तमिलनाडु, बिहार के बीच दरार की कोशिश
सोशल मीडिया के जरिए गलत खबरों का प्रसार खतरनाक होता जा रहा है;
सोशल मीडिया के जरिए गलत खबरों का प्रसार खतरनाक होता जा रहा है। हाल ही में इसका उदाहरण तमिलनाडु से सामने आया। पिछले कुछ दिनों से बहुत से लोगों ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर इस बात पर चिंता व्यक्त की कि बिहार के प्रवासी मजदूरों को तमिलनाडु में प्रताड़ित किया जा रहा है। दरअसल सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक व्यक्ति ट्रेन के भीड़ भरे डिब्बे में हिंदी बोलने वाले प्रवासी मजदूरों को मौखिक और शारीरिक तौर प्रताड़ित करता नजर आया।
यह व्यक्ति प्रवासन के कारण तमिलनाडु के मूल निवासियों के लिए नौकरी के अवसरों के कम होने के बारे में बात करता है और मजदूरों को घूंसे एवं थप्पड़ मारता है। रेलवे पुलिस ने आरोपी की पहचान कर उसे गिरफ्तार भी कर लिया। लेकिन इसके बाद तमिलनाडु में प्रवासी मजदूरों पर हमलों के संबंध में भ्रामक सूचनाएं फैलने लगीं। कई भ्रामक रिपोर्ट के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बताया कि उन्होंने बिहार पुलिस से मामले पर नजर रखने कहा है।
बिहार प्रशासन की एक टीम तमिलनाडु भी पहुंची ताकि स्थिति का आकलन कर सके। खबरें फैलाई गईं थी कि बिहार के ज्यादातर मजदूर समस्याओं के कारण तमिलनाडु से जा रहे हैं। लेकिन बिहार के अधिकारियों के मुताबिक अधिकतर लोग होली के लिए घर जा रहे हैं। तमिलनाडु के पुलिस महानिदेशक सिलेंद्र बाबू ने बिहार के डीजीपी को बताया कि ऐसी कोई हिंसा नहीं हो रही है।
बिहार के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के मुताबिक कुछ पुराने व्यक्तिगत विवादों के वीडियो शूट किए गए थे और यह कहते हुए पोस्ट किए गए थे कि यह बिहार के लोगों के खिलाफ हैं। तमिलनाडु पुलिस कड़ी कार्रवाई कर रही है और तमिलनाडु में बिहारी लोगों को सुरक्षा प्रदान कर रही है। इस बीच तमिलनाडु प्रशासन 30,000 प्रवासी श्रमिकों या अतिथि श्रमिकों तक पहुंच बना रहा है। कुल मिलाकर हालात सामान्य हैं। लेकिन सोशल मीडिया पर फैली इस खबर ने तनाव तो पैदा कर ही दिया था।
एक राष्ट्रीय अखबार ने खबर दी कि 15 बिहारी प्रवासी मजदूरों ने जान से मारने की धमकी मिलने का दावा किया है। यहां तक आरोप लगाया था कि केवल हिंदी बोलने के चलते बिहार के कामगार तमिलनाडु में 'तालिबान जैसे' हमलों का सामना कर रहे हैं। ट्विटर पर भी कुछ लोगों ने ऐसी ही सूचनाएं डालीं। जिसके बाद तमिलनाडु पुलिस ने कुछ लोगों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153ए (विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना), 505 (आई)(बी) (जनता में भय पैदा करने का मकसद) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 56(डी) के तहत आरोप लगाए हैं।
