राहुल ने तय किया देश का भावी अजेंडा : संविधान वर्सेस मनुस्मृति

जिस संविधान के गौरवशाली 75 साल पूरे होने पर संसद में चर्चा हो रही है उसमें आरक्षण के लिए यह कहीं नहीं लिखा है कि इसका आधार आर्थिक होगा;

Update: 2024-12-16 03:06 GMT

- शकील अख्तर

जिस संविधान के गौरवशाली 75 साल पूरे होने पर संसद में चर्चा हो रही है उसमें आरक्षण के लिए यह कहीं नहीं लिखा है कि इसका आधार आर्थिक होगा। डॉ. आम्बेडकर जिनका नाम यह सबसे ज्यादा लेते हैं मगर जिनकी विशाल प्रतिमा संसद भवन के सामने से पिछवाड़े रखवा दी उन्होंने आरक्षण का आधार सामाजिक बताया था। सदियों से सामाजिक रूप से पिछड़ों को आगे बढ़ने का मौका देने के लिए आरक्षण का प्रावधान रखा था।

आखिर राहुल की पिच पर आ ही गए प्रधानमंत्री मोदी। लोकसभा में संविधान पर हुई चर्चा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के जाति गणना और दलित पिछड़े आदिवासी के आरक्षण की सीमा पचास से ऊपर ले जाने की बात के जवाब में प्रधानमंत्री ने यह कह दिया कि हमने दस प्रतिशत आरक्षण सवर्णों को दिया है।

जिस संविधान के गौरवशाली 75 साल पूरे होने पर संसद में चर्चा हो रही है उसमें आरक्षण के लिए यह कहीं नहीं लिखा है कि इसका आधार आर्थिक होगा। डॉ. आम्बेडकर जिनका नाम यह सबसे ज्यादा लेते हैं मगर जिनकी विशाल प्रतिमा संसद भवन के सामने से पिछवाड़े रखवा दी उन्होंने आरक्षण का आधार सामाजिक बताया था। सदियों से सामाजिक रूप से पिछड़ों को आगे बढ़ने का मौका देने के लिए आरक्षण का प्रावधान रखा था।

प्रतिमा का जो हमने जिक्र किया वह इसलिए कि संसद में संविधान का जब भी जिक्र आता था सबके हाथ अपने आप बाबा साहब आम्बेडकर की प्रतिमा की तरफ देखते हुए जुड़ जाते थे। संसद के मुख्य प्रवेश द्वार से लेकर संसद के बाहर तक से दिखती थी। अगर वहीं मूल जगह होती तो सब सांसद संविधान पर चर्चा में सदन में जाने से पहले बाबा साहब को प्रणाम करके आते। मगर पिछवाड़े है। कोई नहीं गया। बाबा साहब वहीं दूर खड़े एक हाथ में संविधान लिए हंसते रहे कि इसी संविधान पर चर्चा हो रही है ना। मुझे पीछे धकेलकर!

खैर, प्रतिमा को चाहे जहां पुर्नस्थापित कर दो हटा दो बहुत जगह से तो हटा ही दी गईं हैं, तोड़ दी गई हैं लेकिन राहुल गांधी ने डॉ. आम्बेडकर की भावनाओं को अभिव्यक्ति देते हुए बता दिया कि अब लड़ाई सीधे दलित पिछड़े आदिवासियों के अधिकारों की और उन्हें धर्म के नाम पर बरगला कर रोकने वालों के बीच होगी। वही बात जो डॉ. आम्बेडकर कहते थे राहुल ने कही कि मेहनत करने वालों का अंगूठा काट लेते हैं। राहुल का यह भाषण देश को एक दिशा देने वाले भाषणों में शामिल होगा। दलित पिछड़े आदिवासी के अधिकारों की पिछले दस साल से रुक गई लड़ाई को फिर से गति देने के लिए इसे याद किया जाएगा।

राहुल ने साफ शब्दों में कहा कि एकलव्य को अंगूठा इसलिए देना पड़ा था कि वह ऊंची जाति का नहीं था। धर्म तो उसका भी वही था। मगर जाति नहीं थी। धर्म के नाम पर तब भी एक नहीं माना जाता था बल्कि शोषण होता था। आज भी वही हो रहा है। और राहुल ने यह स्पष्ट कर दिया कि इसका आधार मनुस्मृति है। देश में एक संघर्ष था कि आजादी के बाद हम अपनी जनता को क्या दें। एक तरफ संघ के लोग थे जो मनुस्मृति देना चाहते थे। दूसरी तरफ डॉ. आम्बेडकर, नेहरु, सरदार पटेल, मौलाना आजाद थे जो सबको समान अवसर देने वाला संविधान देना चाहते थे।

राहुल ने एक हाथ में संविधान और दूसरे में मनुस्मृति लेकर बता दिया की वह संघर्ष अभी भी जारी है। अब देश के दलित पिछड़ों आदिवासियों, गरीबों, युवाओं, किसानों को चुनना है कि वे किसके साथ हैं। अजेंडा साफ हो गया है। और अगर इसमें कोई कसर रह गई थी तो लोकसभा के नेता प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा के विपक्ष के नेता राहुल गांधी के दलित पिछड़े आदिवासी के अधिकारों की बात के जवाब में सवर्णों के आरक्षण को अपना मुद्दा बताते हुए पूरी कर दी।

