इस चुनाव के दो खलनायक : गोदी मीडिया और चुनाव आयोग

क्या गोदी मीडिया के एक्जिट पोल सही साबित होंगे? हो सकते हैं, अगर चुनाव मशीनरी उससे मिली हुई हो;

Update: 2024-06-03 06:55 GMT

- शकील अख्तर

चार जून को देखा जाएगा। विपक्ष ने यह चुनाव बहुत अच्छा लड़ा है। जनता के मुद्दे उठाए। जनता को भरोसा दिया कि आने के बाद वह उनकी सुनेगा। अपने मन की बात नहीं करेगा। जनता ने भी इस बार विपक्ष को खूब सुना। माहौल वह बिल्कुल नहीं है जो एक्जिट पोल बता रहा है। सारी जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर जिलों के चुनाव अधिकारियों पर है कि वह पूरी ईमानदारी, निष्पक्षता और बिना किसी डर के काम करें। जनता से पंगा अच्छी बात नहीं है!चार जून को देखा जाएगा। विपक्ष ने यह चुनाव बहुत अच्छा लड़ा है। जनता के मुद्दे उठाए। जनता को भरोसा दिया कि आने के बाद वह उनकी सुनेगा। अपने मन की बात नहीं करेगा। जनता ने भी इस बार विपक्ष को खूब सुना। माहौल वह बिल्कुल नहीं है जो एक्जिट पोल बता रहा है। सारी जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर जिलों के चुनाव अधिकारियों पर है कि वह पूरी ईमानदारी, निष्पक्षता और बिना किसी डर के काम करें। जनता से पंगा अच्छी बात नहीं है!

क्या गोदी मीडिया के एक्जिट पोल सही साबित होंगे? हो सकते हैं, अगर चुनाव मशीनरी उससे मिली हुई हो! ज़मीन पर तो कहीं मोदी के जीतने के संकेत नहीं थे। हर जगह बेरोजगारी, महंगाई, अग्निवीर में युवाओं की जवानी बर्बाद होने की चिंता और संविधान बचाने की बातें थीं।

जो हिन्दू=मुसलमान मोदी ने किया, मंदिर- मस्जिद लाए, मंगलसूत्र और भैंस तक छीनने की बात ले आए उसका तो जमीन पर कहीं असर दिखा नहीं। अपने काम की बात उन्होंने की नहीं। कांग्रेस ने यह किया कांग्रेस ने यह नहीं किया ही बोलते रहे। दस साल में आपने क्या किया इसके बारे में एक भी शब्द नहीं। बेरोजगारी, महंगाई शब्द ही एक बार भी मुंह से नहीं निकला। फिर ये 350 से 400 तक के आंकड़े कैसे? कोई एक आदमी ऐसा मिलता नहीं जो बताता हो कि एक्जिट पोल वाले उसके पास आए थे। फिर ये पोल किसका?

रविवार सुबह के अखबार देखे। कुछ संयमित लगे। लिखा अनुमान हैं ये। पहले की तरह दावा नहीं लिखा। जाहिर है अखबारों के पास भी माहौल समझने का कुछ विवेक है। उसके संवाददाता भी जगह-जगह घूमे हैं। जिला स्तर पर और ब्लाक तक अभी भी अखबारों के संपर्क हैं। उनके संवाददाता हैं। यह अलग बात है कि उनकी खबरें पूरी तरह अब नहीं छपतीं। मगर संपादक और दूसरे वरिष्ठ पत्रकारों के आंखों के सामने से गुजरती हैं।

एक उदाहरण देते हैं। ग्वालियर में एक अख़बार हुआ करता था- स्वदेश। अभी भी है। 45 साल पहले वह ग्वालियर शहर और पूरे संभाग का प्रमुख अख़बार हुआ करता था। संघ का अख़बार था। स्टाफ भी सारा संघ का ही होता था। जिला और तहसील तक सारे संवाददाता भी प्रचारक या संघ के आदमी होते थे। लेकिन जब भी चुनाव आते थे। खबरें विश्लेषण तो वह भाजपा, जनसंघ के हिसाब से करता था। मगर मालूम उसे सब होता था। बड़ा अखबार होने की वजह से हर वर्ग के लोगों के संपर्क में रहता था। तो करना कुछ भी पड़ता हो मगर जानता सब था कि चल क्या रहा है। जनता क्या सोच रही है। चुनावों के बारे में जो दूसरे अख़बार समझते थे उनकी सूचनाएं होती थीं वही उसकी होती थी। संवाददाता संघ का होता था खबर उसके एंगल से लिखता था। मगर संपादक को बता देता था कि क्षेत्र की सही तस्वीर क्या है।

ऐसा आज भी है। अखबारों को मालूम है कि जमीन पर क्या हुआ। इसलिए उन्होंने उछल कर नहीं दबा कर एक्जिट पोल पर लिखा। और अख़बार क्या खुद एक्जिट पोल करने वाले टीवी भी पहले की तरह नहीं फुदक रहे थे। उनके मुख्य एंकर अपने जोश पर बार-बार ब्रेक लगाते थे। और संवाददाताओं की आवाज में तो कहीं उत्साह था नहीं। पहले तो वे इस तरह खबर बताते थे जैसे मोदी जी का दिग्विजय अभियान पूरा होने वाला हो। तो मतलब कहानी इतनी आसान नहीं है।

जनता ने क्या फैसला दिया है। यह उसकी बातों उसकी समस्याओं से मालूम पड़ता है। घर-घर में बेरोजगारी वाली जनता घर-घर मोदी वाला नारा सुनने को तैयार नहीं थी। महंगाई से पीड़ित जनता कांग्रेस यह ले जाएगी वह ले जाएगी सुनना नहीं चाहती थी। बचा क्या है जो कांग्रेस ले जाएगी?

