सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव को पिलाया कानून का काढ़ा
योग गुरु के रूप में मिली लोकप्रियता के सहारे आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण एवं बिक्री का पतंजलि के नाम से बड़ा व्यवसायिक साम्राज्य खड़ा करने वाले बाबा रामदेव तथा उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण को सुप्रीम कोर्ट ने कानून के महत्व तथा ताकत का एहसास कराया;
- डॉ. दीपक पाचपोर
आश्चर्य की बात है कि अगर चुनावी बॉन्ड्स की यह ऐसी ही शानदार योजना थी तो उसका विवरण देने में आनाकानी क्यों की जा रही थी? सुप्रीम कोर्ट के मांगने पर भारतीय स्टेट बैंक ने चार माह का समय मांगा था। फटकार पड़ने पर वही जानकारी दो-तीन दिनों में ही उपलब्ध हो गई और केन्द्रीय चुनाव आयोग ने उसे अपनी वेबसाइट पर डाल भी दिया।
मीडिया के ही नहीं, अमूनन सभी तरह के सवालों से बचकर रहने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को एक तमिल न्यूज़ चैनल को साक्षात्कार देकर सभी को चौंका दिया। लोग आश्चर्यचकित इसलिये तो हैं ही कि मोदी ने मीडिया से बात की, इस बात से कहीं अधिक चकित हैं कि उन्होंने ऐसी योजना पर अपनी पीठ थपथपाई है जिसे देश के सर्वोच्च न्यायालय ने 'असंवैधानिक' करार दिया है। कायदे से ऐसी योजना पर तो किसी भी देश के पीएम को शर्मिंदगी होनी चाहिये और देश से माफी मांगनी चाहिये थी कि उन्होंने ऐसी योजना लाई जिसके बारे में न्यायपालिका का सर्वोच्च मंच ऐसा मानता है। बहरहाल, अपने दस वर्षीय कार्यकाल की समापन बेला में खड़े मोदी की केवल इस बात के लिये तारीफ़ नहीं करनी चाहिये कि उन्होंने एक विवादास्पद योजना इलेक्टोरल बॉन्ड्स पर बात की है क्योंकि अब तक देश ने उनके आम खाने के तरीके, जेब में बटुवा रखने या न रखने, 18-18 घंटे काम करने के बावजूद न थकने का रहस्योद्घाटन करने, पसीने से चेहरे को चमकाने का राज बताने या फिर मगरमच्छ पकड़कर घर ले आने जैसे अपने हैरतअंगेज़ कारनामे बतलाते हुए ही देखा-सुना है। अपवादस्वरूप सुप्रीम कोर्ट के दबाव में मणिपुर की घटना पर कुछ मिनटों का बयान या अमेरिका की मीडिया कांफ्रेंस में पत्रकार बिरादरी से एकमात्र सवाल लेने वाले मोदी अगर किसी ज्वलंत विषय पर लम्बी बात करते हैं तो स्वाभाविकत: उसके मायने समझने की ज़रूरत है।
मोदी के साक्षात्कार की कुछ बातें जो रेखांकित किये जाने योग्य हैं, उनमें से पहला तो उनका यह कहना कि 'जो लोग आज इलेक्टोरल बॉन्ड्स को लेकर नाच रहे हैं वे कल पछताएंगे।' सवाल यह है कि उनका इशारा किसकी ओर है? क्या सुप्रीम कोर्ट की ओर उनका संकेत है या फिर उसे चेतावनी? ऐसा इसलिये क्योंकि इस योजना से भाजपा को छोड़कर कोई भी नाच नहीं रहा था। विपक्षी दलों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सभी नाराज़ थे, सो उनमें से किसी के नाचने का सवाल ही नहीं। उल्टे, इसे लेकर लोगों की चिंता यही थी कि यह योजना काले धन को सफेद करने तथा अपने कारोबार के लिये शासकीय कृपा पाने का माध्यम बन गई थी। अब तो इस बाबत जो जानकारियां सामने आ रही हैं वे भी यही बतलाती हैं कि योजना एक तरह से सरकारी वसूली का तंत्र बन गया था। फिर, इसमें पैसा इक_ा करने के लिये जांच एजेंसियों को भी लगा दिया गया था।
यह भी आश्चर्य की बात है कि अगर चुनावी बॉन्ड्स की यह ऐसी ही शानदार योजना थी तो उसका विवरण देने में आनाकानी क्यों की जा रही थी? सुप्रीम कोर्ट के मांगने पर भारतीय स्टेट बैंक ने चार माह का समय मांगा था। फटकार पड़ने पर वही जानकारी दो-तीन दिनों में ही उपलब्ध हो गई और केन्द्रीय चुनाव आयोग ने उसे अपनी वेबसाइट पर डाल भी दिया। यह अलग बात है कि अब एक से बढ़कर एक किस्से सामने आ रहे हैं जिनसे पता चलता है कि कैसे उद्योगपतियों एवं कारोबारियों को जांच एजेंसियों के माध्यम से धमकाकर या जेलों का डर दिखलाकर उनसे चंदा लिया गया। यह भी पता चलता है कि जिन लोगों ने भाजपा को चंदा दिया उन्हें ठेके या छूटें दी गयीं। उसी साक्षात्कार में मोदी का दावा था कि 'इस