फिनटेक क्रांति में बाधा बनती केंद्र सरकार
विवत्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में फिनटेक कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक में सुझाव दिया कि रिजर्व बैंक फिनटेक कंपनियों और स्टार्टअप की चिंताओं को दूर करने के लिए उनके साथ मासिक बैठक करे;
- राहुल लाल
'वित्त' का काम जोखिम और समय से बेहतर तरीके से निपटने के लिए वास्तविक अर्थव्यवस्था की मदद करना है। भारत में वित्त सही रहे,इसके लिए आवश्यकता इस बात की है कि भौगोलिक और वर्ग की विविधता के साथ रहने वाले लोगों के जीवन को सही बनाने के लिए उत्पादों और प्रक्रियाओं पर जोखिम उठाया जाए और नवाचार किया जाए।
विवत्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में फिनटेक कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक में सुझाव दिया कि रिजर्व बैंक फिनटेक कंपनियों और स्टार्टअप की चिंताओं को दूर करने के लिए उनके साथ मासिक बैठक करे। फिनटेक कंपनियां ऐसे क्षेत्रों में काम कर रही हैं, जहां नियमन स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं है। भारत में मौजूदा वित्तीय प्रणाली के कमजोरी को देखते हुए फिनटेक महत्वपूर्ण हो सकते हैं,परंतु केंद्र सरकार की एकाधिकारी प्रवृत्ति से फिनटेक को काफी नुकसान हो रहा है।
इस संपूर्ण मामले को समझने के लिए आवश्यक है कि यह जानें कि आखिर 'फिनटेक' किसे कहते हैं? फिनटेक 'फाइनेंशियल टेक्नालॉजी' का संक्षिप्त रूप है।
वित्तीय कार्यों में प्रोद्योगिकी के उपयोग को फिनटेक कहा जा सकता है। दूसरे शब्दों में, यह पारंपरिक वित्तीय सेवाओं और विभिन्न कंपनियों तथा व्यापार में वित्तीय पहलुओं के प्रबंधन में आधुनिक तकनीक का क्रियान्वयन है। फिनटेक शब्द का प्रयोग उन नई तकनीकों के संदर्भ में किया जाता है,जिनके माध्यम से वित्तीय सेवाओं में सुधार और स्वायत्तता लाने का प्रयास किया जाता है। डिजिटल पेमेंट, डिजिटल ऋ ण,बैंक टेक, इंश्योर टेक, क्रिप्टोकरेंसी आदि फिनटेक के कुछ प्रमुख घटक हैं। हालांकि वर्तमान में फिनटेक के तहत कई अलग-अलग क्षेत्र और उद्योग जैसे -शिक्षा, खुदरा बैंकिंग, निधि जुटाना और गैर लाभकारी कार्य, निवेश प्रबंधन आदि भी शामिल किये जाते हैं।
'वित्त' का काम जोखिम और समय से बेहतर तरीके से निपटने के लिए वास्तविक अर्थव्यवस्था की मदद करना है। भारत में वित्त सही रहे,इसके लिए आवश्यकता इस बात की है कि भौगोलिक और वर्ग की विविधता के साथ रहने वाले लोगों के जीवन को सही बनाने के लिए उत्पादों और प्रक्रियाओं पर जोखिम उठाया जाए और नवाचार किया जाए। यह उस वित्तीय आर्थिक नीति को खारिज करता है, जहां सरकार और उसकी एजेंसियां उत्पादों और प्रक्रियाओं पर विस्तृत नियंत्रण के साथ एक केंद्रीय नियोजन प्रणाली चलाती हैं।
फिनटेक क्षेत्र में नियामकों को एक बारीक संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता होती है और कोशिश होनी चाहिए कि बिना वित्तीय स्थिरता के लक्ष्य से समझौता किए नवाचार को बढ़ावा दिया जा सके। करीब 140 करोड़ की आबादी वाले देश में फिनटेक क्रांति वित्तीय समावेशन का महत्वपूर्ण अंग बन सकती है, लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि इस क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्साहन मिले। नवाचार के माध्यम से ही अत्यंत विविधता वाले अपने