यह सारे सवाल थे। मगर एक्जिट पोल इसके ठीक विपरीत हैं। वे मोदी मोदी कर रहे हैं। इसलिए जनता को शक है कि गोदी मीडिया से माहौल बनवाकर कहीं चुनाव आयोग उसी के अनुसार नतीजे न दे दे।

कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अजय माकन ने बड़ा सनसनीखेज खुलासा किया है कि इस बार प्रत्याशी के मतगणना एजेंट को मतगणना टेबल तक नहीं जाने दिया जाएगा। मतलब चुनाव अधिकारी को खुली छूट होगी कि वह जो चाहे करे। माकन ने अपने इस खुलासे पर चुनाव आयोग से स्पष्टीकरण मांगा है मगर वह नहीं आया।

1977 से हमने सब चुनाव देखे हैं। 77 से ही मतगणना केन्द्र में ही रहकर गिनती भी देखी है। मगर ऐसा कभी नहीं हुआ कि प्रत्याशियों के अधिकृत एजेंटों को मतगणना टेबल से दूर रखा जाए। फिर वह देखेगा क्या? पत्रकार भी अंदर होते हैं वे भी देखते हैं। प्रत्याशी के एजेंट, पत्रकार अगर वोट से ही दूर रहेंगे तो मतगणना केन्द्र में उनके जाने का फायदा क्या? बहुत गंभीर सवाल है। इससे पहले एक करोड़ सात लाख से ऊपर जाली वोट ईवीएम में करवाने का आरोप चुनाव आयोग पर है। पहले फेज के मतदान के बाद 11 दिन तक कितना मतदान हुआ इसका आंकड़ा सार्वजनिक नहीं किया गया था। बाद में मतदान प्रतिशत बढ़ाकर दिखाया गया। यह जो अतिरिक्त वोट दिखाए गए। जिन्हें विपक्ष एक करोड़ सात लाख से ज्यादा बता रहा है वह किसके खाते में गए?

चुनाव आयोग बहुत संदेह के घेरे में है। इसलिए कहा जा रहा है कि गोदी मीडिया से ऐसा एक्जिट पोल करवाया गया कि वह आयोग के चार जून के बताए जाने वाले नतीजों के अनुरूप हो। पहले गोदी मीडिया से कहलवा दो फिर वैसा ही नतीजा बता दो। जनता मान जाएगी।
लेकिन अब जनता सवाल कर रही है कि यह गोदी मीडिया जब खबरें गलत बताता है। तो एक्जिट पोल सही कैसे बता देगा?

जब रोजगार का सवाल चला तो मोदी ने तो एक बार भी उसका नाम नहीं लिया। मगर गोदी मीडिया ने बता दिया कि मोदी ने दो करोड़ प्रतिवर्ष रोजगार देने के अपने वादे के अनुरूप 20 करोड़ रोजगार लोगों को दे दिए हैं। लोग हैरान कि यह रोजगार कहां गए? हमारे परिवार में एक भी नहीं आया। गांव में भी किसी को नहीं मिला। फिर ये गए कहां? तो लोगों को गोदी मीडिया की खबरों पर ही जब भरोसा नहीं है तो एक्जिट पोल पर कैसे बनेगा?

नतीजे कुछ भी हों मगर इस चुनाव में दो खलनायक सामने आ गए हैं। एक गोदी मीडिया और दूसरा चुनाव आयोग। जन विरोधी। दोनों ने अपनी विश्वसनीयता तो पूरी तरह खतम की ही है जनता को ऐसा लगने लगा है कि दोनों मिलकर उसका अस्तित्व भी खतम कर रहे हैं। वोट ही तो उसकी ताकत है। वही अगर उसने दिया किसी को चला कहीं और जाए तो उसका क्या महत्व रहेगा?

लोकतंत्र में निष्पक्षता, पारदर्शिता बहुत जरूरी है। इसी से जनता का विश्वास बना रहता है। अभी इतने एक्जिट पोल आए जनता का सवाल बिल्कुल जायज है कि कभी आज तक कोई भी उनसे पूछने नहीं आया कि किसे वोट दिया है? और साथ ही लोग यह भी कहते हैं कि वोट डालने के बाद क्या कोई इनको बता देगा कि फलाने को वोट डालकर आए हैं।

एक्जिट पोल एक खेल की तरह, धंधे की तरह भी ठीक था। मगर अब यह जनादेश बदलने के लिए उपयोग में लाया जा रहा है। पहले कहा चार सौ पार। फिर उसका माहौल बनाया। एक्जिट पोल लाया। और फिर आगे?

चार जून को देखा जाएगा। विपक्ष ने यह चुनाव बहुत अच्छा लड़ा है। जनता के मुद्दे उठाए। जनता को भरोसा दिया कि आने के बाद वह उनकी सुनेगा। अपने मन की बात नहीं करेगा। जनता ने भी इस बार विपक्ष को खूब सुना। माहौल वह बिल्कुल नहीं है जो एक्जिट पोल बता रहा है। सारी जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर जिलों के चुनाव अधिकारियों पर है कि वह पूरी ईमानदारी, निष्पक्षता और बिना किसी डर के काम करें। जनता से पंगा अच्छी बात नहीं है!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

Full View

Tags:    

Similar News