ललित सुरजन की कलम से - देशबन्धु : चौथा खंभा बनने से इंकार- 13
'सबको पता है कि पी वी नरसिंह राव ने 1991 में न सिर्फ लोकसभा चुनाव लड़ने से मना कर दिया था;
'सबको पता है कि पी वी नरसिंह राव ने 1991 में न सिर्फ लोकसभा चुनाव लड़ने से मना कर दिया था, बल्कि वे अपना साजो-सामान समेट कर आंध्र प्रदेश वापस लौट चुके थे। यह अभी तक रहस्य के आवरण में है कि वे क्यों कर दिल्ली लौटे?
कांग्रेस के सामने ऐसी क्या मजबूरी थी कि राजनीति से सन्यास ले चुके वयोवृद्ध नेता को प्रधानमंत्री पद पर आसीन किया? इसके अलावा डॉ. मनमोहन सिंह क्यों वित्तमंत्री के पद पर लाए गए? और सिर्फ इतना ही नहीं हुआ।
सदन के नेता अर्जुनसिंह को प्रथम पंक्ति से हटा दूसरी पंक्ति में भेज एक तरह से अपमानित किया गया। इसके बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी में सर्वाधिक मतों से जीतकर आए तीन नेताओं अर्जुनसिंह, शरद पवार व ए के अंथोनी के इस्तीफे लेकर उन्हें मनोनीत सदस्यों की श्रेणी में डाल दिया गया।
अर्जुनसिंह ने यह पहला मौका खोया। उनके हाथ से दूसरा मौका तब फिसला जब बाबरी मस्जिद प्रकरण में श्री राव की संदिग्ध भूमिका के बाद श्री सिंह ने उनके खिलाफ बगावत की ठानी, लेकिन अपने ही दो विश्वस्त युवा शिष्यों द्वारा साथ न देने के कारण वे अलग-थलग पड़ गए और नौबत यहां तक आई कि उन्हें पार्टी छोड़ना पड़ी।'
(देशबन्धु में 3 सितंबर 2020 को प्रकाशित)
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