अपने कामों पर वोट क्यों नहीं मांगती भाजपा
आगामी आम चुनावों में भाजपा ने अपने लिए 370 से अधिक सीटें और एनडीए के लिए 4 सौ से अधिक सीटें लाने का लक्ष्य रखा है;
- सर्वमित्रा सुरजन
महिलाओं को निशाने पर लेने का सिलसिला आज का नहीं बरसों पुराना है। और यह किसी एक पार्टी की महिलाओं के साथ नहीं होता, सभी के साथ होता है। क्योंकि यहां समस्या समाज की मानसिकता में है, जिसमें यह बात गहरे तक धंसी हुई है कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर नहीं रखा जा सकता। इस मानसिकता से बहुसंख्यक लोग ग्रसित हैं। केवल राहुल गांधी जैसे कुछेक अपवाद हैं, जो महिलाओं के साथ इतने सम्मान से पेश आते हैं ।
आगामी आम चुनावों में भाजपा ने अपने लिए 370 से अधिक सीटें और एनडीए के लिए 4 सौ से अधिक सीटें लाने का लक्ष्य रखा है। 10 साल सत्ता में पूर्ण बहुमत के साथ रहने वाली पार्टी के लिए यह कोई असंभाव्य लक्ष्य नहीं है, क्योंकि अपने दो-दो कार्यकाल में किए गए कार्यों के आधार पर ही भाजपा जनता से अपने लिए पहले से अधिक सीटें और बड़ी जीत मांग सकती है। लेकिन भाजपा अपने कार्यों को गिनाने से अधिक विपक्ष पर प्रहार करके जीत हासिल करने की जुगत में है। शायद उसे अपनी उपलब्धियों के दम पर जीत हासिल करने का विश्वास नहीं है। झूठे विज्ञापन, विपक्ष की एकता का मखौल उड़ाने वाले प्रचार और भावनात्मक मुद्दों के इर्द-गिर्द भाजपा रणनीति बना रही है। कंगना रनौत प्रकरण से लेकर दूल्हा कौन होगा जैसे विज्ञापन इसकी मिसाल हैं।
2004 से 2014 तक यूपीए ने दस साल देश पर शासन किया था। लेकिन 2014 के चुनावों के वक्त यूपीए के लिए लोकविरोधी लहर चली थी। इसकी तैयारी 2011 के अन्ना आंदोलन से ही शुरु हो गई थी। जिसका नतीजा यह हुआ कि मनरेगा, सूचना का अधिकार, भोजन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार ऐसे कई क्रांतिकारी फैसलों के बावजूद कांग्रेस के विरोध में माहौल बना दिया गया और इससे पहले कि कांग्रेस अपने कार्यों के आधार पर वोट मांगती, भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को आगे करके अच्छे दिनों का नारा बुलंद किया। महंगाई डायन भागेगी, हर खाते में 15 लाख रूपए आएंगे, क्योंकि काला धन वापस आएगा, युवाओं को 2 करोड़ रोजगार हर साल मिलेंगे, बुलेट ट्रेन चलेगी, ऐसे कई आकाशकुसुम भाजपा ने देश के सियासी पर्दे पर बिखरा दिए, जिन्हें देखने में मगन जनता ने भाजपा को भर-भर के वोट दिए। 2014 के पहले केवल अन्ना हजारे ही नहीं, योग गुरु रामदेव, आर्ट ऑफ लिविंग सिखाने वाले रविशंकर जैसे लोगों ने भी कांग्रेस के खिलाफ खूब माहौल बनाया। कई प्रेस वार्ताएं करके बताया कि भ्रष्टाचार से लेकर पेट्रोल-डीजल के दाम और रूपए की कीमत तक सबमें भाजपा की सत्ता आने से कैसे सुधार हो सकता है। इससे पहले कि कांग्रेस अपने कामों के आधार पर वोट मांगती, भाजपा और संघ के सहयोगियों ने कांग्रेस को आभासी मुद्दों में घेर कर सत्ता से बाहर करवा दिया।
2019 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर सत्ता में लौटने की तैयारी की। राफेल लड़ाकू विमानों के सौदों में हुई बड़ी गड़बड़ी की ओर कांग्रेस ने देश का ध्यान दिलाया। इसके साथ ही यह भी बताया कि मोदी सरकार ने 5 सालों में एक भी वादा पूरा नहीं किया है। न युवाओं को रोजगार मिला, न किसी के खाते में 15 लाख आए, लेकिन जनता तक कांग्रेस का संदेश न पहुंचे, इसकी तैयारी भी भाजपा ने कर ली थी। भाजपा ने मीडिया को अपने नियंत्रण में कर ही लिया था, इसके अलावा पुलवामा हमले के बाद राष्ट्रवाद की नयी लहर उठा दी गई, जिसमें रोजगार, महंगाई और भ्रष्टाचार के सारे मुद्दे उड़ गए और भाजपा को फिर सत्ता में आने का मौका मिला।
