चुनाव तक हमें चांद चाहिए!
हमारा देश अपने वैज्ञानिकों की उपलब्धियों पर अवश्य गर्व करे, मगर साथ में उन परिस्थितियों की भी पड़ताल करे;
- पुष्परंजन
हमारा देश अपने वैज्ञानिकों की उपलब्धियों पर अवश्य गर्व करे, मगर साथ में उन परिस्थितियों की भी पड़ताल करे, जिस वजह से उन्हें आत्महत्या के लिए विवश होना पड़ता है। 2014 से पहले, और बाद में भी इसरो समेत देश के प्रमुख वैज्ञानिक शोध संस्थानों में खु़दकुशी व रहस्यमय हत्याओं की घटनाएं हुई हैं।
पूरा देश मदमस्त है। होना भी चाहिए। मोदी जी के नेतृत्व में इतनी बड़ी सफ लता। रूस कभी साउथ पोल पर रचना चाहता था इतिहास, उसे भारत ने पीछे छोड़ दिया। पाकिस्तान वालों के सीने पर सांप लोट रहा है। वाघा बॉर्डर पार इतना सन्नाटा क्यों है भाई? इत्थे देखो। यहां अब कोई टमाटर का भाव नहीं पूछेगा। यदि किसी करमजलिये ने टमाटर-प्याज़-पेट्रोल का भाव पूछा, भक्तजन चांद दिखा देंगे। वोटरों को जून 2024 तक चांद दिखाते रहेंगे। साथ में दिखायेंगे पीएम मोदी की ऊंगली, जिसके ज़रिये लांचिंग के समय वो छाये रहे। साउथ पोल पर संपूर्ण लैंडिंग क्यों देखे देश? बीच ब्राड कास्टिंग मोदी की इंट्री चाहिए ही।
लेकिन सबसे हरामखोर निकले उनके टुकड़ों पर पलने वाले गोदिये। वर्चुअल स्टूडियो में तूफान लाने और छाते के साथ एंकरनी प्रस्तुत कर सकते हैं, चांद पर पीएम मोदी को लैंडिंग करते दिखा देते, तो तेरा क्या जाता कालिये? लाखों रुपये के वर्चुअल स्टूडियो ऐसे ही चंपक कार्यक्रमों के लिए निर्मित किये जाते हैं। साउथ पोल पर घूमते-टहलते, शोधपूर्ण मुद्रा में देखकर भक्त और विभोर होते। मीडिया के मालिकान नंबर बनाते, मगर मूर्खों ने पानी फेर दिया।
किसी दिलजले ने पूछा, चांद की रेस में भारत रूस से आगे निकल भी गया, तो देश के आम आदमी को क्या मिला? भक्त बता सकते हैं कि यहां का किसान चांद पर टमाटर बोयेगा, होम डिलीवरी वहीं से होगी। केवल पांच रुपये किलो। दिलजलों को इससे मतलब नहीं कि 600 करोड़ के चंद्रयान-3 मिशन से अंतरिक्ष से भारतीय सीमा की निगरानी के अलावा अनुसंधान के क्षेत्र में हमें क्या उपलब्धियां हासिल होनी है। वो तो फूंके पड़े हैं। कोई भूल-चूक हुई, तो मोदी के गुब्बारे में पिन मारने को चौचक बैठे हैं।
चंद्रयान अभियान से नफरतियों को खु़राक देने वाले अखबारों-चैनलों ने बताना शुरू किया कि चंाद पाकिस्तान के झंडे पर उकेरा हुआ है। बात दूर तलक गई, उसका धार्मिक एंगल भी ढूंढ लिया कि चांद को पवित्र मानते हो, तो वहां हमने झंडे गाड़ दिये मोदी जी के नेतृत्व में। चांद के बहाने नफरत फैलाओ, और वोट का धु्रवीकरण करो। अब इन अनपढ़ नफ़ रतियों को कौन बताये कि अकेले पाकिस्तान नहीं, दुनिया के दस और देश अपने झंडों में चांद का इस्तेमाल करते हैं। उज़बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, तुर्की, ट्यूनिशिया, उत्तर-पश्चिमी अफ्रीक़ी देश मॉरिटेनिया, मालदीव, मलयेशिया, कोमोरोस, अज़रबैजान और अल्जीरिया को भी याद कर लो व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी वालों। चांद तो हिंदू बहुल राष्ट्र नेपाल के झंडे में भी है। उसका क्या करोगे? उनके ध्वज में ऊपर चांद है, और नीचे सूरज।
एक ख़बर यह आई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स सम्मेलन और ग्रीस से भारत लौटने के तुरंत बाद 26 अगस्त को बंगलुरु जाएंगे। पीएम मोदी इसरो के प्रमुख एस. सोमनाथ के साथ-साथ वैज्ञानिकों से मुलाकात करेंगे। प्रधानमंत्री हैं, तो उनका वहां जाना और पूरी टीम को चंद्रयान-3 की सफलता के लिए धन्यवाद देना बनता है। लेकिन इसका राजनीतिकरण डराता है। चुनावी कालखंड है, तो इसरो की उपलब्धियों से राजनीतिक मंच निरापद रहे, वो भी नरेंद्र मोदी के रहते? नेति-नेति।
