जातिगत जनगणना : आगे की राह?
केन्द्र सरकार ने आखिरकार जातिगत जनगणना कराना स्वीकार कर लिया है। बुधवार को हुई कैबिनेट बैठक में नरेन्द्र मोदी सरकार ने ऐलान किया कि जनगणना के जरिये सरकार लोगों की जातिवार संख्या भी जुटायेगी;
केन्द्र सरकार ने आखिरकार जातिगत जनगणना कराना स्वीकार कर लिया है। बुधवार को हुई कैबिनेट बैठक में नरेन्द्र मोदी सरकार ने ऐलान किया कि जनगणना के जरिये सरकार लोगों की जातिवार संख्या भी जुटायेगी। हालांकि इसकी घोषणा करते हुए कैबिनेट ने यह नहीं बताया कि यह काम कब शुरू होगा। विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस ने यह मांग पिछले लगभग दो वर्षों से जोर-शोर से उठाई हुई थी जिसमें उसके नेतृत्व में बने इंडिया गठबन्धन ने भी अपना स्वर मिलाया है। इस मांग के कारण लगभग हाशिये पर जा चुकी कांग्रेस को भारतीय राजनीति में बड़े पैमाने पर लौटने का मौका मिला था। संविधान की रक्षा का जो नारा कांग्रेस समेत उसके सहयोगी प्रतिपक्षी दलों ने दिया था, उसने 2024 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के संख्या बल को 2019 के मुकाबले काफी घटाया था। 2024 के प्रारम्भ में हुई राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' की थीम भी जातिगत जनगणना की मांग को तर्कसंगत व ज़रूरी बताती थी।
इस मांग को राहुल ने सड़कों पर बड़े पैमाने पर उठाया था। उन्होंने बार-बार यह बात कही थी कि देश में दलितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों, आदिवासियों आदि की संख्या सर्वाधिक है परन्तु संसाधनों एवं अवसरों में उनकी हिस्सेदारी बहुत कम है। यह एक तरह से कांशीराम की उठाई वह मांग है जिसमें वे कहते थे कि 'जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी।' कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करते राहुल को इस मांग को उठाते हुए कोई उज़र नहीं था कि यह बहुजन नेता की बात की ही प्रतिध्वनि है जिसकी वारिस मायावती इस मामले पर चुप्पी साधे हुई हैं। वे लोगों को अपने भाषणों में बतलाते रहे हैं कि केन्द्रीय सचिवालय में केवल 5 ही सचिव स्तर के ऐसे अधिकारी हैं जो ओबीसी हैं। राहुल यह भी बतलाते रहे कि बजट के पांच प्रतिशत पर ही इनका नियंत्रण है। इसलिये ओबीसी, दलितों आदि के साथ न्याय नहीं होता।
उनके द्वारा संसद में भी यह मुद्दा जोरदार ढंग से उठाया गया जिसे इंडिया के सहयोगियों, विशेष रूप से समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल का जबर्दस्त साथ मिला। राहुल ने वर्तमान लोकसभा के प्रारम्भिक सत्रों में चेताया था कि विपक्ष सरकार से जाति आधारित जनगणना करा कर रहेगा। राहुल का कहना था कि 'भाजपा सरकार इस मांग को पूरा नहीं करेगी तो इंडिया सरकार करेगी।' भाजपा की पूरी राजनीति ही इसके विपरीत है- सवर्णों को बल देने वाली। इसे लेकर राहुल का न केवल मज़ाक उड़ाया गया वरन उन्हें अपमानित भी किया गया था। पूर्व मंत्री अनुराग ठाकुर ने उन पर तंज कसा था कि, 'जिन्हें अपनी जाति का पता नहीं वे जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं।' भाजपा तथा उसके सहयोगी एनडीए के सांसदों ने इसका भरपूर लुत्फ़ उठाया था; परन्तु अब सरकार के इस एकतरफ़ा निर्णय से वे हैरान हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि जनता को इस बात का क्या जवाब दें कि आखिर उनकी पार्टी की सरकार ने यह फैसला क्योंकर लिया जो अब तक इसकी विरोधी थी। फैसले की हां में हां मिलाने के अलावा जिन पार्टी सदस्यों, समर्थकों, नेताओं, विधायकों व सांसदों के पास और कोई चारा नहीं है वे यह कहकर इसे 'मोदी का मास्टरस्ट्रोक' साबित करने पर तुले हैं कि 'इस फैसले ने राहुल, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव के हाथ से बड़ा मुद्दा छीन लिया है।'
इस निर्णय के परिप्रेक्ष्य में कुछ सवाल सामने आ रहे हैं। पहला यह कि नीतिगत विरोध के बावजूद भाजपा की क्या मजबूरी रही कि उसे यह फैसला लेना पड़ा? कुछ का कहना है कि पहलगाम के मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिये भाजपा ने यह कदम उठाया है ताकि कश्मीर के मुद्दे पर उसकी विफलता ढंक जाये। यह भी कहा जाता है कि सरकार दुनिया को संदेश देना चाहती है कि आतंकी हमले के बावजूद सरकार देश के अंदरूनी मसलों पर ध्यान बनाये हुए है। यानी देश का एक निर्भीक व अविचलित चेहरा वह दुनिया को दिखाना चाहती है। इस बड़े फैसले से दुनिया महसूस करे कि पहलगाम की घटना के बावजूद न घबराहट है, न बदहवासी- चाहे युद्ध की आशंका बन चुकी हो। यह भी माना जाता है कि बिहार में भाजपा इस मुद्दे को आगे बढ़ायेगी। वह केवल कांग्रेस तथा उसके साथी राजद व सीपीएम (माले) से ही नहीं, अपने सहयोगी नीतीश कुमार (जनता दल यूनाइटेड) से भी यह मुद्दा छीनना चाहती है। उस राज्य में खुद के बूते सरकार बनाने पर भाजपा आमादा है जहां इसी साल सितम्बर के बाद चुनाव होंगे।
दूसरा सवाल यह है कि इस मुद्दे को लेकर विपक्ष, विशेषत: कांग्रेस की आगे की राह क्या हो? कांग्रेस को इस बात से खुश होकर नहीं रह जाना चाहिये कि सरकार को यह निर्णय लेने हेतु मजबूर करने से उसकी नैतिक जीत हुई है। उससे बात नहीं बनेगी। इसके बल पर उसे चुनाव भी जीतने होंगे। बिहार का चुनाव उसकी पहली परीक्षा होगी जहां से इस मांग की शुरुआत हुई थी। इस मुद्दे पर यहां कांग्रेस-राजद की जीत देश के लिये परिवर्तनकारी होगी। राहुल ने आरक्षण की 50 फीसदी की दीवार को तोड़ने का भी भरोसा जताया है। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस के पास इसका मॉडल पहले से है क्योंकि तेलंगाना व कर्नाटक में उसकी सरकारों ने जनगणना कराई है तथा बिहार में जेडीयू व कांग्रेस सरकार के समय यह काम हुआ था। राहुल को देश भर में यह संदेश देना होगा कि जातिगत जनगणना के फैसले पर कांग्रेस-इंडिया का पहला हक बनता है।