ललित सुरजन की कलम से - एकालाप बनाम संवाद

'प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के विचारों को जानने की प्रारंभिक उत्सुकता जन-मन में हो सकती है। नएपन का कौतूहल उसके साथ जुड़ा होता है;

Update: 2024-09-18 07:10 GMT

'प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के विचारों को जानने की प्रारंभिक उत्सुकता जन-मन में हो सकती है। नएपन का कौतूहल उसके साथ जुड़ा होता है। किन्तु यदि संदेश में कोई नई बात न हो, उसमें अगर घिसे-पिटे वायदे ही दोहराए जाएं तो सुनने वाले जल्दी ही उकताने लगेंगे।

यह एक ऐसी सच्चाई है जिस पर सत्ताधीशों के मीडिया प्रबंधकों को ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्हें इसके लिए खासे परिश्रम और कल्पनाशीलता की दरकार होगी कि हर माह वे इस एकालाप में किसी नए रस का संचार कर सकें।

मुझे प्रधानमंत्री जो अपने मन की बात करते हैं उसे लेकर कुछ अधिक शंका होती है। यह तो जनता पिछले कई वर्षों से देख रही है कि नरेन्द्र मोदी को भाषण देना अतिप्रिय है। वे एक सधे हुए अभिनेता की भांति स्वराघातों व भाव मुद्राओं का प्रयोग कर जब कोई बात करते हैं तो श्रोताओं से एक बड़े वर्ग को अपने साथ बहाकर ले जाते हैं। लेकिन यह आश्चर्य की बात है कि उन्हें जनता के साथ संवाद याने दोतरफा बातचीत करते हुए लगभग नहीं के बराबर देखा गया है। वे जब आमसभाएं करते हैं तब श्रोताओं से अपनी बात के समर्थन में हुंकारा

भरवाते हैं, किन्तु याद नहीं आता कि उन्होंने आमने-सामने कभी लोगों से बातचीत की हो। इसका यह अर्थ होता है कि जनता क्या सोच रही है इसे वे अपने प्रत्यक्ष अनुभव से नहीं जान पाते। उनके गुप्तचर जो सूचनाएं देते हैं उनके आधार पर ही वे अपने एकालाप की तैयारी करते होंगे।'

(देशबन्धु में 17 सितम्बर 2015 को प्रकाशित)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2015/09/blog-post_16.html

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