प्रधानमंत्री मोदी ने चंद्रयान-3 की लैंडिंग के समय कहा था कि यह विकसित भारत का शंखनाद है। भारत की यह उड़ान चंद्रयान से भी आगे जाएगी। पीएम ने इस दौरान सूर्य मिशन का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि जल्द ही इसरो आदित्य एल-1 मिशन भी लॉन्च करेगा, जिससे सूर्य का विस्तृत अध्ययन किया जा सकेगा। इसके बाद शुक्र और सौरमंडल के सामर्थ्य को परखने के लिए दूसरे अभियान भी आरंभ किए जाएंगे। ऐसी घोषणा के हवाले से प्रधानमंत्री मोदी के शैदाई दावा कर सकते हैं कि पूरे ब्रह्मांड में वो अकेले नेता हैं, जो सौर मंडल के हर ग्रह-उपग्रह पर वैज्ञानिक शोध कराने की क्षमता रखता है। अजेय-अभूतपूर्व।
प्रधानमंत्री ने जोहान्सबर्ग में कहा था, 'अब चांद से जुड़े मिथक भी बदल जाएंगे। नई पीढ़ी के लिए कहावतें पुरानी पड़ जाएंगी। पहले कहा जाता था कि चंदा मामा दूर के... लेकिन अब लोग कहेंगे चंदा मामा बस एक टूर के...' मोदी ने अपने भाषण में देश के पहले मानव मिशन गगनयान की भी जानकारी दी। बताया कि इसके लिए तैयारियां तेजी से की जा रही हैं। मोदी से पहले के प्रधानमंत्री वैज्ञानिक मिशन के मामले में चुप रहा करते थे, यहां मुट्ठी खोलने में देर नहीं लगती।
मगर, सवाल यह है कि जिन वैज्ञानिकों के बूते भारत अपना भाल ऊंचा कर रहा है, क्या उनके काम करने की परिस्थितियां और उनके हालात सही चल रहे हैं? 2022 को ही आधार मान लेते हैं, जब इसरो में 16 हज़ार 786 लोग काम कर रहे थे। इसरो की जय-जय कर रही सरकार से कोई पूछे कि 2023-24 के बजट में इस महकमे के वास्ते आबंटित राशि में आठ प्रतिशत की कटौती क्यों कर दी गई? पहले वाले बजट में 13 हज़़ार 700 करोड़ को कम कर 12 हज़ार 542.91 करोड़ कर देने के पीछे की वजहें वित्त मंत्री ने स्पष्ट नहीं किया था।
चन्द्रयान-3 की सफ लता के बाद अपनी पीठ ठोकने वाली सरकार ने विगत नौ वर्षों की रिपोर्ट कार्ड जारी कर दी। रिपोर्ट कार्ड का लब्बो-लुआब यह है कि नौ साल की अवधि में इसरो के ज़रिये 389 विदेशी सेटेलाइट लांच किये गये थे, जिससे 3 हज़ार 300 करोड़ की आय हुई थी। सरकार का कहना है कि 2014 से पहले केवल 35 विदेशी उपग्रह अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किये गये थे। मोदी से पहले 2013-14 में अंतरिक्ष कार्यक्रमों का बजट केवल 5 हज़ार 615 करोड़ आबंटित था।
मतलब, भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में पीएम मोदी का महान अवदान रहा है। उनके पहले वाले, जितने महानुभाव प्रधानमंत्री बने, 7 रेसकोर्स रोड पर झाल बजा रहे थे। चैनलों और न्यूज़ एजेंसियों के ज़रिये नौ साल के कालखंड में अपने देश की वैज्ञानिक उपलब्धियों को जिस तरह से बघारा गया है, ऐसा लगता है कि उससे पहले अक्खा देश आदिम अवस्था में था। पब्लिक तन पर पत्ते ढंक कर काम चला रही थी।
मोदी सरकार की रिपोर्ट कार्ड से इसरो में काम कर चुके वैज्ञानिकों के मनोबल पर क्या असर पड़ेगा, यह भी सोचने की बात होगी। विक्रम साराभाई, एमजीके मेनन, यूआर राव, के. कस्तूरीरंगन, जी. माधवन नायर और के. राधाकृष्णन (जो पीएम मोदी के ज़माने में अपनी सर्विस के बाक़ी आठ माह जैसे-तैसे निकाल पाये थे), जैसे नामचीन वैज्ञानिकों को केवल 35 फ ॉरेन सेटेलाइट्स लांच करने का श्रेय दिया जाएगा? मोदी सरकार ने विज्ञप्ति के ज़रिये अपना तो बघार लिया, मगर देश के नामी-गिरामी वैज्ञानिकों के परफॉरमेंस पर बड़ा सा प्रश्न चिह्न चिपका दिया।
