हमीरपुर की हार में भी जीत देख सकती है सपा

 उत्तर प्रदेश की हमीरपुर विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में भले ही भाजपा विजयी हुई है, लेकिन सपा अपनी हार में भी जीत देख सकती है;

Update: 2019-09-28 00:56 GMT

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की हमीरपुर विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में भले ही भाजपा विजयी हुई है, लेकिन सपा अपनी हार में भी जीत देख सकती है।

मतगणना के घोषित नतीजे के अनुसार, भाजपा प्रत्याशी युवराज सिंह ने 17867 मतों के अंतर से निकटतम प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी के डॉ. मनोज कुमार प्रजापति को हरा दिया। युवराज सिंह को कुल 74409 वोट मिले जो कि कुल पड़े मतों का 38.55 प्रतिशत है, जबकि दूसरे नम्बर पर रहे सपा के डॉ. मनोज कुमार को कुल पड़े मतों में से 29.29 प्रतिशत यानी 56542 वोट मिले। बसपा के नौशाद अली तीसरे नम्बर पर रहे। उन्हें कुल 28798 यानी 14.92 प्रतिशत वोट मिले। कांग्रेस उम्मीदवार हरदीपक निषाद चौथे नम्बर पर रहे, और उन्हें 8.34 प्रतिशत यानी 16097 वोट मिले।

लोकसभा चुनाव में सपा ने पांच और बसपा ने 10 सीटें जीती थी, और इसके बाद दोनों दलों का गठबंधन टूट गया था। इस दौरान बसपा ने सपा के वोट बैंक पर सवाल उठाए थे। अब हमीरपुर उपचुनाव में बसपा ने पहली बार प्रत्याशी उतारा। बसपा के नौशाद अली ने इस चुनाव में 28749 वोट हासिल किए। तीसरे तम्बर तो आए ही साथ ही सपा से करीब 15 प्रतिशत वोट भी कम रहा।

लोकसभा चुनाव में सपा से ज्यादा सीटें जीतने वाली बसपा भले ही मुख्य विपक्षी होने का दावा करती रही है, लेकिन हमीरपुर के परिणाम ने सपा के लिए एक उम्मीद जगाई है।

इस उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार की जीत जरूर हुई है, मगर उनका वोट प्रतिशत 2017 के आम चुनाव के मुकाबले कम हुआ है और सपा का वोट प्रतिशत बढ़ा है।

2017 के विधानसभा चुनाव में हमीरपुर की यह सीट भाजपा के अशोक कुमार सिंह चंदेल ने 8655 के मतों के अंतर से जीती थी। चंदेल को उस चुनाव में कुल 44.49 प्रतिशत वोट मिले थे। उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी सपा के डॉ. मनोज कुमार प्रजापति को 24.97 प्रतिशत वोट मिले थे। बसपा 24.29 प्रतिशत वोट लेकर तीसरे नम्बर पर थी।

भाजपा ने इस जीत के साथ उपचुनाव में लगातार मिल रही हारों के सिलसिले को रोक दिया है। लेकिन सपा के लिए अपनी रणनीति बदलकर और मेहनत करके अच्छे परिणाम लाने का संकेत इसमें छिपा हुआ है।

हमीरपुर से भाजपा विधायक अशोक चंदेल को एक मुकदमे में सजा सुनाए जाने के बाद चुनाव आयोग ने उनकी सदस्यता खत्म कर दी थी, जिसके कारण यहां उपचुनाव कराना पड़ा है।

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