न नीट, न क्लीन, नियुक्ति भी मलिन!!
बुजुर्गवार कह गए हैं कि इच्छाओं की कोई सीमा नहीं होती, वे लालच से लालसा में परिवर्तित होते हुए हवस तक पहुंचने की सम्भावनाओं से भरी होती हैं;
- बादल सरोज
जऱा भी ढंग से और थोड़े से भी सही तरीके से जांच हुई तो पता चलेगा कि रोशनी हर जगह से काली थी। सुकरात के किसी और प्रसंग में कहे वाक्य में कहें तो भ्रष्टाचारियों का धर्म नहीं होता, विचार जरूर होता है। एक विचार है वामपंथ, इसे इसके विरोधी सत्रह सौ सत्रह बातों के लिए कोसते रहते हैं, मगर इसके धुर विरोधी भी इसे घपले, घोटाले या भ्रष्टाचार के लिए नहीं कोस पाते।
बुजुर्गवार कह गए हैं कि इच्छाओं की कोई सीमा नहीं होती, वे लालच से लालसा में परिवर्तित होते हुए हवस तक पहुंचने की सम्भावनाओं से भरी होती हैं। यह बात इन दिनों हर मामले में नुमायां होती नजर आ रही है। पेपर लीक में अक्खा दुनिया में विश्व गुरु बनने के बाद भी लालसा पूरी नहीं हुई तो अब कुछ उससे भी आगे करने की हवस जहां सोची तक नहीं गयी थी वहां, जिस तरह से होने की आशंका तक नहीं की गयी थी उन तरीकों से किये जा रहे कारनामो में सामने आ रही है; करने वालों की कल्पनाशीलता, हर बार कुछ नया ढूंढने की उनकी उद्यमशीलता नए-नए कीर्तिमान कायम कर रही है। करीब चौथाई करोड़ युवा प्रतियोगियों के जीवन को प्रभावित करने वाला ताजातरीन नीट घोटाला इसकी एक मिसाल है। इसे आखिऱी मानना, घोटाले करने वालों की अन्वेषण और अनुसंधान क्षमताओं का अपमान करना होगा; कुछ वर्ष पहले लिखा याद आया कि ; 'व्यापमं के आगे जहां और भी हैं / अभी ऐसे ही इम्तहां और भी हैं!!'
नीट में हुई चीटिंग से पहले के भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा परीक्षा घोटाला- व्यापम - इस सदी की शुरुआत में 2013 में मध्यप्रदेश में सामने आया। व्यापमं का नाम इसे प्रतियोगी परीक्षा करने वाले संस्थान - व्यवसायिक परीक्षा मंडल- के संक्षिप्तीकरण से मिला। उस साल अलग-अलग परीक्षाओं में कोई 25 लाख परीक्षार्थी बैठे थे - मगर कई तरह से फर्जीवाड़ा करके चुने वे ही गए जिन्होंने एक निश्चित धनराशि नेताओं और अधिकारियों तक पहुंचा दी थी। घोटाले के उजागर होते ही इससे जुड़े, इसकी जानकारी रखने वाले कोई आधा सैकड़ा लोगों की रहस्यमय तरीके से मौत एक अलग ही काण्ड था। सीबीआई की जांच में कुछ भी साबित न होना और सारे संदिग्धों का आज भी खुलेआम आजाद घूमना और भी अलग काण्ड था। जब व्यापम देश में मुहावरा बन गया तो, मौजूदा हुक्मरानों ने उसका नाम बदल दिया- लेकिन सिर्फ नाम ही बदला भर्ती घोटाले जारी रहे। नर्सिंग स्टाफ, स्कूली शिक्षक, कांस्टेबल, पटवारी, और कृषि विस्तार एवं विकास अधिकारियों, जिला सहकारी बैंकों यहां तक कि नगर परिषदों सहित मध्यप्रदेश में ऐसी एक भी भर्ती नहीं हुई जिसमे घोटाले नहीं हुए हों। सभी घोटालों का एक ही पैटर्न था- नीट की तरह एक ही केंद्र से एक साथ दस के दस टॉपर्स का निकलना, कुछ चुनिन्दा परीक्षा केन्द्रों द्वारा कामयाबियों के रिकॉर्ड कायम किया जाना। व्यापम ने इंजन- बोगी की नई उपमाएं और उपमान भी दिए।
