जीएसटी पर समीक्षा की फौरी जरूरत
दो दिन पहिले अरुण जेटली ने बयान दिया कि जीएसटी करारोपण स्लेब पर बदलाव करने का विचार चल रहा है। बदलाव यानी कम करने का विचार चल रहा है;
दो दिन पहिले अरुण जेटली ने बयान दिया कि जीएसटी करारोपण स्लेब पर बदलाव करने का विचार चल रहा है। बदलाव यानी कम करने का विचार चल रहा है। जिस जोश खरोश से पूरे जश्न के साथ जीएसटी लागू किया गया वह वाकई अब सरकार के लिए कड़वी घूट साबित हो गई है।
कड़वी दवा की तरह अब न तो पीते बन रही है और न ही फेकते बन रही है। केंद्र सरकार ने अपनी जिस वाहवाही के लिए जीएसटी लाया उससे पसीने छूट रहें हैं। सरकार को इतना बड़ा जोखिम नहीं उठाना था। नोटबंदी और जीएसटी से सरकार का आर्थिर्क ढांचा बहुत बिगड़ चुका है और असंतुलित आर्थिक कार्यक्रम से देश को फायदा नहीं हो पाएगा।
20 सितंबर जीएसटी रिटर्न के लिए अंतिम तिथि दी गई थी किंतु बल्कि देशभर से मात्र 7 लाख लोगों ने रिटर्न भरे वह भी सब खामियों सहित। जीएसटी की जटिलताएं न केवल आर्थिक विकास में बाधक हो रही बल्कि बल्कि वह व्यापार व सीए समुदाय को भयंकर उलझा कर रखी हुई है। इसका असर यह हो रहा है कि बाजार में माल नहीं आ रहा है। यहां तक कि आटा-दाल-चावल जैसे राशन की वस्तुएं भी व्यापारी नहीं भर रहें हैं।
किराना दुकान में अब सामान्य ग्राहक को भी 5 हजार की खरीदी पर 500 रुपये तक जीएसटी चार्ज देना पड़ रहा है। नोटबंदी से करोड़ों व्यवसाय बंद हो चुके और करोड़ों-करोड़ों लोग रोजी रोटी से वंचित हैं। किंतु अफसोस कि केंद्र सरकार इसे अपनी उपलब्धि मान रही है। अब पूरी सख्ती से लागू करने वाले वित्त मंत्री जेटली जी करारोपण स्लेब में दर को कम करने पर मंत्रणा कर रहे हैं। आखिर यह तो सरकार की विफलता हुई। 7 करोड़ में यदि 7 लाख लोग रिटर्न भर रहें तो इससे सरकार को ही जानकारी नहीं मिल पाएगी।
सरकार आखिर कितनों पर पेनाल्टी करेगी या कार्रवाई करेगी या जेल भेजेगी। अभी छत्तीसगढ़ में ही व्यापारी व्यापार बंद करके विरोध करने वाले हैं जिसकी रूपरेखा बन रही है। कुछ जगहों पर व्यापारियों की आत्म हत्याएं भी सुनने को आ रही है। अगर जीएसटी का यही प्रतिसाद रहा तो अब लोगों को सोचने मजबूर होना पड़ेगा कि आखिर इस सरकार का क्या किया जाए? मध्यप्रदेश में शिवराज चौहान सरकार ने बाजार से 7000 करोड़ रुपये उधार लिए हैं। यह दो दिन पहिले का समाचार है। मेरे लिए यह एक सदमें की खबर थी कि अगर सरकार बाजार से उधार ले रही है तो फिर वहां की वित्तीय व्यवस्था की क्या तस्वीर होगी।
इसका एक बदमदिमाग आदमी ङी अनुमान लगा सकता है। शिवराज सिंह को केंद्र से मिलने वाली विभिन्न मदों की राशि नहीं मिल पा रही है इसलिए उनको बाजार का सहारा लेना पड़ रहा है। अगर यह स्थिति है तो फिर यह चित्र म.प्र. की नहीं है फिर पूरे भारत की है। 7000 करोड़ उधार केवल दो माह के अंदर लिए गए। एक साल में 50 हजार करोड़ उधार हो सकता है। अमूमन छत्तीसगढ़ में भी उधार बढ़ा होगा।
यहां कि सरकार भले ही चुप हो पर यह पूरी तरह सच है कि राज्यों की माली हालत खराब है। इसका भाजपा के ही दिग्गज लोग पोल खोलने सामने आ रहे है। यशवंत सिन्हा, उमा भारती, शत्रुहन सिन्हा के बयान तो रोज आ ही रहें है। चाय-पान ठेलों पर भी केंद्र की स्थिति की बाते होने लगी है। ज्यादा समस्या लोगों के छिने रोजगार वापस आने और नए रोजगार सृजन की है। जिसे जीएसटी ने धुंधला दिया है। पूर्व रिजर्व बैंक गवर्नर ने तो पहले ही कहा था कि वे नोटबंदी की इजाजत नहीं देते। लेकिन राजनीतिक विद्वानों ने वित्तीय सलाहकारों और अर्थशास्त्रियों की आंखों पर काला चश्मा चढ़ाकर अपरनी राजनीतिक इच्छा पूरी कर ली।
उसका खामियाजा आखिर जनता को ही भुगतना पड़ेगा। अभी फौरी जरूरत है कि जीएसटी की समीक्षा की जाए और नए ढांचे में बदलाव करके सरल सहूलियत करारोपण का मार्ग अपनाएं। तभी बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाई जा सकेगी।