इश्तिहार जैसी राजनीति की कहानियां

इसमें थोड़ा फेरबदल कर अगर मोहब्बत की जगह राजनीति करने की गुस्ताखी की जाए, तो आज के माहौल में यह शेर बिल्कुल फिट बैठता है;

Update: 2023-05-09 01:06 GMT

मशहूर शायर बशीर बद्र का शेर है- मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो, जो सुना नहीं वो कहा करो

इसमें थोड़ा फेरबदल कर अगर मोहब्बत की जगह राजनीति करने की गुस्ताखी की जाए, तो आज के माहौल में यह शेर बिल्कुल फिट बैठता है। मौजूदा दौर की सियासत में ऐसी ही कहानियां चल रही हैं। कहा कुछ जाता है और आशय कुछ और होता है। और जो असल मकसद होता है, वो कभी सीधे शब्दों में बयां ही नहीं किया जाता। शब्दों के इस खिलवाड़ से राजनैतिक बाजियां कैसे पलटी जाती हैं, इसके कुछ उदाहरण हाल ही में सामने आए हैं। महाराष्ट्र में राकांपा के मुखिया शरद पवार ने पहले इस्तीफा देने का ऐलान किया, जिससे उनके समर्थक भावुक होकर उनसे पद पर बने रहने की अपील करने लगे।

राजनीति और दल में उनका क्या ओहदा है, राज्य को उनकी कितनी जरूरत है, इसकी व्याख्याएं की जाने लगीं। राकांपा की बैठकों का दौर चला और शरद पवार से इस्तीफा वापस लेने का आग्रह किया गया। और फिर शरद पवार ने अपने समर्थकों की भावनाओं का सम्मान करते हुए इस्तीफा वापस ले लिया, अब वे फिर से राकांपा के प्रमुख हैं। श्री पवार के इस कदम से एक तरफ उनकी बेटी सुप्रिया सुले का दबदबा बढ़ गया, क्योंकि शरद पवार के बाद पार्टी की कमान उन्हें ही देने की संभावनाएं सबसे अधिक जतलाई जा रही थीं। और दूसरी तरह भतीजे अजीत पवार को यह सख्त संदेश दे दिया गया कि अगर वे पार्टी और पार्टी सुप्रीमो के खिलाफ जाएंगे, तो उनके राजनैतिक भविष्य के लिए सही नहीं होगा। राकांपा में कोई उन्हें स्वीकार नहीं करेगा और भाजपा में भी उन्हें सम्मानजनक स्थान नहीं मिलेगा। अगले चुनावों के पहले पार्टी की अंदरूनी खटपट को शरद पवार ने बड़ी चालाकी से शांत करा दिया। कुछ ऐसा ही खेल अब राजस्थान में हुआ है। बल्कि यहां तो अशोक गहलोत ने अपने खिलाफ उठ रहे बगावती सुरों को शांत करने के साथ विपक्षी दल भाजपा के लिए भी समस्या खड़ी कर दी।

धौलपुर में एक जनसभा में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बड़ा दावा किया कि 2020 में जब तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने अपने समर्थक विधायकों के साथ बगावत की थी तो भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल और विधायक शोभरानी कुशवाह ने उनकी सरकार को बचा लिया। श्री गहलोत ने केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, धर्मेंद्र प्रधान और गजेंद्र शेखावत पर गंभीर आऱोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने बगावत करने वाले विधायकों को पैसे बांटे और सरकार गिराने का षड्यंत्र रचा। श्री गहलोत ने ये दावा भी किया कि उन्होंने बागी विधायकों को भाजपा को पैसे वापस करने के लिए कहा है और अगर वे इंतजाम नहीं कर सकते तो अशोक गहलोत खुद या एआईसीसी से कह कर पैसे वापस करने का प्रबंध करेंगे। देश के कई राज्यों में धन के लेन-देन पर सरकारें बनाई और गिराई गई हैं।