अब 2024 में फिर जनता के बीच भाजपा को वोट मांगने पहुंचना है। इस बार राम मंदिर के उद्घाटन पर भाजपा वोट मांग सकती थी, लेकिन यह मुद्दा महीना भर भी असर नहीं दिखा सका। फरवरी में चुनावी बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया और धार्मिक भावनाओं पर भ्रष्टाचार का मुद्दा हावी हो गया। ईडी और सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों को किस तरह कारोबारियों पर दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल में लिया गया और कैसे बड़ी कंपनियों ने चुनावी बॉन्ड के जरिए हजारों करोड़ रूपए भाजपा को चंदे के तौर पर दिए हैं, इसके प्रमाण अब सामने हैं। अर्थशास्त्री इसे देश ही नहीं दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला बता रहे हैं। जाहिर है भाजपा के लिए चुनावी बॉन्ड एक बड़ी उलझन बन चुका है और इस बार कोई धार्मिक या राष्ट्रवादी लहर इस उलझन से उसे निकाल नहीं सकती। अपने बचाव के लिए अब भाजपा दर्शकों को गुमराह करने वाले विज्ञापनों को प्रसारित कर रही है। भाजपा ने पहले यूपीए सरकार के वक्त हुए 2जी घोटाले पर विज्ञापन बनाया, जबकि अदालत में 2जी घोटाले पर कांग्रेस को क्लीन चिट मिल चुकी है। इसके बाद यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध रुकवाकर भारतीय छात्रों को लाने वाला विज्ञापन जारी किया गया। इसमें भी भाजपा का झूठ सामने आ गया।
क्योंकि खुद विदेश मंत्रालय ने इसकी पुष्टि की है कि श्री मोदी ने रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध नहीं रुकवाया है और ये भ्रामक दावा है। अब भाजपा का एक और विज्ञापन सामने आया है, जो विवाह जैसी पवित्र संस्था पर आघात के समान है। इस विज्ञापन में भाजपा ने विपक्षी गठबंधन इंडिया पर प्रहार किया है। विज्ञापन में दिखाया गया है कि दुल्हन बनी एक युवती वर पक्ष से पूछ रही है कि दूल्हा कौन है। जिन किरदारों को विज्ञापन में दिखाया गया है, वे राहुल गांधी, सोनिया गांधी, लालू प्रसाद, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, मल्लिकार्जुन खड़गे, उद्धव ठाकरे, एम के स्टालिन और ममता बनर्जी की तरह दिख रहे हैं। इसमें राहुल गांधी जैसे लगने वाले किरदार को केंद्र में दिखाया गया है, जो खुद के दूल्हा होने की बात कह रहा है, लेकिन इस बीच बाकी किरदार भी आपस में झगड़ रहे हैं और दुल्हन बनी युवती उन सबको हैरान-परेशान सी देख रही है कि ऐसे में किस तरह वो विवाह करे और किससे करे। इस विज्ञापन के आखिर में भाजपा ने सवाल उठाया है कि दूल्हा नहीं चुन सकते तो प्रधानमंत्री कैसे चुनेंगे।
भाजपा ने इस विज्ञापन के जरिए लोकतंत्र में चालाकी से कथानक बदलने की कोशिश की है। क्योंकि लोकतंत्र में जनता अपने-अपने संसदीय क्षेत्र के प्रतिनिधियों को चुनती है, फिर बहुमत हासिल करने वाली पार्टी या गठबंधन तय करता है कि उनका नेता कौन होगा। जनता को सीधे प्रधानमंत्री चुनने की जरूरत नहीं है। लेकिन भाजपा यही बताने की कोशिश कर रही है कि हमारी पार्टी को बहुमत मिलेगा तो नरेन्द्र मोदी ही प्रधानमंत्री बनेंगे, लेकिन इंडिया गठबंधन को बहुमत मिलेगा तो