बांग्लादेश को लेकर संज़ीदगी ज़रूरी
बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के तख्ता पलट के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस देश की अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने को तैयार हैं;
बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के तख्ता पलट के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस देश की अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने को तैयार हैं। मोहम्मद यूनुस को आगे करने का फैसला राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन, आंदोलन के प्रमुख आयोजकों और बांग्लादेश की तीनों सेना प्रमुखों के बीच एक बैठक के बाद लिया गया। इधर बांग्लादेश में शेख हसीना वाजेद के देश छोड़ देने सहित जो घटनाक्रम हो रहे हैं उसे लेकर जहां एक ओर भारत सरकार का कोई साफ बयान नहीं आया है वहीं सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल से दीक्षित ट्रोलबाज अनेक तरह के भ्रम फैला रहे हैं। इससे न केवल भारत की आंतरिक समस्याएं बढ़ेंगी वरन दोनों देशों के बीच दूरियां भी बढ़ेंगी। सबसे बड़ी बात यह है कि इससे इस मसले को समझने में दिक्कत होगी जो बेहद पेंचीदा और केवल बांग्लादेश नहीं वरन भारत के लिये भी संवेदनशील है।
इस मामले को जिस हल्केपन से लिया गया उसकी शुरुआत बांग्लादेश में भारतीय दूतावास के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने यह कहकर लोगों को नाराज़ कर दिया कि 'यह इस देश का अंदरूनी मामला है और इस पर भारत को कुछ नहीं कहना है।' तब मोहम्मद यूनुस ने कहा भी था कि 'जब एक भाई के घर में आग लगी हो तो दूसरा भाई कैसे कह सकता है कि यह दूसरे घर का मामला है?' उल्लेखनीय है कि यूनुस ने बांग्लादेश में ग्रामीण बैंक की स्थापना की है जिसका 64 देशों ने अनुसरण कर करोड़ों लोगों का जीवन बदला है। इस उपक्रम के लिये उन्हें नोबेल पुरस्कार भी दिया गया है। कायदे से जब बांग्लादेश में आरक्षण-विरोधी आंदोलन प्रारम्भ हुआ तभी भारत सरकार के विदेश मंत्रालय को अपना नज़रिया साफ करना चाहिये था। इसके साथ ही दक्षेस (सार्क) देशों के सबसे बड़े व सर्वाधिक प्रभावशाली नेता के रूप में भारत को सहयोग की पेशकश करनी चाहिये थी। यह बात बहुत साफ है कि वहां यदि राजनीतिक अस्थिरता होती है या फिर सैन्य सरकार बनती है तो इसका भी व्यापक और प्रतिकूल असर भारत पर पड़ेगा।
भारत सरकार इस मामले को लेकर कितना संजीदा है, इसका आभास मंगलवार को इस विषय पर हुई सर्वदलीय बैठक में देखने को मिला जिसमें सरकार की ओर से विदेश मंत्री एस. जयशंकर, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण शामिल हुए लेकिन खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अनुपस्थित थे। लोकसभा में 3 और राज्यसभा में 7 सदस्यों वाली आम आदमी पार्टी को आमंत्रित ही नहीं किया गया था। इसका सीधा अर्थ है कि भाजपा सरकार इस अंतरराष्ट्रीय मसले पर आयोजित बैठक में भी सियासत करने की क्षुद्र हरकत से बाज नहीं आई। दूसरी ओर सभी विरोधी दलों ने, चाहे वे प्रतिपक्षी गठबन्धन इंडिया के हिस्से हों या न हों, सरकार को बिना शर्त समर्थन दिया और बतलाया कि सभी दल इस मामले को लेकर सरकार के साथ खड़े हैं।
बांग्लादेश और भारत तकरीबन 4100 किलोमीटर की सीमा को साझा करते हैं। असम (262 किलोमीटर), त्रिपुरा (856 किमी), मिजोरम (318 किमी), मेघालय (443 किमी) और पश्चिम बंगाल (2217) राज्यों के साथ बांग्लादेश की सीमाएं लगी हुई हैं। जिस तरह से वहां के हालात हैं, इन राज्यों पर भी उसका असर हो सकता है। इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ केन्द्र की बैठक होनी चाहिये थी। इनमें सबसे महत्वपूर्ण प. बंगाल है जहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि अगर बांग्लादेश से लोग भागकर उनके राज्य में आते हैं तो उन्हें पनाह दी जायेगी। यह अब तक साफ नहीं है कि अन्य चार राज्यों का रवैया क्या रहेगा। चूंकि यह अंतरराष्ट्रीय मामला है अत: एक जैसी नीति अपनानी होगी। अलग-अलग राज्य वहां से आने वाले लोगों के लिये पृथक नीतियां नहीं अपना सकते।ममता के बयान से बांग्लादेश में थोड़ी नाराज़गी है इसलिये आवश्यक है कि स्वयं केन्द्र सरकार साफ करे कि आने वाले लोगों को लेकर उसका रुख क्या होगा।
इस गम्भीर मामले पर सोशल मीडिया पर अनेक अफवाहें फैलाई जा रही हैं। एक बड़ा वर्ग ऐसा है जिन्हें लगता है कि वहां मुस्लिमों द्वारा अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के लिये यह जनक्रांति हुई है। वहां मंदिर तोड़े जाने की खबरें फैलाई जा रही हैं। इसके विपरीत ऐसी तस्वीरें आ रही हैं कि कई अल्पसंख्यकों के इलाकों तथा मंदिरों की रक्षा में बड़ी संख्या में ढाका विश्वविद्यालय के छात्र और युवा तैनात हैं। लोगों को समझना होगा कि वहां शेख हसीना के खिलाफ इसलिये विद्रोह हुआ है क्योंकि वह भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को प्रश्रय दे रही थीं। इसके अलावा उन्होंने संवैधानिक संस्थानों को कमजोर किया था। पिछले चुनाव में धांधली करने के भी उन पर आरोप लगे हैं। वहां के लोगों का मानना है कि उन्होंने भ्रष्ट तरीकों से चुनाव लड़कर बड़ा बहुमत पाया है अन्यथा बांग्लादेश को उन्होंने सेक्युलर और लोकतांत्रिक बनाये रखने की दिशा में कई कदम उठाये थे। वहां के लोगों का आर्थिक स्तर उठाने में भी उनकी नीति व कार्यक्रमों की सराहना होती है।
केन्द्र सरकार द्वारा उन लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई अपनानी चाहिये जो इस विषय पर झूठ फैला रहे हैं। वहां लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष सरकार जितनी बांग्लादेश के लिये ज़रूरी है उतनी ही भारत के लिये भी। ट्रोल आर्मी के सदस्य जैसे अपने देश में तानाशाह सरकार चाहते हैं वैसे ही वहां भी देखने के इच्छुक हैं- कम से कम उनके विचार तो यही बतला रहे हैं। भारत को वहां एक धर्मनिरपेक्ष तथा लोकतांत्रिक सरकार बनाने में हरसम्भव मदद करनी चाहिये क्योंकि भारत के ज्यादातर पड़ोसियों के साथ सम्बन्ध बिगड़ चुके हैं। उम्मीद है कि मोहम्मद युनूस के नेतृत्व में गठित अंतरिम सरकार लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की नए सिरे से स्थापना कर राजनैतिक स्थिरता और शांति की ओर देश को ले जाएगी।