राहुल की राह पर राजनीति से उम्मीदें
सोनिया गांधी उनकी मां हैं, तो उनके साथ दुलार भरी तस्वीर का आना कोई अनोखी बात नहीं है;
- सर्वमित्रा सुरजन
सोनिया गांधी उनकी मां हैं, तो उनके साथ दुलार भरी तस्वीर का आना कोई अनोखी बात नहीं है, लेकिन पूरे देश में कई महिलाओं की (हर उम्र और वर्ग की) वैसी ही स्नेह भरी तस्वीरें बीते सालों में सामने आई हैं। इसलिए मौजूदा राजनैतिक, सामाजिक परिदृश्य में देश में प्यार, उदारता और कल्याणकारी माहौल बनाने की उम्मीद राजनीति की उस राह पर चलकर ही पूरी हो सकती है, जो गांधीजी की राह है, जो राहुल गांधी की राह है।
देश की जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकारों की पैरोकार शबनम हाशमी ने अपने सोशल मीडिया पर एक तस्वीर पोस्ट की है, जिसमें राहुल गांधी, सोनिया गांधी के कंधे पर हाथ रखकर चल रहे हैं, उनके दूसरे हाथ में एक डलिया है और उन दोनों के साथ उनका पालतू कुत्ता भी घास पर टहल रहा है। इस तस्वीर में राहुल और सोनिया गांधी के बीच प्यार और ममत्व का वही जज्बा नजर आ रहा है, जो किसी भी मां-बेटे के बीच स्वाभाविक तौर पर होता है। शबनम हाशमी ने इस तस्वीर के साथ एक कैप्शन लिखा है, जो काबिले-गौर है। सुश्री हाशमी ने लिखा कि छप्पन इंच की नहीं एक ऐसी छाती चाहिए जिसमे मोहब्बत हो। जो अपनी मां से मोहब्बत करता है वह सब से मोहब्बत करने का जज़्बा रखता है। यह बेहद ही खूबसूरत और नेचुरल फोटो है। और जिनको छप्पन इंच का शौक़ है उनकी फोटो देख कर लगता है ज़बरदस्ती माँ के साथ बैठा दिया है।
इस कैप्शन में 56 इंच की छाती और मां के साथ जबरदस्ती बिठाने वाला तंज किस पर किया गया है, इसके अलग से खुलासे की जरूरत भी नहीं है। क्योंकि अब तो भारत का बच्चा-बच्चा जानता है कि अपने प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में श्री मोदी ने कैसे जन्मदिन या अन्य अवसरों पर अपनी मां के साथ तस्वीरें खिंचाई हैं। कभी वो उनके पैरों में बैठे हैं, कभी उनके हाथ से प्रसाद खा रहे हैं। हिंदुस्तान हो या दुनिया का कोई भी घर, कुछेक अपवादों को छोड़कर मांएं अक्सर अपने बच्चों को ऐसे ही प्यार से दुलारती और खिलाती हैं। इस जज्बात को किसी प्रचार की आवश्यकता कभी नहीं रही। लेकिन नरेन्द्र मोदी अपनी राजनीति को चर्चा में बनाए रखने के लिए कई बार अपनी मां को बीच में ले आए। अमेरिका में उन्होंने इस बात पर आंसू बहाए थे कि उनकी मां को दूसरों के घर बर्तन मांजना पड़ता था। भारत में उन्होंने नोटबंदी के फैसले के बाद एक तस्वीर में दिखाया था कि उनकी मां भी नोट बदलने के लिए कतार में खड़ी हुईं। जबकि वे प्रधानमंत्री की मां हैं, तो उन्हें आम लोगों की तरह कतार में लगने की कोई आवश्यकता नहीं थी। पर ऐसा हुआ, और इसकी बाकायदा तस्वीरें खींची गई, जिसका राजनीतिक मकसद अपने आप जाहिर हो गया। जब श्री मोदी की मां बीमार थी और अस्पताल में आईसीयू में थी, तब वे उनसे मिलने गए और वहां भी उनकी तस्वीरें खींची गईं। इस तरह माता और संतान के बीच के रिश्ते का राजनीतिकरण भी श्री मोदी ने मुमकिन कर दिखाया।
तीन दिन पहले ही रविवार को जब दुनिया भर में मदर्स डे मनाया जा रहा था, तब नरेन्द्र मोदी प.बंगाल में एक सभा कर रहे थे और वहां उन्हें दो लोगों ने उनकी मां के साथ उनका एक चित्र उन्हें भेंट किया। जिस पर आभार प्रकट करते हुए नरेन्द्र मोदी ने कहा कि आज दुनिया मदर्स डे मना रही है, लेकिन भारत में तो हम 365 दिन मां की पूजा करते हैं। दुर्गा, काली और भारत मां की पूजा करते हैं। इसके बाद अपने भाषण में उन्होंने संदेशखाली की घटना का जिक्र छेड़कर टीएमसी पर हमला किया। इस पूरे चुनाव में कई बार नरेन्द्र मोदी नारी शक्ति का जिक्र कर चुके हैं। महिला उत्पीड़न पर विरोधियों को घेर चुके हैं। मगर मणिपुर पर वे कुछ नहीं बोल रहे हैं और बोलेंगे भी नहीं। क्योंकि उनकी अपनी मां हों या मातृ शक्ति, श्री मोदी के लिए वे राजनीति के औजार से अधिक कुछ नहीं हैं। मंगलवार को श्री मेदी ने वाराणसी से अपना नामांकन दाखिल किया। यहां भी 2014 में उन्होंने मां गंगा वाला जुमला उछाल कर लोगों की भावनाओं का दोहन किया था। इस बार उनके नामांकन के एक दिन पहले 13 मई को सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर द प्रोटैगनिस्ट नाम के यूज़र ने पोस्ट लिखी है कि उन्हें पता चला है कि उनकी मां को दो दिन के लिए पुलिस हिरासत में रखा गया है।
