जैतून की टहनी का इंतजार
अस्पताल पर हमला करके इजरायल ने बता दिया है कि वह युद्ध बिना नियम-कायदे के ल़ड़ने में यकीन करता है;
- सर्वमित्रा सुरजन
अस्पताल पर हमला करके इजरायल ने बता दिया है कि वह युद्ध बिना नियम-कायदे के ल़ड़ने में यकीन करता है। हालांकि इसमें बहादुरी नहीं, कायरता दिखती है। बहादुरी तो तब होती, जब इजरायल आतंकवाद को समूल नष्ट करने की कोशिश करता। जो उत्पीड़न यहूदियों ने हिटलर के शासन में भुगता, जिस हिंसा का शिकार 7 अक्टूबर को त्योहार मनाते आम इजरायली लोग हुए, उस हिंसा से दुनिया को महफूज़ रखना ही असली बहादुरी होती।
ओगाज़ा के शैतान बच्चो,
तुम, जो लगातार मेरी खिड़की के नीचे आकर चिल्लाते हो
और अपने शोर से मुझे परेशान करते हो
तुम, जो हर सुबह को भागदौड़ से बेतरतीब बना देते हो
तुम, जिन्होंने मेरे प्यारे गुलदान को तोड़ दिया
और तोड़ लिया मेरे बागीचे में लगे इकलौते फूल को
वापस आ जाओ, और चिल्लाओ जी भर के
तोड़ दो सारे गुलदानों को, चुरा लो सारे फूलों को
लेकिन वापस आ जाओ, बस वापस आ जाओ।
फिलिस्तीन कवि, खालिद जुमा
(अंग्रेजी से अनुवाद लेखिका द्वारा)
खालिद जुमा की ये कविता दुनिया के हर शांतिप्रिय इंसान के दिल की आवाज लगती है। बच्चों का शोर घरों से उठकर गलियों, मोहल्लों में होता रहे। किसी की बालकनी में गेंद चली जाए, किसी की खिड़की का शीशा क्रिकेट खेलने में टूट जाए। इन सबसे भले कुछ देर की परेशानी होती है, खीझ होती है, शैतान बच्चों पर गुस्सा आता है, उनके मां-बाप तक शिकायत पहुंच जाती है। लेकिन फिर भी ये शोर और शिकवे-शिकायतें, उस चुप्पी से लाख गुना बेहतर है, जो बमों और राकेटों के धमाकों के बाद चारों ओर पसर जाती है।
बच्चों को स्कूल भेजने की जद्दोजहद में लगे मां-बाप, बरामदों में बैठकर अखबार पढ़ते बुजुर्ग, कचरा फेंकने पर दो पड़ोसियों के बीच की बहस, सड़कों पर निकलते फेरी वाले, गाड़ियों का शोर, बगीचों में चहलकदमी करते लोग, ऐसे कई दृश्य हमारे रोजमर्रा के जीवन में इतने रचे-बसे हुए हैं कि हमें इनकी अहमियत का अहसास ही नहीं होता। तमाम तरह की उलझनों से भरे, मामूली से लगने वाले इस जीवन की क्या कीमत है, ये जंग के शिकार लोग ही बता सकते हैं।
फिलिस्तीन के गाज़ा जैसे इलाके के लोग ऐसे ही सामान्य जीवन के लिए अब न जाने कब तक तरसते रहेंगे। इजरायल के फिलिस्तीन पर हमले को दो हफ्ते होने आए हैं, लेकिन युद्ध विराम का कहीं कोई संकेत नहीं मिल रहा। बल्कि अब तो इजरायल सीधे-सीधे नरसंहार पर उतर आया है। युद्ध शुरु होते ही इजरायल की ओर से गाजा क्षेत्र में बिजली, पानी जैसी सुविधाओं की आपूर्ति रोक दी गई। संयुक्त राष्ट्र संघ ने नसीहत दी कि ऐसा करना ठीक नहीं होगा। लेकिन मौजूदा वैश्विक मंच पर संरा की भूमिका भी घर के उस बूढ़े सदस्य की तरह हो गई है, जिसकी बात लिहाज कर सुनी तो जाती है, लेकिन मानी नहीं जाती। हमास के खात्मे का बीड़ा इजरायली राष्ट्रपति बेंजामिन नेतन्याहू ने उसी तरह उठाया है, जैसे 11 सितंबर के हमले के बाद अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को खत्म करने की कसम खा ली थी। लादेन को खत्म करने के फेर में पूरे अफगानिस्तान में तबाही मचा दी गई।
