कैंसर को मात देने में जुटे प्रसिद्ध साहित्यकार, पत्रकार श्याम कश्यप
जाने माने साहित्यकार, पत्रकार और प्रोफेसर श्याम कश्यप ने अपनी लेखन के माध्यम से दुनिया भर में छाप छोड़ी और लोगो को हमेशा जिंदगी के अच्छे पहलुओं को शान से जीने और खराब समय से लडऩे को प्रेरित किया है;
नई दिल्ली। जाने माने साहित्यकार, पत्रकार और प्रोफेसर श्याम कश्यप ने अपनी लेखन के माध्यम से दुनिया भर में छाप छोड़ी और लोगो को हमेशा जिंदगी के अच्छे पहलुओं को शान से जीने और खराब समय से लडऩे को प्रेरित किया है। दुनिया को लडऩे की ताकत देने वाला कलम का यह सिपाही आज अपनी जिंदगी इस पड़ाव में कैंसर जैसे खतरनाक बीमारी को पूरी टक्कर दे रहा है। श्याम कश्यप पिछले करीबन 50 दिन से पटपडगंज के मैक्स अस्पताल में भर्ती हैं और 68 साल की उम्र में उनकी चार सर्जरी हो चुकी हैं फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और समाज के लिए कुछ और अच्छे लेखन देने का दम भरते हैं।
मैक्स अस्पताल के कैंसर विशेषज्ञ डॉ. मुदित अगग्रवाल ने बताया कि 60 दिन पहले जब डॉक्टर ने उनको देखा था तो बोला था कि इनकी स्थिति बहुत खराब है और कुछ दिन ही जीवित रह सकते हैं लेकिन उनकी इच्छाशक्ति, साहस देखकर हम सब लोग भी अचंभित हैं। पंजाब के नवां शहर में 21 नवंबर 1948 को जन्मे श्याम कश्यप ने राजनीति बिज्ञान मे एमए करने के बाद पत्रकारिता एवं जनसंचार मे पीएचडी की फिर दिल्ली विश्वविद्यालय समेत कई राष्ट्रीय यूनिवर्सिटी मे प्रोफेसर भी रहे हैं।
उन्होंने 40 साल से अधिक समय तक प्रिंट और टीवी पत्रकारिता मे सक्रिय रहे और देशबन्धु, दैनिक भास्कर, नई दुनिया, लोकमत समेत कई मीडिया संस्थानो में उच्च पदों पर काम किया है। अपने सक्रिय जीवनकाल में 25 से अधिक पत्रकरिता और साहित्य विषयक पर 25 से अधिक पुस्तके लिखी और प्रकाशित की है जिनमें'गेरू से लिखा हुआ नाम’और 'लहू मे फंसे शब्द’ 'मुठभेड़’ 'साहित्य की समस्याएं’और 'प्रगतिशील दृष्टिकोण’ 'परसाई रचनावली’ 'हिंदी साहित्य का इतिहास’ 'रास्ता इधर है’पहल का फांसीवाद विरोधी विषेशांक इत्यादि प्रमुख हैं।