योजना के कारण आज चंदे के स्रोत पता चले हैं जबकि पहले की सरकारों में पता ही नहीं चलता था कि किनसे सियासी दलों को चंदा मिलता था।' मोदी का अगर ऐसा पुनीत उद्देश्य था तो आखिर स्टेट बैंक के साथ व्यवसायिक महासंघों को क्या आपत्ति थी कि उन लोगों की जानकारी न दी जाये जिन्होंने ये बॉन्ड्स खरीदे हैं। अगर मोदी पारदर्शिता के इतने ही हिमायती हैं तो वे क्या वे पीएम केयर फंड की भी सारी जानकारी को सार्वजनिक करेंगे? लोग इस बात को कैसे भूल सकते हैं कि इसी सरकार ने चुनावी फंड्स की ही तरह केयर फंड सम्बन्धी जानकारी को भी लोगों से अछूता रखने के प्रावधान कर रखे हैं। वैसे अब तो सूचना के अधिकार और उसके साथ संस्थाओं के अधिकारियों को इतना कमजोर कर दिया गया है कि कोई सामान्य सी जानकारी लेने में भी पापड़ बेलने पड़ते हैं। यह भी नहीं भूलना चाहिये कि चुनावी बॉन्ड्स खरीदकर राजनीतिक दलों को आर्थिक मदद देने वालों के बाबत यानी धन के स्रोत जो पता चले हैं उसका श्रेय मोदी या उनकी सरकार को नहीं वरन उच्चतम न्यायालय को जाता है जिसने सम्बन्धित पक्षों के कान पकड़कर उनसे जानकारी ली और जनता तक उसके पहुंचने के प्रबन्ध किये हैं।
इंटरव्यू में मोदी से पूछा गया कि 'क्या उन्हें इलेक्टोरल बॉन्ड्स योजना लाने का पछतावा है और भाजपा को इससे शर्मसार होना पड़ा है?' मोदी कहते हैं कि 'आखिर मैंने ऐसा क्या किया है कि जिसका मुझे पछतावा हो या जिसके चलते भाजपा को शर्मिंदगी उठानी पड़े?' उनके इस जवाब से स्पष्ट हो जाता है कि मोदी न तो पारदर्शिता के प्रति गम्भीर हैं, न उन्हें लोकतांत्रिक तकाज़ों का एहसास है, न वे नैतिकता के हिमायती हैं और न ही चुनावी सुधार में उनकी दिलचस्पी है। अब तो साफ तौर पर यह भी सामने आ गया है कि सरकारी जांच एजेंसियों और निर्वाचन आयोग के बल पर भाजपा न सिर्फ मालामाल हुई है बल्कि उनके बल पर उसने बड़ी संख्या में दलबदल करा कर देश भर में राजनैतिक अराजकता फैलाई है।
निर्वाचित विरोधी दलों की राज्य सरकारों को 'ऑपरेशन लोटस' के नाम पर गिराने या अल्पमत होने के बाद भी अपनी सरकारें बनाने वाले मोदी चाहे इसी साक्षात्कार में कहते रहें कि 'सरकार अपनी एजेंसियों को कभी निर्देशित नहीं करती,' पर अब हर कोई जानता है कि लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया यानी कि चुनाव ही गहन संदेहों के घेरे में है। उसका आयोजन करने वाले केन्द्रीय निर्वाचन आयोग की कार्यपद्धति पर भी कई सवालिया निशान हैं। भाजपा की सुविधा के अनुरूप चुनावी कार्यक्रम बनाने से लेकर अपनी सभी तरह की कार्रवाइयों में भाजपायी व गैर भाजपायी दलों के बीच भेदभाव करने के चलते निर्वाचन आयोग ने भी देश में लोकतंत्र को कमजोर किया है। सरकार के ईवीएम के प्रति प्रेम का कारण सभी जानते हैं।
यह भी सवाल है कि आखिर मोदी ने दक्षिण भारत के एक चैनल से ही संवाद करना क्यों पसंद किया जबकि उसका पिछलग्गू मीडिया तो दिल्ली में बैठा हुआ है और उनके समर्थकों का प्रमुख क्षेत्र 'हिन्दी हार्ट लैंड' कहलाने वाला प्रखंड तकरीबन एक दर्जन राज्यों में फैला है। इसकी बजाये दक्षिण भारत में बैठकर मोदी अपने लोकतांत्रिक कृत्यों को ऐसे वक्त पर तर्कसंगत बतला रहे हैं जब तमाम तरह के अनुमान, विश्लेषण एवं ओपिनियन पोल कह रहे हैं कि दक्षिण भाजपा का सूपड़ा साफ होना लगभग तय है। इसके विपरीत भाजपा की उम्मीद है कि उसका 370 तथा गठबन्धन (एनडीए) के साथ मिलकर 400 पार का नारा वह दक्षिण के बल पर हासिल करेगी। केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी इस बात को कह चुके हैं कि दक्षिण भारत के बल पर भाजपा का लक्ष्य पूरा होगा और मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे। इसलिये सम्भवत: मोदी उन राज्यों को अधिक महत्व देना चाहते होंगे। जो हो, असली बात यह है कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स को लेकर मोदी ने जो कहा है वह जनता जानती है कि सत्य नहीं है; और खुद मोदी भी जानते ही होंगे।
(लेखक देशबन्धु के राजनीतिक सम्पादक हैं)