इसके अलावा तमिलनाडु पुलिस ने रविवार को राज्य में उत्तर भारत के प्रवासी कामगारों पर हमले के बारे में अफवाह फैलाने के बाद कथित तौर पर हिंसा भड़काने और दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के लिए राज्य के भाजपा अध्यक्ष के. अन्नामलाई पर भी केस दर्ज किया है। केस दर्ज होने के बाद के. अन्नामलाई ने एक ट्वीट में डीएमके को अगले 24 घंटों के भीतर उन्हें गिरफ्तार करने की चुनौती दी। भाजपा नेता ने कहा कि आपको लगता है कि आप झूठे मामले दर्ज कर लोकतंत्र को दबा सकते हैं। मैं आपको 24 घंटे का समय देता हूं, मुझे छूने की हिम्मत करके दिखाओ।
अगर इस तरह चुनौतियों से कानून व्यवस्था चले तो वह किस हाल में पहुंचेगी, यह समझा जा सकता है। बहरहाल, यहां मसला ये नहीं है कि तमिलनाडु के भाजपा अध्यक्ष को छूने की हिम्मत सरकार किस तरह दिखाती है। मसला ये है कि किस तरह बिना पुष्टि के गलत खबर को प्रसारित करने के कारण न केवल हालात संवेदनशील बन गए, बल्कि दो राज्यों के बीच टकराव की गुंजाइश भी बन गई। ये तो अच्छी बात है कि बिहार पुलिस और तमिलनाडु पुलिस ने सूचनाओं को साझा कर, एक-दूसरे के साथ सहयोग कर सच्चाई का खुलासा किया।
लेकिन अगर यह गलतफहमी बनी रहती तो स्थिति मुश्किल हो सकती थी। कश्मीर, असम, महाराष्ट्र ऐसे कई राज्यों में प्रवासी मजदूरों के साथ या भाषा के नाम पर हिंसा अतीत में हो चुकी है। मजदूर तो रोटी की जुबान ही जानते हैं और रोजगार की तलाश में देश के एक कोने से दूसरे कोने तक भटकते हुए, जहां काम मिल जाए, वही उनका घर बन जाता है। अगर सरकारें चुनावी घोषणापत्र के अलावा भी रोजगार के मुद्दे पर गंभीरता से बात करें, तो फिर अपनी जमीन से उखड़ कर दूसरी जगह रोजगार के लिए किसी को नहीं जाना पड़े। सरकारों की नाकामियों का बोझ मजदूर उठाते हैं और सोशल मीडिया पर फैलाई गई भ्रामक खबरें भी उनके पेट पर लात ही साबित होंगी।
तमिलनाडु और बिहार के बीच विवाद बनते-बनते रह गया। दोनों ही राज्यों में गैर भाजपाई सरकारें हैं और सत्तारुढ़ गठबंधन में कांग्रेस छोटे भागीदार के तौर पर शामिल है। 2024 में भाजपा के खिलाफ जो संभावित गठबंधन कांग्रेस के नेतृत्व में बन सकता है, उसमें जदयू, राजद, द्रमुक सभी के साथ आने की संभावना है। ऐसे में इन दोनों राज्यों के बीच तनाव कायम करने की कोशिश का 2024 के चुनावों से भी कोई संबंध हो सकता है क्या, इस पर विचार करना चाहिए। वैसे यह संयोग ही है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाय.चंद्रचूड़ ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा था कि आज हम एक ऐसे युग में रहते हैं, जहां लोगों में धैर्य और सहिष्णुता की कमी है, क्योंकि वे ऐसे नजरिये को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं, जो उनके नजरिये से अलग हो। झूठी खबरों के दौर में सच शिकार बन गया है। सोशल मीडिया के प्रसार के साथ ही जो कुछ भी एक बीज के रूप में कहा जाता है, वह असल में एक पूरे सिद्धांत में अंकुरित हो जाता है, जिसका कभी तर्कसंगत विज्ञान की कसौटी पर परीक्षण नहीं किया जा सकता है।
इधर मुख्य न्यायाधीश सच के शिकार बनने के खतरे के बारे में बता रहे थे और उधर सच सोशल मीडिया पर झूठ का शिकार बन रहा था। वैसे तो केंद्र सरकार ने भी बीते समय में फेक न्यूज पर सख्ती बरतने के उपाय किए हैं। लेकिन फिर भी सोशल मीडिया पर झूठ का जो खुला खेल खेला जा रहा है, उस पर लगाम नहीं लग रही है।