तेलुगुभाषी दो राज्यों में कड़ी है चुनावी टक्कर
दक्षिण के दो तेलुगुभाषी राज्यों में मतदान होने के बाद तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में जून के पहले सप्ताह में आने वाले परिणामों के बारे में बहुत सारी अटकलें लगाई जा रही हैं;
- किंशुक नाग
तेलंगाना गठन की केसीआर की योजना सफल रही क्योंकि उन्हें राज्य में मुख्य विपक्षी कांग्रेस पार्टी का समर्थन प्राप्त था। कांग्रेस ने नए राज्य के गठन को मंजूरी दी और चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए केसीआर की पार्टी टीआरएस के साथ गठबंधन किया। नायडू उस समय भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा थे।
दक्षिण के दो तेलुगुभाषी राज्यों में मतदान होने के बाद तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में जून के पहले सप्ताह में आने वाले परिणामों के बारे में बहुत सारी अटकलें लगाई जा रही हैं। क्या भाजपा तेलंगाना के कुछ शहरी हिस्सों से आगे अपनी पैठ बढ़ायेगी या कांग्रेस अपना नया गढ़ बनाए रखेगी? आंध्र में अब भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल चंद्रबाबू नायडू भाजपा की पूर्व सहयोगी वाईएसआरसीपी के जगन रेड्डी से किस तरह मुकाबला कर पाएंगे? चुनावी जंग में नए गठबंधनों ने पुराने गठबंधनों की जगह ले ली है इसलिए तेलंगाना की 17 लोकसभा सीटों और आंध्रप्रदेश की 25 लोकसभा सीटों पर इस तरह के सवाल उठ रहे हैं। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी इसे अपना 'कुरुक्षेत्र' कहते हैं। वाईएसआरसीपी सभी 25 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है और लोकसभा के साथ ही हो रहे विधानसभा चुनाव जीतकर आंध्र प्रदेश पर अपना कब्जा बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है।
तेलंगाना राज्य के गठन के लिए 2014 में आंध्रप्रदेश को विभाजित किया गया था। तेलंगाना पर पिछले दस वर्षों से के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) के नेतृत्व में तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) ने शासन किया है। मूल रूप से चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के एक महत्वपूर्ण सदस्य केसीआर ने पार्टी में अपना कोई भविष्य न होने के कारण बगावत कर दी और तेलंगाना के मुद्दे का प्रचार किया। तेलंगाना राज्य की मांग 70 के दशक की शुरुआत से ही रही है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तेलंगाना के पीवी नरसिम्हा राव को एकीकृत आंध्रप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर यह संकट टाला था। पीवी नरसिम्हा राव दो दशक बाद प्रधानमंत्री बने। स्थानीय लोग एनटी रामाराव के 'आंध्रीकरण' के विचारों से परेशान थे क्योंकि इसका मतलब तेलंगाना क्षेत्रों में आंध्र संस्कृति का आयात था इसलिए 1990 के दशक में पृथक तेलंगाना का मुद्दा एक बार फिर सामने आया। दोनों क्षेत्र खान-पान सम्बन्धी शैलियों और स्थानीय संस्कृतियों में भिन्न थे और यहां तक कि तेलुगु बोलने के उनके लहजे में भी फर्क था।