देश में वित्तीय प्रणाली को टेक्नालॉजी से जोड़कर आम जन तक पहुंचाया जा सकता है। मौजूदा वित्तीय प्रणाली इसकी विविधता के साथ कदमताल नहीं कर पा रही है। वित्तीय आर्थिक नीति एक केंद्रीय नियोजन प्रणाली के रूप में तैयार की जाती है। उत्पादों, प्रक्रियाओं और सरकार नियंत्रित एकाधिकार ऊपर से थोपा जाता है। इसके बाद विशिष्ट भारतीय शैली के केवाईसी और मनी लॉन्ड्रिंग कानूनों से भी फिनटेक क्षेत्र में नवाचार की गुंजाइश घटती जा रही है। यह सही है कि नियामक भी फिनटेक कारोबार तथा उनसे उत्पन्न होने वाले खतरों को समझने की प्रक्रिया में हैं।
हालांकि नियामक अभी फिनटेक अंशधारकों के साथ नियमित संवाद करता है, लेकिन एक औपचारिक व्यवस्था बन जाने से दोनों पक्षों को लाभ होगा। वित्त मंत्री ने वित्तीय सेवा विभाग से कहा है कि वे फिनटेक और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ एक दिन की कार्यशाला का आयोजन करे,जहां वे अपनी चिंताएं सामने रख सकती हैं। परंतु सरकार के ये प्रयत्न मूलत: खानापूरी वाली बात है। वास्तव में नियामक और सरकार दोनों अगर फिनटेक की चिंताओं को सुनकर नवाचार को बढ़ाने देने के लिए आवश्यक जरूरी समायोजन करें,तो बेहतर होगा। परंतु वर्तमान में इस संदर्भ में भी सरकार के कथनी और करनी में अंतर को देखा जा सकता है।
सरकार ने केंद्रीय वित्त सचिव टी वी सोमनाथन के अधीन एक विशेषज्ञ समिति गठित की है, ताकि 'अपने ग्राहकों को जाने ं(केवाईसी)' मानकों को एकरूप बनाया जा सके। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर केवाईसी मानक एक क्यों हों? विविधता और नवाचार के लिए इसमें भी अलग-अलग स्वरूपों को क्यों नहीं स्वीकार किया जा सकता? क्या इस कमिटी में सरकार ने फिनटेक व नवाचार वाले अन्य क्षेत्र के प्रतिनिधियों को स्थान दिया? सरकार अगर विभिन्न क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व देती और समाधान का प्रयास करती, तो रास्ता निकलता, लेकिन कमिटी के उद्देश्य से ही स्पष्ट है कि नीति निर्माता केंद्रीयकृत व्यवस्था की सोच से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। ग्राहकों को जानने के मानकों में सुधार जरूर होना चाहिए,जिससे वित्तीय सेवा कंपनियों और उपभोक्ताओं दोनों को लाभ होगा। परंतु इसके लिए इसके मानकों को ऐसा होना चाहिए, जो विविधताओं से सामंजस्य स्थापित कर सके।
जब केंद्रीय प्रसंस्करण ईकाइयां सस्ती हो गई और इंटरनेट कनेक्टिविटी का प्रसार हुआ तो 'फिनटेक क्रांति' को लेकर काफी उम्मीदें कायम हो गई। ऐसी सोच थी कि बैंकों का काफी कामकाज नए तरह की टेक्नालॉजी आधारित फर्मों से किया जा सकता है। इन नए फर्मों से उनका कामकाज बेहतर तरीके से हो पाएगा और देश में बैंकिंग का दायरा थोड़ा सिकुड़ता जाएगा। उदाहरण के लिए गूगल जैसी टेक्नालॉजी दिग्गज आसानी से भुगतान कार्य कर सकते हैं, एक ऐसा कारोबार जो कभी बैंकों का आधार था।
