राष्ट्रीय युवा दिवस और स्वामी विवेकानंद जयंती : सभी धर्म, एकात्मक धर्म की अभिव्यक्तियां हैं

स्वामी विवेकानंद (1863 -1902 ) एक महान आध्यात्मवादी,राष्ट्रनिर्माता भारतीय संस्कृति के भक्त और नैतिकता के पुजारी थे;

Update: 2024-01-12 03:29 GMT

- डॉ.नवनीत धगट

सभी संतों और दूतों का एक विशिष्ट संदेश होता है। पहले उनके सन्देश सुनने चाहिए फिर उनके जीवन को देखना चाहिए। आप देखेंगे कि उनका संपूर्ण जीवन स्वयं व्याख्यायित एवं प्रकाशवान है। मूर्ख अज्ञानी अपने मतों से आरंभ करके अपने मानसिक विकास के हिसाब के अपने विचारों के हित में व्याख्यायित करते हैं और उन्हें महान गुरुओं से संबंधित बताते हैं। वे इन शिक्षाओं को लेकर गलतफहमियां रखते हैं।

स्वामी विवेकानंद (1863 -1902 ) एक महान आध्यात्मवादी,राष्ट्रनिर्माता भारतीय संस्कृति के भक्त और नैतिकता के पुजारी थे। उन्होंने विश्व मंच पर वेद और वेदान्त की प्रतिष्ठा स्थापित कर संसार को प्रभावित किया। पश्चिम की तुलना में भारत की भाषा,साहित्य, ज्ञान-विज्ञान, इतिहास, संस्कृति और धर्म कहां अधिक समृद्ध एवं उन्नत है उन्होंने यह सिद्ध करने का प्रयास किया। उन्होंने न केवल हिन्दू धर्म दर्शन का प्रचार किया वरन् दुनिया में प्रचलित अन्य धर्मों और मतों के श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों को आदर भाव से चर्चा की।

स्वामी जी ने अपने भाषणों, लिखे पत्रों व लेखों के कुछ हिस्सों में इस्लाम धर्म एवं धर्मावलंबियों की प्रशंसा में विचार व्यक्त किये :
'टर्की का सुल्तान अफ्रीका के बाजार से एक नीग्रो खरीद सकता है, उसे जंजीरों में जकड़ कर टर्की ला सकता है लेकिन यदि वह नीग्रो इस्लाम स्वीकारता है और उसमें पर्याप्त योग्यतायें और क्षमताएं हैं तो वह सुल्तान की बेटी से ब्याह तक कर सकता है। इसकी तुलना नीग्रो अमेरिकियों और भारतीयों की अपने देश में किये जा रहे व्यवहारों से कीजिये। हिन्दू क्या करते हैं? यदि आपकी मिशनरी में से कोई किसी रूढ़िवादी का भोजन छू भी दे तो वह उसे उठाकर फेंक देगा। यदि हमारे महान दर्शन को छोड़ दें तो हमारी व्यवहारगत कमजोरियों को आप देख सकते है। पर दूसरी विचारधाराओं से भिन्न इस्लाम धर्मावलंबियों की खूबियां देखिए, जो रंग और जाति से हटकर समभाव- संपूर्ण समभाव प्रदर्शित करते हैं।'

उक्त विचार स्वामी विवेकानन्द ने 3 फरवरी 1900 को कैलिफोर्निया, अमेरिका में 'विश्व के श्रेष्ठ गुरू' विषयक अपने भाषण में व्यक्त किये। विश्व में हिन्दू दर्शन को प्रतिष्ठा दिलाने में सक्रिय रहे, युग प्रवर्तक विलक्षण विचारक, ओजस्वी प्रखर वक्ता स्वामी विवेकानन्द द्वारा अभिव्यक्त विविध विचारों को व्यापक अर्थों में ग्रहण करने से सहज ही समझा जा सकता है कि स्वामी विवेकानन्द बिना किसी संकोच के विश्व में प्रचलित सभी धर्मों का निष्पक्ष भाव से आदर करते रहे। वे मानव धर्म, सेवा धर्म और मातृभूमि के प्रति उदात्त त्याग भाव से ओतप्रोत थे। विभिन्न धर्मावलंबियों,धर्मगुरुओं के श्रेष्ठ मानवीय गुणों का वे सहज सम्मान करते और बेलाग लपेट उनका आख्यान करते थे। कैलिफोर्निया में दिए उक्त भाषण में ही उन्होंने कहा:

'मुहम्मद साहब समानता के दूत थे। आप कहें उनके धर्म में क्या खूबी है? यदि उसमें खूबियां नहीं है तो वह जीवित कैसे हैं? मात्र अच्छाइयां ही जीवित रहती और चलती हैं। अच्छाई सबल है इसीलिए है। अशुद्ध,अपवित्र व्यक्ति का जीवन आज भी कितना लंबा होता है? नि:संदेह शुद्धता शक्ति है, अच्छाइयां शक्ति हैं। इस्लाम मानने वाले कैसे जीवित हैं, क्या उनकी शिक्षा में कुछ भी अच्छा नहीं है? उनमें ज्यादा अच्छाइयां हैं। मुहम्मद साहब मुसलमानों के भ्रातभाव के प्रवक्ता संत थे।'

सभी संतों और दूतों का एक विशिष्ट संदेश होता है। पहले उनके सन्देश सुनने चाहिए फिर उनके जीवन को देखना चाहिए। आप देखेंगे कि उनका संपूर्ण जीवन स्वयं व्याख्यायित एवं प्रकाशवान है। मूर्ख अज्ञानी अपने मतों से आरंभ करके अपने मानसिक विकास के हिसाब के अपने विचारों के हित में व्याख्यायित करते हैं और उन्हें महान गुरुओं से संबंधित बताते हैं। वे इन शिक्षाओं को लेकर गलतफहमियां रखते हैं। सभी गुरुओं का मात्र जीवन ही उनकी सही टीका है। उनके जीवन को देखिये उन्होंने क्या किया? यही प्रेरणादायी रहेगा।

10 जून 1898 को मोहम्मद सरफ़राज़ हुसैन को लिखे एक पत्र में उन्होंने कहा- मानवता,प्रेम और अद्वैतवाद ही सभी धर्मों का मूल है। अद्वैतवाद समभाव के संबंध में उन्होंने लिखा- 'मेरे अनुभव में इस्लाम और मात्र इस्लाम ही एकमात्र ऐसा धर्म जिसमें समभाव को प्रशंसनीय तरीके से अपनाया।' इसी पत्र में उन्होंने कहा- 'मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं व्यावहारिक इस्लाम के बिना वेदांतवाद के सूत्र चाहे वे कितने ही सार्वजनीन और चमत्कारपूर्ण क्यों न हों मानवमात्र के समग्र हितों के लिए मूल्यहीन हैं। हम मानव को जैसी स्थिति में ले जाना चाहते हैं वैसी स्थिति में मात्र वेद,बाइबिल और कुरान अकेले नहीं ले जा सकते हैं। इसके लिए वेद, बाइबिल और कुरान को समरस करना जरूरी है। सभी धर्म, एकात्मक धर्म की अभिव्यक्तियां हैं जिसे जो मुनासिब मार्ग लगे चुन सकता है। हमारी जन्मभूमि के लिए हिंदुत्व और इस्लाम की दो महान व्यवस्थाओं का सम्मिलन वेदांत मस्तिष्क और इस्लाम शरीर एकमात्र आशा है। मैं अपने अन्त: करण से वेदांत मस्तिष्क और इस्लामी शरीर लिए कांतिवान अजेय सुदृढ़ भारत को इस अस्थिरता से निकाल कर अभ्युदय देखता हूं।'

ईश्वर के प्रति आस्थावान, विश्व के इन दो महान आध्यात्मिक मार्गों पर चलने वाले सभी को साथ ले, समरसता लाकर भारत को विश्व का गुरुतर शक्तिकेंद्र बनाने में सफल हों। विश्व में बढ़ रही विध्वंसक चुनौतियों का सामना विश्वगुरु भारत इसी तरह कर सके।

मेधावी विचारक, दार्शनिक की यह भविष्य दृष्टि, शुभाकांक्षा फलित हो, सर्वशक्तिमान से यही प्रार्थना है ...।

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