तेलंगाना गठन की केसीआर की योजना सफल रही क्योंकि उन्हें राज्य में मुख्य विपक्षी कांग्रेस पार्टी का समर्थन प्राप्त था। कांग्रेस ने नए राज्य के गठन को मंजूरी दी और चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए केसीआर की पार्टी टीआरएस के साथ गठबंधन किया। नायडू उस समय भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा थे। लेकिन केसीआर ने कांग्रेस के साथ गठबंधन का दिखावा करते हुए भी तेलंगाना के गठन के बाद 2014 में हुए चुनावों में कांग्रेस को धोखा दिया। केसीआर ने जनता को यह दिखाने के लिए सफलतापूर्वक लॉबिंग की थी कि वे तेलंगाना के एकमात्र निर्माता थे और क्योंकि उन्होंने इसके लिए कड़ी मेहनत की थी, आमरण अनशन भी किया था इसलिए वे इसका श्रेय लेने के हकदार थे। इसी भावना का फायदा उठाते हुए केसीआर ने विधान सभा की कुल 119 सीटों में से 63 सीटों पर जीत हासिल की। कांग्रेस पार्टी 21 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही। 2019 में केसीआर ने फिर से विजय प्राप्त की थी।
सत्ता में आने के बाद केसीआर ने तेलंगाना सरकार को अपनी निजी जागीर बना लिया और बेटे केटी रामाराव और भतीजे हरीश राव को महत्वपूर्ण मंत्री बनाया। उनकी बेटी के. कविता सांसद बनी। कई मंत्री और महत्वपूर्ण नेता उनकी ही वेलमा जाति से थे। वेलमा एक समृद्ध जाति है लेकिन उनकी संख्या बहुत ज्यादा नहीं हैं। यहां तक कि उन्होंने वेलमा जाति के व्यवसायियों को भी बढ़ावा दिया। तेलंगाना के लिए उनकी लड़ाई में समाज के सभी वर्गों के नागरिकों ने केसीआर का समर्थन किया था। लेकिन सत्ता में आने के बाद केसीआर ने खुद को इन वर्गों से काट लिया। उन्हें इस बात का एहसास नहीं हुआ कि इस वजह से उन्होंने अपना आधार खो दिया है। पहले हैदराबाद निज़ाम द्वारा शासित एक सामंती गैर लोकतांत्रिक राज्य था जिसके एक हिस्से पर तेलंगाना राज्य ने कब्ज़ा कर लिया था। स्वतंत्र भारत एक लोकतांत्रिक राज्य था लेकिन लोगों की प्रकृति और नैतिकता नहीं बदली थी। ऐसा लगता है कि केसीआर की सोच थी कि वे एक राजकुमार की तरह व्यवहार करके लोगों से दूर रहकर राज्य पर प्रभावी ढंग से शासन कर सकते हैं लेकिन नए राज्य को संसाधनों की आवश्यकता थी। तेलंगाना को यह कैसे मिलेगा? उनके बेटे केटी रामाराव हैदराबाद के व्यावसायीकरण की योजना के साथ आए। उन्होंने यह बात तब कही थी जब 2014 में उनसे पूछा गया था कि नवगठित राज्य के लिए वे संसाधन कैसे जुटाएंगे। उन्होंने कहा था -'हम हैदराबाद का इतना विस्तार करेंगे कि यह एक तरह से पूरे राज्य को कवर करेगा'।
इस विस्तार योजना की शुरुआत पूर्व मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने की थी जिन्होंने हाईटेक सिटी और विश्वस्तरीय हवाई अड्डे का निर्माण तथा शिक्षा व आईटी क्षेत्र में नए निवेश की योजना बनाई। केसीआर शासन अचल संपत्ति, इमारतों और एक वित्तीय जिले की आकर्षक योजनाओं के साथ आगे बढ़ा। इस सब के कारण जमीनों की कीमतें बढ़ गईं और बैंगलुरू व मुंबई सहित अन्य स्थानों से नए निवेशकों को आमंत्रित किया गया। शहर के बड़े हिस्सों को कवर करने के लिए एल एंड टी द्वारा एक नई मेट्रो रेल भी शुरू की गई थी। अन्य मेट्रो शहरों से आने वाले नागरिक इस चमक-धमक से अत्यधिक प्रभावित हुए। इस सब ने सरकार के राजस्व में वृद्धि की और अधिक सड़कों, बांधों और सिंचाई कार्यों को बनाने में खर्च किया गया। फिर भी ठेकेदारों के कामों पर प्रभावी नियंत्रण रखने में सरकार विफल रही। नतीजतन, जर्जर सड़कों और सिंचाई व्यवस्था के कारण जनता में नाराजगी मालूम होती है जो चुनाव परिणामों में दिखाई दे सकती है।