20 सालों बाद वही तालिबान फिर से अफगानिस्तान पर शासन कर रहा है, जिसे खत्म करने के लिए अमेरिका ने अपने हजारों सैनिकों को तैनात कर के एक लंबे युद्ध में अफगानिस्तान को झोंक दिया था। अमेरिका के हिसाब से लादेन पाकिस्तान में घर में घुसकर मार दिया गया। हालांकि उसके बाद लादेन की लाश का क्या हुआ, और आतंकवाद खत्म करने की कसम का क्या हुआ, इस बारे में कौन सवाल करे। सवाल अगर किए जाते तो आज इजरायल वही खेल नहीं खेल रहा होता।
हमास को जड़ से उखाड़ने के नाम पर इजरायल रोजाना सैकड़ों फिलिस्तनियों को मार रहा है। साढ़े सात सौ से अधिक बच्चे इजरायल के हमले में मारे जा चुके हैं।
इजरायल की ओर से चेतावनी दी जा रही है कि इतने घंटे में ये इलाका खाली करो। जैसे कीड़ों-मकोड़ों के सफाए के लिए कीटनाशक का छिड़काव किया जाता है और खुद के मुंह में पट्टी बांध ली जाती है कि उसका नुकसान खुद को न हो, उसी अंदाज में राकेट और बमों का छिड़काव फिलिस्तीन पर करके वहां जीते-जागते इंसानों को कीड़ों की तरह ही खत्म किया जा रहा है। दो-दो विश्वयुद्धों की क्रूरता, हिटलर का कत्लेआम, हिरोशिमा-नागासाकी पर अणु बम से बरसाया गया कहर, ये सब कुछ पिछले सौ सालों में ही दुनिया ने देखा है। सभ्यता का विकास हुआ होता, तो दुनिया इतनी तबाही देखकर युद्ध से तौबा कर लेती। लेकिन हम तो सभ्यता को ठेंगा दिखाते हुए फिर से आदिम युग में लौटने की तैयारी कर रहे हैं। फर्क यही है कि हमने नाखूनों को काटना सीख लिया है, तो प्रहार करने के तरीके बदल गए हैं। अब चालाक इंसान मारक हथियारों से वार करता है, जिसमें इंसान ही नहीं इंसानियत के चिथड़े भी उड़ाए जा सकें। बारुदी हथियारों के अलावा अब झूठी खबरों का हथियार भी इंसान के पास है, और इन दोनों का मेल इतना जबरदस्त होता है कि फिर विरोधी पक्ष का तड़प-तड़प कर मरना तय है।
मंगलवार की रात को ही खबर आई कि इजरायल की वायुसेना ने गाजा के अल अहली अस्पताल पर रॉकेट दागे। इस हमले में कम से कम 5 सौ लोग मारे गए हैं। लेकिन इजरायल ये दावा कर रहा है कि ये हमला उसने नहीं हमास ने किया है। इस हमले का वीडियो भी इजरायल की ओर से जारी किए गए हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर वैसी ही तस्वीर वाला एक और वीडियो सामने आया है, जो 2022 का बताया जा रहा है। यानी ये हो सकता है कि इजरायल जिसे हमास के अस्पताल पर हमले का वीडियो बता रहा है, वो पुराना वीडियो हो। हो सकता है इजरायल फेक न्यूज का सहारा लेकर अपनी करनी से बचने की कोशिश रहा है। क्योंकि इस समय दुनिया भर की अवाम फिलिस्तीन के हक में आवाज उठा रही है, खुद इजरायल के कई नागरिक अपनी सरकार से इस बात के लिए नाराज हैं कि वो फिलिस्तीन के आम लोगों को निशाना बना रही है। इजरायल की सरकार के साथ दुनिया के शक्तिशाली नेता तो खड़े दिख रहे हैं, लेकिन जनता की आवाज सरकारों की आवाज से अलग सुनाई दे रही है।
