मोदी की अमेरिका यात्रा : पिक्चर अभी बाकी है!
जो बाइडेन के सत्ता में आने से पहले ही पेंटागन इसका ब्लू प्रिंट तैयार कर चुका था कि दोनों देशों की सेनाएं कटिंग एज टेक्नालॉजी के क्षेत्र में सहकार करेंगी;
- पुष्परंजन
जो बाइडेन के सत्ता में आने से पहले ही पेंटागन इसका ब्लू प्रिंट तैयार कर चुका था कि दोनों देशों की सेनाएं कटिंग एज टेक्नालॉजी के क्षेत्र में सहकार करेंगी। बाइडेन प्रशासन ठीक उसी ब्लू पिंट पर आगे बढ़ रहा है। बाहर से जो चंद अमेरिकी ड्रोन हमें दीख रहे हैं, वो केवल ट्रेलर भर हैं, पिक्चर अभी बाक़ी है!
ठीक से याद कीजिए, जब मेडिसन स्क्वायर गार्डन में 29 सितंबर, 2014 को प्रधानमंत्री मोदी ने 19 हज़ार की भीड़ को संबोधित कर कीर्तिमान स्थापित किया था। 22 सितंबर, 2019 को ह्यूस्टन में 'हाउडी मोदी' मेगा शो को भी याद कीजिए। उस वास्ते 50 हज़ार टिकट बिक गये थे। इनके टक्कर का ही शो करने की योजना मोदी भक्त डॉ. भारत बरई ने बना ली थी। डॉ. बरई कैंसर विशेषज्ञ हैं। उन्हें इस बार शिकागो के स्टेडियम में 40 हज़ार लोगों को लाना था, मगर उसे स्थगित कर वाशिंगटन स्थित इंटरनेशनल ट्रेड सेंटर के रोनाल्ड रीगन सभागार में आयोजन निर्धारित हुआ है, जहां केवल 830 लोग जुटेंगे। डॉ. भारत बरई ने बयान दिया कि इस स्टेडियम के सारे टिकट बिक चुके। जो लोग पीएम मोदी को देख-सुन नहीं पायेंगे, उनसे क्षमा प्रार्थी हूं। आख़िर ऐसा हुआ क्यों? इसकी अंतर्कथा कोई खुलकर बता नहीं रहा। मगर, कुछ लोग यह कह रहे हैं कि राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा का यह आफ्टर इफेक्ट है। अर्थात, मोदी की छवि अमेरिका में भी उतार पर है।
वाशिंगटन डीसी में 50 हज़ार से ऊपर की क्षमता वाले स्टेडियम की कमी नहीं है। वहां के आरकेएफ स्टेडियम में 56 हज़ार 692 दर्शक बैठ सकते हैं। एक और स्टेडियम 'सेंचुरी लिंक फील्ड ऑफ सीएटल' में 70 हज़ार दर्शक समा सकते हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि मोदी के कार्यक्रम में भीड़ जुटाने से बचने का इशारा नागपुर से हो गया था। अमेरिका में बहुतेरे हिंदू संगठनों में इस बार 2019 में हाउडी मोदी जैसा हाहाकारी तेवर देखने को नहीं मिल रहा।
21 से 24 जून की अमेरिका यात्रा की आइटिनररि को ध्यान से देखिये, तो मोदी को सुनने-देखने वालों की संख्या में काफी कमी होती नज़र आ रही है। वाशिंगटन के विलार्ड इंटरकांटीनेंटल, जहां पीएम मोदी प्रवास करेंगे, 600 भारतीय कम्युनिटी मेंबर 'फ्र ीडम प्लाज़ा' पर उनके दर्शन कर सकेंगे। ओवरसीज़ फ्रें ड्स ऑफ बीजेपी-यूएसए के अध्यक्ष अदापा प्रसाद का कहना है कि यहां कश्मीर से कन्याकुमारी और पूरब से पश्चिम की थीम पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। 22 जून को व्हाइट हाउस के साउथ लॉन में 7 हज़ार इंडियन-अमेरिकन की मौजूदगी में प्रधानमंत्री मोदी और जो बाइडेन प्रकट होंगे। मोदी उसके बाद, जॉन एफ केनेडी सेंटर में चुनिंदा उद्योगपतियों से मिलेंगे। वाशिंगटन में ही 23 जून को शाम 6 बजे डॉ. भारत बरई की देखरेख में रोनाल्ड रीगन बिल्डिंग के सभागार में वह मुख्य कार्यक्रम है, जिसमें 830 इंडियन-अमेरिकन उपस्थित होंगे। अमेरिकी संसद के साझा सत्र को संबोधित करना जनता से जुड़ा कार्यक्रम नहीं है।