क्योंकि नरेन्द्र मोदी वहां नामांकन के लिए आ रहे हैं। इस यूजर ने लिखा है कि मेरी 52 बरस की मां इस कायर के लिए खतरा हैं। बता दें कि इस यूज़र को दो दिनों से अपनी मां के बारे में कुछ पता नहीं चल रहा था और इसकी शिकायत उन्होंने पुलिस में दर्ज कराई थी, लेकिन उन्हें अब खबर मिली अपनी मां के हिरासत में होने की। इस पूरी घटना का कारण और उसका सच शायद कुछ दिनों में बाहर आए, लेकिन नरेन्द्र मोदी देवी शक्ति, मातृ शक्ति की बात क्यों करते हैं और किस तरह उन महिलाओं का अपमान करते हैं, जो उनके विरोध में हैं या विरोधी खेमे में हैं, यह सच अनेक अवसरों पर उनके बयानों से जाहिर हो चुका है।
बहरहाल, शबनम हाशमी ने राहुल और सोनिया गांधी की तस्वीर में नजर आ रहे स्वाभाविक प्रेम और सुंदरता की तारीफ तो की ही है, लेकिन इसके आगे उन्होंने जो कुछ लिखा है, वह आज और प्रासंगिक हो जाता है। शबनम हाशमी ने अपने राजनैतिक रुझान और कांग्रेस के बारे में अंग्रेजी में लिखा है कि 1976 में मैं जब कॉलेज में दाखिल हुई तो पहली राजनैतिक भागीदारी आपातकाल के विरोध में हुई। इसके बाद 1989 में मैंने कांग्रेस से जुड़े गुंडों की वजह से अपने भाई सफदर हाशमी को खोया। लेकिन 2002 के बाद मैंने गुजरात में कांग्रेस को करीब से देखा। राहुल गांधी ने मुझे उम्मीद दी है। हजारों किमी की यात्रा और लाखों लोगों से संवाद के बाद अब राहुल एक बदले हुए व्यक्ति हैं। उन्होंने मुझे उम्मीद दी है कि मानवता से भरे समाज निर्माण का सपना संभव है। उन्होंने साबित कर दिखाया है कि इस समाज से प्यार, कल्याण और उदारता अभी खत्म नहीं हुई है। मैं उम्मीद करती हूं कि देश की सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते, विमर्श, चर्चा और मतभिन्नता को साथ लेकर चलते हुए कांग्रेस राहुल की राह पर आगे बढ़ेगी।
शबनम हाशमी ने पूरी साफगोई से अपनी बात रखी है कि उनका रुझान हमेशा से कांग्रेस की तरफ नहीं था, लेकिन राहुल गांधी में उन्हें उम्मीद दिखाई दे रही है। शायद यही राहुल गांधी की ताकत है। या यह भी कह सकते हैं कि राहुल गांधी ने राजनीति के जिस तरीके को अपनाया है, यह उसकी ताकत है। गांधीजी इसी ताकत के साथ अंग्रेजों से लेकर देश के राजनैतिक दिग्गजों के सामने खड़े होते थे। जिस वजह से उनसे कट्टर मतभिन्नता रखने वाले भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते थे। राहुल गांधी, गांधी नहीं हैं, लेकिन आज के दौर में उन्होंने देश में वही उम्मीद भरी है, जो एक वक्त में गांधी के कारण गुलाम भारत में आम लोगों में भर गई थी।
शबनम हाशमी ही नहीं, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, शरद पवार, लालू प्रसाद जैसे अनेक नेता, जो कांग्रेस या गांधी परिवार से मतभेद रखते थे, राहुल गांधी के लिए स्नेह और आदर प्रदर्शित कर चुके हैं। यह उसी मोहब्बत की दुकान का नतीजा है, जिसे राहुल गांधी पूरे देश में खोलने के लिए पैदल निकल पड़े थे। सोनिया गांधी उनकी मां हैं, तो उनके साथ दुलार भरी तस्वीर का आना कोई अनोखी बात नहीं है, लेकिन पूरे देश में कई महिलाओं की (हर उम्र और वर्ग की) वैसी ही स्नेह भरी तस्वीरें बीते सालों में सामने आई हैं। इसलिए मौजूदा राजनैतिक, सामाजिक परिदृश्य में देश में प्यार, उदारता और कल्याणकारी माहौल बनाने की उम्मीद राजनीति की उस राह पर चलकर ही पूरी हो सकती है, जो गांधीजी की राह है, जो राहुल गांधी की राह है।