यूपी ने शिक्षक, कांस्टेबल, सहकारी बैंकों आदि इत्यादि की सभी भर्तियों में तो घोटाले किये ही, दो कदम आगे बढ़कर विधानसभा और विधान परिषदों की भर्ती का घोटाला यहां तक कि राममन्दिर में जमीन खरीदी घोटाला भी कर दिखाया। पेपर लीक के मामले में तो इन गुजरात मॉडल्स वाले राज्यों ने जैसे जिद ही कर ली कि कोई भी पर्चा बिना लीक हुए छूटना नहीं चाहिए। यूपी ने इसमें भी अपने को बड़ा साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
देखने में भले अलग राज्य हों, अलग परीक्षाएं हों मगर कुछ तो ऐसा है जो इन्हें आपस में जोड़ता है।
वह क्या है यह जानने के लिए ताजा नीट घोटाले से ही शुरू करते हैं। जिन की रहनुमाई और देखरेख में यह घोटाला हुआ उस परीक्षा को कराने वाली नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एन टी ए) के चेयरमैन डॉ प्रदीप जोशी हैं । ये सज्जन पहले मध्यप्रदेश, उसके बाद छत्तीसगढ़ की पी एस सी - प्रतियोगी परीक्षाएं कराने वाली पी एस सी के अध्यक्ष रहे। उनकी काबिलियत इतनी अनोखी थी कि इन दो राज्यों को उपकृत करने के बाद भी उन्हें यू पी एस सी सौंप दी गयी। वहां उनका समय पूरा हुआ या न हुआ, उन्हें अगस्त 2023 में तीन वर्षों के लिए एन टी ए का चेयरमैन बना दिया गया । जोशी जी में आखिर ऐसी असाधारण योग्यता क्या है? इसका पता खुद सरकारी दस्तावेजों से चला। इन्हें जबलपुर के एक कॉलेज के प्रोफेसर से सीधा एमपी पीएससी का अध्यक्ष बनाया गया था तब इनकी नियुक्ति की प्रक्रिया और योग्यता को लेकर पूछी गयी एक आर टी आई में उनकी विशिष्ट योग्यता का प्रमाणपत्र मिला। यह आर एस एस के क्षेत्रीय प्रचारक किन्ही विनोद जी का लिखा पुर्जा था, इस पर्ची में संघ प्रचारक ने लिखा था कि; 'डॉ प्रदीप जोशी एबीवीपी के अध्यक्ष रहे हैं। वर्तमान में रानी दुर्गा विश्वविद्यालय से जुड़े हैं । चाहते हैं संघ लोकसेवा अध्यक्ष बनें। नाम गया है।' पुलिस वेरिफिकेशन में उस जमाने के आई जी ए के सोनी ने 'मुरली मनोहर जोशी और अटल बिहारी वाजपेयी के साथ इनके संपर्क रहे हैं'। लिखकर इस लाइट में थोड़ी सी लाइट और जोड़ दी।
यदि जऱा भी ढंग से और थोड़े से भी सही तरीके से जांच हुई तो पता चलेगा कि रोशनी हर जगह से काली थी। सुकरात के किसी और प्रसंग में कहे वाक्य में कहें तो भ्रष्टाचारियों का धर्म नहीं होता, विचार जरूर होता है।
एक विचार है वामपंथ, इसे इसके विरोधी सत्रह सौ सत्रह बातों के लिए कोसते रहते हैं, मगर इसके धुर विरोधी भी इसे घपले, घोटाले या भ्रष्टाचार के लिए नहीं कोस पाते। यह विचार है जो निजी लोभ, लालच, लालसा, हवस को पास नहीं फटकने देता, जनता के हित जो सबसे ऊपर रखता है। चंद रुपयों की खातिर लाखों छात्र-छात्राओं-प्रतियोगियों के भविष्य को अंधे कुंए में नही धकेलता। दूसरी तरफ एक और विचार है ; जन को हिकारत से देखने वाला घोर दक्षिणपंथी विचार जो न नीट हैं, न क्लीन उनको इस तरह का बनाने वाला यही विचार है। व्यापमं से लेकर नीट, नियुक्ति में फर्जीवाड़े से लेकर पेपर लीक तक यही विचार है जो अपने अंधेरों से, सबसे अधिक युवा आबादी वाले देश की एक नहीं दो दो- तीन तीन पीढिय़ों को भविष्य अनिश्चित और अन्धकारमय बनाने पर आमादा है।
गांधी समझा गए हैं कि पाप से घृणा की जानी चाहिए। उसे गहराई तक दफऩ करके आना चाहिए। व्यापमं से नीट तक की यात्रा के पीछे जो पाप है उसे पहचानना होगा और सबसे पहले तो उसका वह चोगा- धर्म और राष्ट्रवाद का झीना बाना-उतारना होगा जिसे पहनकर वह अपनी पहचान छुपाता है।
(लेखक सम्पादक लोकजतन, संयुक्त सचिव अखिल भारतीय किसान सभा)