पाकिस्तान को माकूल जवाब
मंगलवार-बुधवार की दरमियानी रात को भारतीय सेना ने बेहद पेशेवराना अंदाज़ में पाकिस्तान की जमीन पर चल रहे आतंकियों के 9 ठिकानों को उड़ाकर रख दिया;
मंगलवार-बुधवार की दरमियानी रात को भारतीय सेना ने बेहद पेशेवराना अंदाज़ में पाकिस्तान की जमीन पर चल रहे आतंकियों के 9 ठिकानों को उड़ाकर रख दिया। बड़ी संख्या में दहशतगर्दों को मौत की नींद सुलाने वाले 'ऑपरेशन सिंदूर' के जरिये उन निर्दोषों को न्याय दिया गया जो कश्मीर के पहलगाम स्थित बैसरन घाटी में आतंकवादियों द्वारा की गयी अंधाधुंध फायरिंग में मारे गये थे। उस कायराना और अमानवीय आतंकी कार्रवाई में कई सुहाग उजड़े थे। सम्भवत: इसीलिये इस ऑपरेशन को 'सिंदूर' नाम दिया गया। सेना ने यह कार्रवाई बुधवार तड़के में और बुधवार शाम को ही युद्धाभ्यास के रूप में भारत 244 जिलों में अपने नागरिकों को बचाने के लिये सामूहिक मॉक ड्रिल करने जा रहा था। बुधवार की शाम को यह सफलतापूर्वक किया भी गया।
भारतीय सैन्य अधिकारियों ने इस पूरे ऑपरेशन का विवरण देते हुए सुबह दिल्ली में बुलाई एक प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि पड़ोसी मुल्क के किसी भी सैन्य प्रतिष्ठान को निशाना नहीं बनाया गया और तब तक किसी भी नागरिक के मारे जाने की खबर नहीं थी। हालांकि आतंकी मसूद अजहर के परिवार के 10 लोगों के मारे जाने की खबर खुद मसूद अजहर के हवाले से ही आई है। वहां से कुछ आम नागरिकों के घायल होने की अपुष्ट खबरें भी हैं जो वायरल वीडियो के जरिये पहुंची हैं। इस जवाबी हमले के बाद पाकिस्तानी सेना द्वारा सीमा से सटे पूंछ इलाके में फायरिंग किये जाने के समाचार मिले हैं जिनमें 10 भारतीयों के मारे जाने तथा कुछ लोगों के घायल होने की बात कही जा रही है।
भारतीय सेना के तीनों अंगों की यह संयुक्त कार्रवाई इसलिये काबिले-तारीफ है कि इससे विश्व बिरादरी को कहीं भी शिकायत या आपत्ति दर्ज करने का मौका नहीं मिला है। पाकिस्तान के पास भी इसलिये कहने को कुछ भी नहीं रह जाता क्योंकि जिन ठिकानों को हमलों के जरिये नेस्तनाबूद किया गया वे सटीक जानकारी के आधार पर उड़ाये गये हैं और यह पहले से साबित हो चुका था कि उन ठिकानों से चरमपंथी भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देते रहे हैं। पहलगाम घटना का सबक भारतीय सेना ने आतंकियों को अच्छी तरह से सिखा दिया। पाकिस्तान के पास भी विरोध के नाम पर कुछ कहने को रह नहीं जाता इसलिये अब वहां से सुलह और शांति की बातें सेना की ओर से आ रही हैं। पाकिस्तानी सेना के अफसर जानते हैं कि पहलगाम घटना के बाद विश्व सहानुभूति भारत के साथ है। दूसरे, इस वक्त उसकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वह इस घटना को बड़ी लड़ाई में तब्दील करने का दुस्साहस करे। यदि वह ऐसा करता है तो यह उसकी वैसी ही भूल होगी जो वह 1999 में कारगिल तथा उसके पहले तीन बार पूर्ण युद्ध छेड़कर कर चुका है। हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी।
बेशक, हर बार की ही तरह इस वक्त भी भारत का ही पलड़ा भारी है लेकिन उसे भी युद्ध से बचना होगा। इस कार्रवाई से देश के अंदर आतंकियों के खिलाफ़ जो असंतोष व नाराज़गी बनी थी, उसे मिटाने में सरकार को काफी हद तक सफलता मिल गयी है। जो चीन लड़ाई की स्थिति में पाकिस्तान के साथ खड़ा होने की बात कर रहा था, उसके पास भी कोई कारण और अवसर नहीं रह जाता कि वह पाक को समर प्रांगण में ढकेले। पाकिस्तान से भी इसी आशय के संकेत मिल रहे हैं कि चीन का साथ मिलने के बावजूद पाकिस्तान युद्ध से बचेगा। दूसरे, अगर वह लड़ाई छेड़ता है तो माना जायेगा कि वह आतंकवादियों का इस हद तक समर्थन करता है कि उसके लिये लड़ाई तक छेड़ सकता है। पहले भी उस पर दहशतगर्दों को पनाह देने और अपनी धरती का इस्तेमाल करने देने के आरोप लगते रहे हैं। उसे इस मामले में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी आलोचना झेलनी पड़ी है, परन्तु पाकिस्तान अक्सर यह कहकर खुद को बचा लेता है कि वह स्वयं आतंकवाद से पीड़ित है। हालांकि उसकी बातों में आंशिक सच्चाई तो है कि पाकिस्तान में भी ये आतंकवादी कार्रवाइयां करने से बाज नहीं आते, जिनमें उसके अपने नागरिक अक्सर मारे जाते हैं। फिर भी उसे आतंकवाद को प्रश्रय और सहायता देने के आरोपों से पूरी तरह मुक्त नहीं किया जा सकता क्योंकि आतंकियों के सफाये के लिये वह उस संजीदगी व सघनता से काम नहीं करता, जैसा कि अपेक्षित है। पाकिस्तान के कट्टरपंथी धार्मिक व राजनीतिक नेताओं, सेना एवं आईएसआई की मिलीभगत से ऐसा होता है- इससे भी सहमत हुआ जा सकता है।
दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पहले ही यह कह दिया था कि 'भारत व पाकिस्तान दोनों ही उनके करीब हैं'। वे यह भी मानते हैं कि दोनों देश अपनी समस्या को मिलकर सुलझा सकते हैं। इसका साफ अर्थ है कि फिलहाल अमेरिका बीच में नहीं पड़ेगा लेकिन चाहेगा कि दोनों देश लड़ाई-झगड़े में न पड़ें। भारत को जो हासिल करना था, वह उसने कर लिया है। अब उसे इसलिये भी इस मामले को जल्दी समेट लेना चाहिये क्योंकि अभी ज्यादातर देश उसके साथ हैं। कम से कम कोई विरोध में आता नहीं दिख रहा है। चीन जो पाकिस्तान के साथ आने की बात कह रहा था, उसके पास अब कोई कारण नहीं रह गया है। यदि आतंकवाद से लेकर किसी भी मुद्दे पर पाकिस्तान कोई चर्चा करना चाहता है या इस मसले को विराम देना चाहता है, तो भारत को भी सकारात्मक प्रतिसाद देकर मामले को खत्म करना चाहिये। बेशक वह ऐसा करने के पहले पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी दे।