अब समझना देश के कमजोर वंचित वर्ग को है कि उसके मुद्दों को कौन उठा रहा है और किसने उन सवालों को रोकने के लिए सवर्ण सशक्तिकरण की बात की। प्रधानमंत्री राहुल की पिच पर आ गए। और यहां उनके लिए बेटिंग करना बहुत मुश्किल है। इसलिए उन्होंने केवल जनता को क्या करना है इसके 11 सूत्र दे दिए। जनता वोट देने के बाद भी सरकार को मजबूत करती रहे यह एक नई बात है। अभी तक तो यह माना जाता था कि वोट लेने के बाद सरकार जनता को मजबूत करती है। उसके हित में काम करती है।

इन्दिरा गांधी ऐसे ही करती थीं। प्रधानमंत्री मोदी ने जो सूत्रों की बात कही है वह इन्दिरा के प्रभाव में ही कही है। नेहरू इन्दिरा थे ही ऐसे। इनके दिमाग में हमेशा हावी रहेंगे। कोसेंगे भी मगर उनकी नकल भी करेंगे। बीस सूत्र इन्दिरा गांधी लाईं थी। मगर उनके बीस सूत्रीय कार्यक्रम में सबसे पहला सूत्र था आवश्यक वस्तुओं की कीमतें कम करना। भूमिहीनों को जमीन देना। कृषि मजदूरों की आय बढ़ाना। युवाओं को रोजगार प्रशिक्षण। मध्यम वर्ग के लिए इनकम टैक्स की दरें कम करना। स्कूली बच्चों की किताबें स्टेशनरी सस्ती करना जैसे कार्यक्रम थे। और इन्हें सख्ती से लागू भी किया गया था।

प्रधानमंत्री मोदी के सूत्रों में क्या है? कर्तव्य पालन, कानून का सम्मान जैसी जनता से मांगें। आम जनता के लिए क्या करना है यह इन्दिरा गांधी के सूत्रों में था। और यहां यह बताया गया है कि जनता को क्या करना चाहिए। संविधान बना इसलिए है कि देश की जनता के लिए अब क्या करना है। उसकी जरूरतों के मुताबिक संशोधन भी हुए। मोदी जी इसे कांग्रेस के मुंह से खून लगना कहते हैं। जनता की बेहतरी के लिए किया गया काम मुंह से खून लगना है! हो सकता वे सही हों। क्योंकि उनके हिसाब से जनता केवल कर्तव्य पालन के लिए बनी है। सरकार की आज्ञा पालक। लेकिन आजादी के आन्दोलन से निकली पार्टी के लिए संविधान का मतलब दूसरा था। जनकल्याण के लिए उसका ज्यादा से ज्यादा उपयोग।

तो देखिए आप जिस के इल्जाम वे नेहरू इन्दिरा पर लगा रहे थे उन्होंने संशोधन क्या किए। पहला जमींदारी उन्मूलन के लिए। जमींदारी उन्मूलन मतलब लाखों जोतने, बोने वालों को जमीन का मलिकाना हक। पहला क्रान्तिकारी काम। प्रसंगवश बता दें कि पाकिस्तान में यह नहीं हुआ। जमीनें जमींदारों के पास हैं और वहां की सत्ता व्यवस्था में जमींदार सबसे अहम हिस्सेदार हैं।

बहुत लंबा हो जाएगा। मगर फिर भी कुछ संशोधनों के बारे बताने की कोशिश करते हैं। भारत को मजबूत बनाने वाले 12 वां संशोधन, गोवा दमन दीव को पुर्तगाल के कब्जे से छुड़ाकर भारत में शामिल करने के लिए। 35 वां और 36 वां संशोधन सिक्किम का भारत में विलय करने के लिए। इस पर वे सवाल उठा रहे हैं। असंवैधानिक बता रहे हैं!

ज्यादा नहीं पर कुछ और बताते हैं। 26 वां। ऐतिहासिक। राजा-रानियों के प्रिवीपर्स प्रिवलेज खत्म करना। वक्त की सुई उलटी घूमा देना। कौन था? किसने किया? वह इन्दिरा गांधी। असली आयरन लेडी। कह रहे हैं एक ही परिवार का शासन रहा। वह तो जनता तय करती है। और असली वोट। मतपत्र से किया। ईवीएम की तरह धोखे का काम नहीं। उस जनता पर सवाल कि एक परिवार को चुना!

खैर! तो जनता ने चुना तो जनता के लिए किया। 61 वां संशोधन राजीव गांधी। मताधिकार की उम्र 21 साल से घटाकर 18 कर दी। युवाओं को सबसे बड़ा तोहफा।
इससे पहले 52 वां संशोधन करके दल बदल विरोधी कानून लागू कर चुके थे। जिसमें विधायकों की थोक खरीद के जरिए नया रास्ता निकाल लिया है। और लास्ट में संशोधन तो मोदी जी ने भी किया। कल इसी का जिक्र करते हुए कहा था कि हमने दस प्रतिशत सवर्णों को आरक्षण दिया। 103 वां संशोधन प्रतिगामी। लड़ाई यहीं साफ हो गई। राहुल की आरक्षण की बात दलित पिछड़ा आदिवासी के लिए 50 प्रतिशत से ऊपर और मोदी जी की बात सवर्ण के आरक्षण के लिए अपनी पीठ ठोकना।
राहुल ने एक हाथ में संविधान लेकर यही कहा कि हम इसके लिए लड़ेंगे। और दूसरे हाथ में मनुस्मृति लेकर बताया कि वे इसके लिए लडें़गे। फैसला दलित आदिवासी पिछड़े को करना है वह किसके साथ है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

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