ललित सुरजन की कलम से- भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश
अभी मेरा मानना है कि भारत की जनता को अपने पूर्वाग्रह छोड़कर, नेताओं की बयानबाजी से प्रभावित हुए बिना, खुद अपने विवेक का इस्तेमाल कर, खुले मन से विचार करना चाहिए कि हमारे दीर्घकालीन हित में क्या है और वह कैसे संभव होगा;
'अभी मेरा मानना है कि भारत की जनता को अपने पूर्वाग्रह छोड़कर, नेताओं की बयानबाजी से प्रभावित हुए बिना, खुद अपने विवेक का इस्तेमाल कर, खुले मन से विचार करना चाहिए कि हमारे दीर्घकालीन हित में क्या है और वह कैसे संभव होगा? यदि हम नफरत और अविश्वास की भावना को अपने ऊपर हावी होने देंगे तो उस आंच में झुलसे बिना नहीं रह सकते।
हमें यह सच्चाई स्वीकार करना चाहिए कि बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, म्यांमार- ये सब हमारे पड़ोसी देश हैं। जिस तरह से यहां अच्छे या बुरे, जिम्मेदार या गैरजिम्मेदार, समझदार या सनकी लोग बसते हैं वैसे ही इन देशों में भी बसते हैं। हम अपने पड़ोसियों को नहीं बदल सकते, राजनैतिक सीमाओं को भी मिटा नहीं सकते, लेकिन रहना तो साथ-साथ है।
लड़ें-झगड़ें, मारकाट करें, उससे अंतत: क्या मिलना है। दंगों में आम लोग मारे जाते हैं, लड़ाइयों में सैनिक मरते हैं, लेकिन एक मौत भी अपने आप में एक त्रासदी होती है। एक व्यक्ति के साथ उसका घर-परिवार, नाते-रिश्तेदार, दोस्त, पड़ोसी सब होते हैं। जब अकाल मृत्यु होती है तो वह इन सबको जो न भरने वाले जख्म दे जाती है। जो पीड़ा औरतों और बच्चों को झेलना पड़ती है उसकी कल्पना ही की जा सकती है।
क्या हम इस सबसे बच नहीं सकते?'
(देशबंधु में 15 अगस्त 2018 को प्रकाशित विशेष सम्पादकीय)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2018/08/blog-post_14.html