लेकिन ये शायद पहला मौका है जब चुनिंदा व्यक्तियों के नाम लेकर उन पर सीधे इल्जाम लगाए जा रहे हों। अशोक गहलोत जैसे कद्दावर और अनुभवी नेता को पता है कि राजनीति में कब और कैसे कोई बात कहना चाहिए। जब वे जनसभा में यह रहस्योद्घाटन कर रहे थे, तो इसे निश्चित तौर पर जुबान का फिसलना नहीं कहा जा सकता। बल्कि श्री गहलोत ने इस बात को कहने के लिए सही समय का इंतजार किया।

राजस्थान में अगले कुछ महीनों में चुनाव हैं और कांग्रेस इस बार इतिहास बदलते हुए अपनी सत्ता को कायम रखना चाहती है। लेकिन पार्टी के भीतर शक्ति के दो केंद्र बनने से कांग्रेस के लिए चुनौती बढ़ रही है। सचिन पायलट ने 2020 की बगावत के बाद उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दोनों पद गंवा दिए, लेकिन मुख्यमंत्री बनने की उनकी महत्वाकांक्षा चुनाव पास आते ही फिर उछाल मारने लगी है। इसलिए वे एक बार अपने समर्थक विधायकों के साथ शक्ति प्रदर्शन करने लगे हैं। कुछ दिनों पहले उन्होंने वसुंधरा सरकार के भ्रष्टाचार की जांच के नाम पर एक दिन का अनशन कर फिर से बगावत के संकेत ही दिए थे। अशोक गहलोत ने वसुंधरा सरकार के दौरान हुए भ्रष्टाचार के आरोप पर कोई जांच नहीं की और अब तो उन्होंने अपनी सरकार बचाने का श्रेय भी वसुंधरा राजे को दे दिया है। उन्होंने कहा कि जब मेरी सरकार गिराने की कोशिश हो रही थी, तब कैलाश मेघवाल और वसुंधरा राजे ने कहा कि हमारे यहां पैसे के बल पर, चुनी हुई सरकारों को गिराने की कभी परंपरा नहीं रही है।

अशोक गहलोत के इस खुलासे से अब भाजपा के लिए मुसीबत खड़ी हो गई है। राजस्थान भाजपा में पहले ही सतीश पुनिया और वसुंधरा राजे के गुटों के बीच वर्चस्व की होड़ है। और अब पुनिया गुट, राजे गुट पर हावी हो सकता है। इधर वसुंधरा राजे की फिर से मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा जाहिर है, लेकिन श्री गहलोत के बयान से पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा औऱ वफादारी पर सवाल खड़े हो सकते हैं। इसलिए उन्होंने एक लिखित बयान में कहा कि चुनाव में हार से भयभीत होकर अशोक गहलोत झूठ बोल रहे हैं।

वसुंधरा राजे अब डैमेज कंट्रोल में जुट गई हैं, जबकि अशोक गहलोत ने अपनी छवि और सरकार को हुए नुकसान की भरपाई इस बयान से काफी हद तक कर ली है। भाजपा में अविश्वास का माहौल उनके बयान से बन गया है, वहीं सचिन पायलट के लिए भाजपा के रास्ते भी बंद हो गए हैं, क्योंकि उनका साथ देने पर भाजपा को नुकसान हो सकता है। सचिन पायलट के समर्थक विधायकों पर धन लेने का आऱोप भी गंभीर है, जिसके लिए अब एफआईआर दर्ज कराने की बात उठ रही है। अगर ऐसा कुछ हुआ तो इन विधायकों के राजनैतिक भविष्य पर संकट होगा। यानी अब गहलोत खेमे के खिलाफ जाने का दुस्साहस कोई नहीं करेगा।

अशोक गहलोत ने शब्दों की बाजीगरी से कई सारी दिक्कतों को एक साथ साध लिया है। इस डेढ़ इश्किया राजनीति का असर चुनाव पर क्या रहता है, ये देखना दिलचस्प होगा।

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