ट्रंप ने पाक के नेतृत्व को मजबूत नहीं हमारे नेतृत्व को कमजोर बताया है!
दुनिया भर में हमें अपनी छवि सुधारने के लिए कई प्रतिनिधि मंडल भेजना पड़े;
- शकील अख्तर
दुनिया भर में हमें अपनी छवि सुधारने के लिए कई प्रतिनिधि मंडल भेजना पड़े। मगर क्या हुआ? उसके बाद भी ट्रंप यह कह रहे हैं। वाशिंगटन पोस्ट जो दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित अखबारों में से है ऐसी रिपोर्ट छापता है जिससे भारत की छवि खराब होती है। इस गोदी मीडिया की तो क्या होना? इसकी तो अब कोई बची नहीं है। इसके मालिक ही पूछते हैं कि वह खबर सच्ची थी?
यह अभी तक का डोनाल्ड ट्रंप का सबसे बड़ा हमला है! प्रकारातंर में यह हमारे नेतृत्व को कमजोर बताना है। जब गांव में वोट मांगने जाते हैं तो वह यह नहीं कहता कि आप सही नहीं हैं। वह कहता हैं- वे बहुत अच्छे हैं!
पूरी दुनिया में यही माहौल बन गया है। कोई पाकिस्तान का समर्थन नहीं कर रहा। उसके नेतृत्व को मजबूत और भरोसे लायक नहीं बता रहा हमारे नेतृत्व को कमजोर और आत्ममुग्ध बता रहा है।
देश की यह हालत कभी नहीं रही। लेकिन इस पर भी न प्रधानमंत्री मोदी और न ही गोदी मीडिया समझने को तैयार हैं। मोदी अपनी छवि को ऊपर रख रहे हैं। जो अब इतनी कमजोर हो गई है कि कोई भी ब्रांडिंग उसे वापस मजबूत नहीं कर सकती।
वापसी के लिए इन्दिरा गांधी जैसा आत्मबल होना चाहिए। 1977 के बाद सबने उन्हें खतम कहानी मान लिया था। मगर उन्होंने फिर वापसी की। आधार खोखला नहीं होना चाहिए। नहीं तो वह बूमरैंग (पलटवार) करता है। 56 इंच की छाती, लाल आंख वालों का सबसे बड़ा आधार गोदी मीडिया था। और उसने ही अब सबसे ज्यादा बेइज्जती करवाई है। अगर मोदी को वापस अपनी अन्तरराष्ट्रीय छवि में कुछ इजाफा करना है तो उन्हें इन गोदी मीडिया के महारथियों को लाइन अप करना चाहिए। जो भी कानून सम्मत कड़ी सज़ा होती है वह देना चाहिए। नहीं तो दुनिया में चाहे जितने प्रतिनिधिमंडल भेज लें बिगड़ी छवि सुधरने वाली नहीं है। वाशिंगटन पोस्ट में उसके झूठ का लेखाजोखा छपने के बाद वह बहुत दबाव में है। और अंदर से खोखले लोग दबाव पड़ने पर और ज्यादा मूर्खता का इजहार करते हैं। वे प्रधानमंत्री का कोई और बड़ा रूप बनाकर पेश कर सकते हैं। जिससे जगहंसाई हो।
याद रहे वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट आने के बाद ही ट्रंप ने पाकिस्तान की लीडरशिप को ग्रेट और स्ट्रांग कहा। इसका मतलब अगर आपकी भी होती तो 9 मई के बाद जब गोदी मीडिया की हंड्रेड परसेन्ट झूठी खबरों ने सच का जनाजा निकाल दिया था प्रधानमंत्री मोदी इन मीडिया वालों को अंदर कर चुके होते।
भारत की सेना जीत रही थी। उसका अपर हैंड (बढ़त) था। ऐसे में सच्ची खबरें ही उसका शौर्य बताने के लिए पर्याप्त थीं। मगर उसने ऐसे ऐसे झूठ चलाए जिनका कोई सिर-पैर ही नहीं था। पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष गिरफ्तार, तख्तापलट की तैयारी, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने आत्मसमर्मण किया। गप्प की भारी होड़ थी दूसरे चैनल ने कहा बंकर में छुपे हुए हैं। एक वहां के सारे बड़े शहर कब्जे में, प्रमुख शहरों को नष्ट कर दिया।
यह सब हम वाशिंगटन पोस्ट द्वारा तथ्यात्मक रूप से तैयार की गई 7 जून को प्रकाशित रिपोर्ट से बता रहे हैं। अखबार ने कहा कि इन झूठे दावों के समर्थन में गाजा और सूडान के संघर्षों, फिलाडेल्फिया की एक विमान दुर्घटना और यहां तक कि वीडियो गेम के शाट लेकर भी दिखा दिए गए। बहुत बड़ी रिपोर्ट है। एक एक तथ्य और सबूत के साथ कहा गया है कि भारतीय मीडिया ने यह राक्षसों जैसा काम किया है।