उनके पास कोई प्रधानमंत्री का चेहरा ही नहीं है। यह कमोबेश वही रणनीति है, जिसके तहत भाजपा ने पिछले कुछ बरसों में एक सवाल खड़ा किया है कि मोदी नहीं तो कौन। जबकि भारतीय लोकतंत्र व्यक्ति केन्द्रित न होकर पार्टी आधारित व्यवस्था पर चलता है। मोदी नहीं तो कौन जैसे सवाल लोकतंत्र के पाठ्यक्रम में हैं ही नहीं, लेकिन भाजपा ने इसे ही सबसे अहम सवाल बना दिया है और अब दूल्हा वाला विज्ञापन उसी का विस्तार है। जब इंडिया गठबंधन की नींव पड़ी थी, तब लालू प्रसाद यादव ने राहुल गांधी को दूल्हा बनने की सलाह दी थी, संभवत: इसी को ध्यान में रखकर भाजपा ने यह विज्ञापन बनाया है। लेकिन ऐसा करने में उसने विवाह नामक संस्था का जिस तरह मखौल उड़ाया है, वह न परंपरा और संस्कृति के अनुकूल है, न लोकतंत्र के लिहाज से सही है।
विज्ञापनों के अलावा भाजपा अब उन मुद्दों को भी भुनाने में लगी है, जिनसे उसे सहानुभूति मिल सके। फिल्म अभिनेत्री कंगना रानौत को हिमाचल प्रदेश के मंडी से उम्मीदवार बनाए जाने पर कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत के सोशल मीडिया एकाउंट्स से कुछ भद्दी टिप्पणियां की गईं, जिनकी जानकारी होते ही सुप्रिया श्रीनेत ने उन्हें हटा लिया और साथ ही सफाई दे दी कि उनके एकाउंट्स को कुछ और लोग भी संभालते हैं और उन्हीं में से शायद किसी ने ऐसा किया है, लेकिन उनके विचार ऐसे बिल्कुल नहीं हैं। लेकिन भाजपा ने इस मामले को लपक लिया और बात महिला आयोग से लेकर चुनाव आयोग तक पहुंच गई। किसी भी महिला पर बेहूदी टिप्पणी हर लिहाज से गलत है और इसका बचाव किसी तरह नहीं किया जा सकता।
कंगना रानौत पर जिस तरह के आक्रमण अब किए गए, खुद उन्होंने पहले उर्मिला मातोंडकर पर ऐसी ही टिप्पणी की थी। दूसरे दलों की महिला नेताओं पर भी कई बार ऐसे ही आक्रमण किए जा चुके हैं, जिनसे उनकी गरिमा को ठेस पहुंचे। सोनिया गांधी तो सबसे बड़ा उदाहरण हमारे सामने हैं, जिन्हें अनगिनत बार, अनगिनत तरीके से अपमानित किया गया। लेकिन सोनिया गांधी ने कभी न उनका जवाब दिया, न खुद को पीड़ित बताकर सहानुभूति बटोरने की कोशिश की। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सोनिया गांधी को कांग्रेस की विधवा कह चुके हैं, तब भी सोनिया गांधी अपनी गरिमा बनाए रखते हुए खामोश रहीं। महिलाओं को निशाने पर लेने का सिलसिला आज का नहीं बरसों पुराना है। और यह किसी एक पार्टी की महिलाओं के साथ नहीं होता, सभी के साथ होता है। क्योंकि यहां समस्या समाज की मानसिकता में है, जिसमें यह बात गहरे तक धंसी हुई है कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर नहीं रखा जा सकता। इस मानसिकता से बहुसंख्यक लोग ग्रसित हैं। केवल राहुल गांधी जैसे कुछेक अपवाद हैं, जो महिलाओं के साथ इतने सम्मान से पेश आते हैं कि हर उम्र की महिला उनके साथ अपनापन महसूस करती है और सहजता के साथ पेश आती है। जाहिर है उनके मां-बाप ने ऐसे संस्कार उन्हें दिए हैं और देश में अब ऐसे ही संस्कारों की जरूरत है। तब न महिला आरक्षण पर नाटकीयता की जरूरत पड़ेगी, न शक्ति शब्द को लेकर अनावश्यक भ्रम खड़ा करना पड़ेगा।
भाजपा को अगर अपनी जीत का यकीन है तो वह झूठे विज्ञापनों को हटाए और कंगना रानौत के लिए सहानुभूति बटोरना छोड़कर राहुल गांधी की तरह महिलाओं को उनकी मर्जी से रहने के अधिकार का बयान देकर दिखाए। भाजपा की मजबूती का झूठ और सच, सब अपने आप सामने आ जाएगा।