूर अपने परिवार को पैसा नहीं भेज पा रहे हैं। उनका परिवार कैसे चलेगा, इसकी उन्हें बहुत चिन्ता है। इसके अलावा जितनी भी केन्द्रीय योजनाओं का लाभ भी राशन काडरें पर मिलता है। उनका राशन कार्ड स्थानीय स्तर का नहीं होगा तो उनको राहत का लाभ नहीं मिल पाएगा। यही सब प्रवासियों की बेचैनी का कारण है।"

Full View

Tags:    

Similar News