ललित सुरजन की कलम से- 'आप' की सादगी और अन्य बातें

सादगी की चर्चा करते हुए यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत ने राजनेताओं में ऐसी सादगी पहली बार नहीं देखी है;

Update: 2025-01-07 09:42 GMT

सादगी की चर्चा करते हुए यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत ने राजनेताओं में ऐसी सादगी पहली बार नहीं देखी है। इतिहास में जाने से पहले वर्तमान की बात करें तो दो प्रखर उदाहरण सामने है-त्रिपुरा के माणिक सरकार और पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी। त्रिपुरा में वामपंथी मुख्यमंत्री हैं इसलिए उनका सादा जीवन अस्वाभाविक नहीं है, लेकिन ममता बनर्जी तो कांग्रेस से निकलकर आई हैं।

गो कि कांग्रेस में मध्यप्रदेश की सांसद मीनाक्षी नटराजन जैसे उदाहरण सामने हैं। यदि अरविंद केजरीवाल ने ममता बनर्जी को सादगी से कहीं प्रेरणा ग्रहण की हो तो उन्हें शायद यह भी पता हो कि सूती साड़ी, हवाई चप्पल और रूखे व्यवहार वाली ममता बंगाल की सांस्कृतिक परंपराओं से न सिर्फ सुपरिचित हैं बल्कि वे अपने प्रदेश के लेखकों, कलाकारों व संस्कृतिकर्मियों का हर संभव सम्मान करती हैं। 'ममता' और 'आंधी' जैसी फिल्मों की नायिका अस्सी वर्षीय सुचित्रा सेन ने पिछले तीस साल से अपने आपको बाहरी दुनिया से काट लिया है, लेकिन जब ममता बनर्जी ने उनसे मिलने की इच्छा प्रकट की तो अस्पताल में दाखिल सुचित्रा सेन ने उन्हें मना नहीं किया।

जिन लोगों को इतिहास का ज्ञान नहीं है अथवा जो अपने राजनैतिक विचारों के अनुरूप इतिहास की मनमानी व्याख्या करते हैं, उनकी बात क्या करें; सुधीजन जानते हैं कि स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का अपने शयन कक्ष में एक खड़खड़िया टेबल फैन से काम चल जाता था।

इंदिराजी ने उनको बिना बताए नया पंखा लगा दिया तो उन्होंने उसे लौटा दिया। वे अपने मेहमानों का सत्कार उस समय मिलने वाले अल्प वेतन से नहीं कर पाते थे और इसलिए उन्होंने संसद में अपील की थी कि उनका वेतन कुछ बढ़ा दिया जाए, क्योंकि उनके पास आय का कोई दूसरा जरिया नहीं था। पंडित नेहरू के अनन्य सहयोगी वी.के. कृष्ण मेनन के बारे में भी क्या-क्या नहीं कहा गया, लेकिन लंदन में उच्चायुक्त रहते हुए श्री मेनन अपने दफ्तर की टेबल पर ही सो जाते थे। क्या ये तथ्य जानने में श्री केजरीवाल को कोई दिलचस्पी होगी?

(देशबन्धु में 09 जनवरी 2014 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2014/01/blog-post_9.html

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