भारत के संदर्भ में फिनटेक क्रांति दो दृष्टिकोण से काफी बेहतर है। प्रथम- बैंकिंग भारत में प्रणालीगत जोखिम का स्रोत रहा है और छोटी बैंकिंग प्रणाली स्थिरता को बढ़ाती है। दूसरा—मौजूदा बैंक नवाचार और ग्राहक सेवा के मामलों में कमजोर हैं। ऐसे में फिनटेक टेक्नालॉजी और नवाचार के माध्यम से हमारे अर्थव्यवस्था के आधार बन सकते हैं। हमारे नीति निर्माताओं ने पिछले 10 वर्षों में केंद्रीय नियोजन प्रणाली का चयन कर फिनटेक को स्वस्थ प्रतिस्पर्धा में भाग नहीं लेने दिया। नीति नियंता चाहते हैं कि 'फिनटेक कंपनियां' बैंकों की सेवा प्रदाता बनकर ही रहें। भारतीय बैंकिंग के अफसरशाही चरित्र और बैंकिंग में उत्पादों एवं प्रक्रियाओं पर सरकारी नियंत्रण की वजह से भारत में बैंक संरचनात्मक रूप से खोज की प्रक्रिया में जुड़ने में अक्षम ही हैं। भारतीय गैर बैंकिंग कंपनियां समय और जोखिम की ऐसी समस्याओं को समाधान करने में बेहतर तरीके से उभरी हैं। यहां नए फिनटेक कंपनियों की भूमिका हो सकती थी। परंतु एनबीएफसी के फंडिंग समस्याओं से फिनटेक भी प्रभावित हुआ। भारतीय बॉन्ड बाजार की सीमाएं एनबीएफसी के वित्त पोषण के रास्ते में अड़चन हैं। आमतौर पर नीति नियंताओं ने एनबीएफसी की कीमत पर बैंकों को प्रोत्साहन दिया है।
वर्तमान में देश में सक्रिय 'सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्यमों' के अस्तित्व के लिए पूंजी का अभाव सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है। ऐसे में एमएसएमई क्षेत्र में फिनटेक की भूमिकाक्रांतिकारी हो सकती थी,जो उनके पूंजी की कमी को दूर कर सकती थी। कई फिनटेक स्टार्टअप द्वारा आसान और त्वरित ऋ ण उपलब्ध कराए जाने पर लघु उद्योगों को बैंकिंग जटिलताओं से मुक्ति मिल सकती है। परंतु वर्तमान में फिनटेक ही पूंजी की समस्या से ग्रस्त है।
क्या फिनटेक कंपनियों ने रिजर्व बैंक के समक्ष चुनौती उत्पन्न की है? यह चुनौती मूलत: बदलते टेक्नालॉजी के साथ स्वाभाविक है। कुछ फिनटेक कंपनियों ने यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस की मदद से भुगतान को सुगम बनाया है। वहीं बड़ी संख्या में ऐसी कंपनियां बैकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों से ऋ ण को सुगम बना रही है। इसके परिणामस्वरूप उपभोक्ता ऋ ण बहुत बढ़ गया। इस संदर्भ में रिजर्व बैंक ने गत नवंबर में उपभोक्ता ऋ ण का जोखिम भार बढ़ा दिया। इसके पीछे विचार था असुरक्षित ऋ ण वृद्धि की गति को धीमा करना। अब समय आ गया है कि नियामक भी अपने कार्यशैली में समयानुसार परिवतर्न लाएं। उनके नियंत्रण शैली में केंद्रीयकरण न हो तथा नवाचार का प्रयोग उन्हें भी करने की जरूरत है।
रिजर्व बैंक ने एल्गोरिदम आधारित ऋ ण में इजाफे को लेकर भी चिंता जताई है। अगर बिना समुचित जांच-परख के उपभोक्ता ऋण बढ़ाता है, तो इससे बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों दोनों को दिक्कत हो सकती है। यह देखा गया है कि कुछ उपभोक्ता एक से अधिक प्लेटफार्म से ऋ ण लेने में सक्षम हैं। हालांकि यह संभव है कि फिनटेक उन उपभोक्ताओं तक पहुंच रही हों, जो औपचारिक ऋ ण बाजार से बाहर हैं, लेकिन फिर भी तब तक सावधानी बरतना आवश्यक है जब तक कि इस पूरी प्रणाली और संभावित निष्कर्षों को अच्छी तरह समझ नहीं लिया जाता है। नवाचार और वृद्धि अनुमानों में संतुलन होना चाहिए, जिससे वित्तीय स्थिरता को मजबूती मिल सके। वित्त सभी उद्यमों में सबसे अहम है। यह अर्थव्यवस्था का मस्तिष्क है। फिनटेक क्रांति भारत के लिए काफी कुछ कर सकती है। लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि वित्तीय आर्थिक नीति की मौजूदा केंद्रीकृत व्यवस्था में बदलाव किया जाए।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार व आर्थिक मामलों के जानकार हैं)