आंध्रप्रदेश शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है। यहां तक कि आपातकाल के ठीक बाद उत्तर भारत से बेदखल होने के बावजूद पार्टी ने आंध्र प्रदेश में अपनी स्थिति बनाए रखी। विभाजन ने आंध्र में कांग्रेस को ध्वस्त कर दिया। पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली और तत्कालीन कई केंद्रीय मंत्री चुनाव हार गए। संयुक्त आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे टीडीपी के नेता चंद्रबाबू नायडू चुनाव जीत गए। नए आंध्रप्रदेश की कोई राजधानी नहीं थी और लोग हैदराबाद स्थानातंरित हो गए थे। अब नए मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने अपनी राजधानी स्थापित करने के लिए एक ग्रीन फील्ड क्षेत्र अमरावती पर ध्यान केंद्रित किया। कृष्णा नदी के तट पर अमरावती में उपजाऊ भूमि है। नायडू तमाम विरोधों के बावजूद इसे ही राजधानी बनाने पर अड़े थे। यह क्षेत्र अमीर कम्मा (नायडू की जाति) के नियंत्रण में था जो अमेरिका स्थानातंरित हो गए थे। नई राजधानी स्थापित करने के पीछे नायडू का उद्देश्य सिंगापुर और जापान से निवेश आकर्षित करने का था। नायडू ने तर्क दिया कि अमरावती एक पारंपरिक बौद्ध केंद्र था इसलिए जापान, थाईलैंड जैसे देश आकर्षित होंगे। जगन रेड्डी ने हमेशा इसका विरोध किया है। उनका मानना था कि कम्मा व्यावसायिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए अमरावती को चुना गया था। कम्मा रेड्डी बंधुओं की प्रतिद्वंद्वी जाति है और दोनों समूह एक-दूसरे के घोर विरोधी हैं। उल्लेखनीय है कि आंध्रप्रदेश के दिवंगत मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी के बेटे जगन रेड्डी अपने पिता के निधन के बाद कांग्रेस से अलग हो गए थे।
2019 के चुनावों में जगन रेड्डी ने जीत हासिल की। उनकी पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने 175 सीटों में से 151 सीटों पर कब्जा कर लिया। जगन रेड्डी ने राजधानी को कहीं अधिक विकसित शहर विशाखापत्तनम में स्थानांतरित करने की योजना बनाई और इसे अपने नए मुख्यालय के रूप में घोषित किया। लेकिन अमरावती में विधानसभा और उच्च न्यायालय की इमारतें तैयार होने के कारण यह कदम आंशिक ही हो सकता है। आंध्रप्रदेश विचित्र स्थिति में फंस गया है। लोगों को आशा है कि परिणाम घोषित होने के बाद राजधानी को अंतिम रूप देकर प्रदेश आगे बढ़ सकता है। जगन रेड्डी को उम्मीद है कि लोगों को मुफ्त या सस्ता अनुदान देने की उनकी नीति भी उन्हें चुनावों में स्वीप करने में मदद करेगी।
दक्षिण भारत में पैठ जमाने की कोशिश कर रही भाजपा ने हाल ही में वाईएसआरसीपी के साथ अपने पहले के अलिखित गठबंधन को तोड़ते हुए टीडीपी के साथ चुनावी गठबंधन किया है। फिनिशिंग लाइन तक पहुंचने की होड़ में तेलंगाना और आंध्र में भाजपा की उम्मीदें अधिक बढ़ गयी हैं। वाईएसआरसीपी अपनी जगह बनाए रखना चाहती है वहीं तेलंगाना में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने वाली कांग्रेस सत्ता में अधिक हिस्सेदारी चाहती है जबकि भाजपा उनके किले में सेंध लगाने की फिराक में है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं। सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)