ऐसा लगता है कि इसरो को चुनावी मंच पर लाने की पूरी तैयारी हो चुकी है। जब वहां हरेक लांच के समय पूजा-पाठ का पाखंड शुरू हुआ, तभी लग गया था कि विज्ञान के इस अधिकेंद्र के बुनियादी स्वरूप को बदलने में मोदी सरकार लग चुकी है। इसरो में जो कुछ अजीबोगरीब घटित हुआ, उसमें शैलेश नायक का कि़स्सा भी दिलचस्प है, जो केवल 11 दिनों के वास्ते इस महकमे के प्रमुख बनाये गये थे। 1 जनवरी 2015 को शैलेश नायक इसरो के प्रमुख बने, 12 जनवरी 2015 को ख़बर आई कि वो इस्तीफा दे चुके हैं। इसरो में सबसे कम अवधि तक कुर्सी पर रहने का इतिहास रच गये शैलेश नायक।
प्रधानमंत्री के अधीनस्थ अंतरिक्ष विभाग देश का अकेला मंत्रालय है, जिसका मुख्यालय दिल्ली नहीं, बंगलुरू है। 1961 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने होमी जे भाभा के ज़िम्मे अंतरिक्ष अनुसंधान व बाहरी अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग का ज़िम्मा सौंपा। परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना भी होमी जे भाभा ने की थी। 1962 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (इन्कोस्पार) की स्थापना हुई थी। उसी वर्ष तिरुवनंतपुरम के पास थुम्बा भूमध्यरेखीय रॉकेट लांचिंग स्टेशन (टर्ल्स) पर भी काम शुरू हुआ। उसके सात साल बाद, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना, अगस्त 1969 में की गई। जून 1972 में अंतरिक्ष विभाग अस्तित्व में आया, और सितंबर 1972 में अंतरिक्ष विभाग के तहत 'इसरोÓ को लाया गया।
अंतरिक्ष विभाग और इसरो मुख्यालय का सचिवालय न्यू बीईएल रोड, बंगलुरु के अंतरिक्ष भवन में स्थित है। इसरो का मुख्य काम उपग्रह संचार, राकेट व उपग्रह प्रक्षेपण, अंतरिक्ष विज्ञान, आपदा प्रबंधन सहायता, प्रायोजित अनुसंधान योजना, अंतरराष्ट्रीय सहयोग व सुरक्षा समन्वय को आगे बढ़ाना है। 2014 से पहले क्या किसी सरकार ने इसरो का इस्तेमाल चुनावी प्रचार या जनमत को प्रभावित करने में लगाया है? यह भी खोज का विषय है।
हमारा देश अपने वैज्ञानिकों की उपलब्धियों पर अवश्य गर्व करे, मगर साथ में उन परिस्थितियों की भी पड़ताल करे, जिस वजह से उन्हें आत्महत्या के लिए विवश होना पड़ता है। 2014 से पहले, और बाद में भी इसरो समेत देश के प्रमुख वैज्ञानिक शोध संस्थानों में खु़दकुशी व रहस्यमय हत्याओं की घटनाएं हुई हैं। अपने देश के वैज्ञानिक रहस्यमय परिस्थितियों में मारे गये हैं, उनमें होमी जे भाभा, लोकनाथन महालिंगम, उमा राव, रवि मूले, एम.अय्यर, केके जोशी, अभीष शिवम, उमंग सिंह, पार्थ प्रतिम बग, मुहम्मद मुस्तफा, टाइटस पॉल, दलिया नायक जैसे बहुतेरे नाम हैं।
बहस इस पर भी होनी चाहिए जो वैज्ञानिक रहस्यमय परिस्थितियों में जान गंवा बैठे, उनकी सही दिशा में जांच क्यों नहीं हुई? एक वैज्ञानिक की रहस्यमय मौत का मामला देश की प्रतिरक्षा से भी जुड़ा होता है। 24 जनवरी 1966 को होमी जे भाभा की मौत स्विट्ज़रलैंड में माउंट ब्लांक की वादियों में एयर इंडिया की फ्लाइट 101 के दुर्धटनाग्रस्त होने से हुई थी। इसके पीछे किन शक्तियों का हाथ रहा था? उस रहस्य से आजतक पर्दा नहीं उठ पाया। जनवरी 2023 में ख़बर आई कि इसरो के श्रीहरिकोटा केंद्र में तीन दिनों में तीन लोगों ने खु़दकुशी कर ली, जिनमें से दो सीआईएसएफ के जवान थे!
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