अस्पताल पर हमला करके इजरायल ने बता दिया है कि वह युद्ध बिना नियम-कायदे के ल़ड़ने में यकीन करता है। हालांकि इसमें बहादुरी नहीं, कायरता दिखती है। बहादुरी तो तब होती, जब इजरायल आतंकवाद को समूल नष्ट करने की कोशिश करता। जो उत्पीड़न यहूदियों ने हिटलर के शासन में भुगता, जिस हिंसा का शिकार 7 अक्टूबर को त्योहार मनाते आम इजरायली लोग हुए, उस हिंसा से दुनिया को महफूज़ रखना ही असली बहादुरी होती। मगर बेंजामिन नेतन्याहू की सरपरस्ती में इजरायल फिलिस्तीन को पूरी तरह नक्शे से मिटाने का एक खतरनाक खेल रहा है। धर्म, राष्ट्रवाद, बदला, नफरत सबका एक घातक कॉकटेल तैयार किया गया है, राहुल गांधी ऐसे ही कॉकटेल को कैरोसिन कहते हैं, जो एक बार छिड़क दिया जाए, तो फिर आग को भड़कने से कोई नहीं रोक सकता।
हमास के हमले के बाद इजरायल तुरंत युद्ध छेड़कर ये साबित कर चुका है कि उसकी दिलचस्पी शांति में कतई नहीं है। अगर होती तो हमास के खात्मे के तार्किक तरीके ढूंढे जाते, संयुक्त राष्ट्र संघ की विभिन्न एजेंसियों, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में जाने, आर्थिक प्रतिबंध लगाने जैसे कई और उपायों पर विचार किया जाता। मगर उससे तो समस्या के सुलझने का रास्ता तैयार होता और सत्ता की राजनीति को सुलझे तरीके रास नहीं आते हैं। चीजें उलझी रहें तो हर तरह से मुनाफा लिया जा सकता है। इजरायल यही कर रहा है और अब अमेरिका भी यही कर रहा है। हमेशा की तरह अमेरिका इस लड़ाई में कूद चुका है। जो बाइडेन ने साबित कर दिया है कि डोनाल्ड ट्रंप, बराक ओबामा जैसे अपने तमाम पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों की तरह वे भी अमेरिका की महानता के गुण गाते हुए पूरी दुनिया में लोकतंत्र की रक्षा का बीड़ा उठाएंगे और युद्धग्रस्त क्षेत्रों में दखलंदाजी करके एक पक्ष को अपना साथ देकर शांति का मसीहा बनेंगे। बराक ओबामा को तो शांति का नोबेल पुरस्कार मिल ही चुका है, अब शायद जो बाइडेन भी इजरायल का साथ देकर हमास को खत्म करने में मदद करके ऐसा ही कोई पुरस्कार अपने नाम करवा लें।
दुनिया का चौधरी बनने की अपनी फितरत से अमेरिका बाज नहीं आ रहा। इधर भारत शांतिदूत की भूमिका से पीछे हट ही चुका है। प्रधानमंत्री मोदी ने पहले दिन ही इजरायल पर हमले की आलोचना करते हुए साथ देने की बात कह दी। पांच दिन बाद विदेश मंत्रालय ने फिलिस्तीन के समर्थन में बयान दिया। घर में घुसकर मारने की बात से आह्लादित होने वाले लोगों को मोदीजी का रवैया अच्छा ही लगा। मगर सोचने वाली बात ये है कि फिलिस्तीनियों ने भारत का कभी कुछ नहीं बिगाड़ा है, फिर भारत में बहुत से लोग फिलिस्तीन के विरोध में क्यों हैं। क्या नफरत हमें हमारे घर में घुसकर मारना शुरु कर चुकी है। क्या हमें अपने सामान्य जीवन से ऊब होने लगी है, जो युद्ध में हम अपना रोमांच तलाशने लगे हैं। सत्ताधीश अपने सियासी फायदे के लिए चाहे जो खेल खेलें, मोहरा आम नागरिक ही बनते हैं। इसलिए युद्ध के बादलों के बीच अब उस कपोत को आवाज देनी होगी, जो जैतून की टहनी मुंह में दबाकर लाए और दुनिया को उसके हरेपन से भर दे।