और सबसे घटिया काम अपने झूठ का यह कहते हुए बचाव कि हमने कोई काम देश के खिलाफ नहीं किया। अब इन कम जानकार लोगों को कौन समझाए कि इस तरह के एक क्षेत्र में किए झूठे दावे दूसरे क्षेत्र की सेना पर असर डालते हैं। एक सेक्टर में सेना अच्छा काम कर रही होती है मीडिया के जरिए उसे दूसरे क्षेत्र की अफलातूनी खबर मिलती है तो वह गिल्ट में आ जाती है। गलती कर सकती है। देश को नुकसान हो सकता है। हमें विश्वास है कि जब वक्त बदलेगा तो सेना इन्हें अच्छी तरह समझाएगी। हमने शायद बताया हो कि फोर्स से एक ऐसे ही पत्रकार को किस तरह बचाया था। सीमावर्ती क्षेत्र में। और बचाने का मतलब आप समझ गए ना। बच गया! तो यह देश की सेवा नहीं होती देश का नुकसान होता है।
इसीलिए ट्रंप कह रहे हैं मेरा कहना किसी को बुरा लग सकता है। बिल्कुल सही है, लग रहा है। यह भारत के खिलाफ जाता दिख रहा है। विदेश में भारत का प्रधानमंत्री मतलब भारत ही होता है। और भारत का नेतृत्व मतलब प्रधानमंत्री कभी कमजोर नहीं रहा। चाहे वह कोई रहा हो। एच डी देवगौड़ा, गुजराल, चन्द्रशेखर कोई भी। और इसका कारण है हर प्रधानमंत्री के पीछे भारत की ताकत होती थी।
मगर मोदी ने एक बिल्कुल ही नया काम किया। अपनी छवि देश से ऊपर बनाने का। 2014 से पहले भारत में पैदा होना शर्म की बात थी। मतलब 2014 से पहले के भारत को ही खतम कर दिया। अपनी लकीर बड़ी करने के लिए देश की लकीर छोटी करने की कोशिश। ऐसे बहुत उदाहरण हैं। स्थानाभाव के कारण नहीं लिख सकते। नहीं तो वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के ही और हिस्से भी जिनमें इस गोदी मीडिया की धज्जियां उड़ा दी गई हैं बताते। मगर पाठक पढ़ सकते हैं। हिन्दी में उसका पूरा अनुवाद सोशल मीडिया पर है।
पाकिस्तान के शासकों के लिए ट्रंप के इस सर्टिफिकेट से बड़ा कुछ नहीं हो सकता है। और वहां की जनता के लिए हंसने वाली बात। हमारे साथ पाकिस्तान के पूर्व शासकों के कैसे भी संबंध रहे हों मगर सच यह है कि सब अपने देश में बड़े नाम थे। आज के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ जिनकी ट्रंप ने तारीफ की है उनकी तो एकमात्र पहचान केवल नवाज शरीफ के भाई की है। मगर वह भी मजबूत नेता हो गए!
क्या कहें? हमारी बदकिस्मती! कहने को तो वे कहते हैं कि उनकी किस्मत से यह होता है, वह होता है। और इसी भ्रम में इस लोकसभा चुनाव से पहले जिसमें वे 400 पार सीटें जीतने जा रहे थे नान बायलोजिकल ( हम आप जैसे इंसान नहीं, अवतार) बन गए।
इन्हीं बड़ी-बड़ी बातों की वजह से दुनिया में उनकी छवि खराब हुई है। और इसका प्रभाव देश पर पड़ा। पाकिस्तान कभी किसी मुकाबले में हमसे बराबरी पर भी नहीं आ पाया। और अब ट्रंप उसकी लीडरशिप को ग्रेट और स्ट्रांग बता रहे हैं।
दुनिया भर में हमें अपनी छवि सुधारने के लिए कई प्रतिनिधि मंडल भेजना पड़े। मगर क्या हुआ? उसके बाद भी ट्रंप यह कह रहे हैं। वाशिंगटन पोस्ट जो दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित अखबारों में से है ऐसी रिपोर्ट छापता है जिससे भारत की छवि खराब होती है। इस गोदी मीडिया की तो क्या होना? इसकी तो अब कोई बची नहीं है। इसके मालिक ही पूछते हैं कि वह खबर सच्ची थी?
जी सर, हमने दिखाई थी। अरे इसलिए तो पूछ रहे हैं कि तुमने दिखाई थी! दो कौड़ी की क्रेडिबलटी नहीं बची है और उसका असर यह है कि देश की छवि विदेश में खराब हो रही है। 11 साल में जितना झूठ बोला गया सब सामने आ रहा है। मगर अफसोस यह है कि देश की कीमत पर। देश विदेशों में बदनाम हो गया। एक देश साथ खड़ा हुआ नहीं है और ट्रंप का कोई भरोसा नहीं है कि वह अभी कितनी बार और क्या बोलेंगे!
जी-7 में कनाडा जाने को तैयार हो गए। आत्मसम्मान की कोई चिन्ता किए बिना। लेट इनविटेशन अपमान होता है। मूल लिस्ट में आप शामिल नहीं थे। जैसे हमारे यहां सभा समारोहों में होता है। फलाने नहीं आए, फलाने को मंच पर बिठा लो।
जाएं कनाडा! मगर वहां इस बार मीडिया से बचना इतना आसान नहीं होगा। और दूसरे शक्तिशाली देशों के प्रमुख भी अब कोई सहानभूति वाला रुख नहीं दिखा रहे हैं। देश की इज्जत बनी रहे। बस यही कामना है!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)