2010 में 17.8 लाख भारतीय मूल के लोग अमेरिका में थे। 2023 में वो संख्या 47 लाख को पार कर चुकी है। लगभग पौने तीन गुणा भारतीय आबादी के अमेरिका में बढ़ने का कारण क्या पीएम मोदी हैं? या सब के सब मोदी समर्थक हैं? भारतीय चैनलों ने ख़बरों की जिस तरह नाकेबंदी की है, उससे यही लगता है कि मोदी समर्थक इंडियन-अमेरिकन, बेशुमार हैं। अमेरिका में काम के अवसर की वजह से या भारत में जिस तरह की सामाजिक-आर्थिक विषमताओं ने देश छोड़ने को यहां के नागरिकों को बाध्य किया है? सोचिएगा इस सवाल पर। लेकिन एक बात है कि विगत दस वर्षों में इंडियन-अमेरिकंस के हिंदूकरण वाला अभियान ज़बरदस्त तरीक़े से चलाया गया है।
हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन, रिपब्लिकन हिंदू कोऑलिशन, इंटरनेशनल स्वामीनारायण सत्संग मंडल, हिंदूज़ फॉर ह्यूमन राइट्स, हिंदू टेंपल ऑफ ग्रेटर शिकागो, जगतगुरू कृपालुजी योग, हिंदू टेंपल ऑफ अटलांटा, वेदांता सोसाइटी, आरएसएस का अनुषंगी हिंदू स्वयंसेवक संघ, हिंदू यूनिवर्सिटी ऑफ अमेरिका, 'स्वामीनारायण मंदिर वसना' वगैरह-वगैरह। आप गिनते-गिनते थक जाएंगे। इसे दबाव समूह में बदलने का काम अवश्य हुआ है, जिसका प्रतिफ ल है कि व्हाइट हाउस तमाम विसंगतियों के बावज़ूद प्रधानमंत्री मोदी को डिनर पर आमंत्रित कर रहा है।
जब उत्साह नहीं है, पीएम मोदी शासन पर मानवाधिकार उल्लंघन के हवाले से इतने सारे सवाल हैं, फ़ि र जो बाइडेन अतिथि देवो भव: की मुद्रा में क्यों हैं? 1992 में बिल क्लिंटन चुनाव लड़ रहे थे। उनके रणनीतिकार थे जेम्स कारविल। उन्होंने चुनाव के समय एक जुमला छोड़ा- 'इट्स द इकोनॉमी स्टूपिड!' यहां भी जेम्स कारविल का बहुचर्चित जुमला आयद होता है। दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास का आकलन है कि अमेरिका के लिए एक अरब 40 करोड़ उपभोक्ताओं का बाज़ार है यह देश। अमेरिकी फू ड, ब्रेवरीज़, कृषि, रिटेल, होटल इंडस्ट्री, इश्योरेंस, सैन्य साज़ो-सामान क्या कुछ नहीं है, जिसे वो इस देश में बेच नहीं सकता? दूतावास के लोग अमेरिकन बिजनेस कम्युनिटी को बताते हैं कि दिल्ली और मुंबई में हमारे यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर के कार्यालय हैं, आपकी मदद को तत्पर हैं। एक बार मिल तो लें।
कॉमर्स मिनिस्ट्री का डाटा है, '2020-21 में भारत-अमेरिका के बीच उभयपक्षीय व्यापार 80.51 अरब डॉलर का था। 2022-23 में यह बढ़कर 128.55 अरब डॉलर का हो चुका है।' फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन के अध्यक्ष ए शक्तिवेल ने कहा कि फार्मास्यूटिकल्स, इंजीनियरिंग और रत्नाभूषण जैसे उत्पादों के बढ़ते निर्यात से भारत को अमेरिका में अपने शिपमेंट को आगे बढ़ाने में मदद मिल रही है। इस वित्तवर्ष में 28 अरब डॉलर का ट्रेड सरप्लस है। डाटा बताते हैं कि 2013-14 से 2020-21 तक चीन, भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर था। वही चीन अब नंबर टू पर है, अमेरिका पहले स्थान पर आ चुका है। तीसरे पर सऊदी अरब, और चौथे पर सिंगापुर भारत का व्यापारिक सहकार है। यदि भारत की आम जनता अमेरिका से बढ़ते व्यापार पर ग़ौर न फ़ रमाये, तो लगेगा कि लोकतंत्र और मानवाधिकार का प्रहरी अमेरिका, भारत में ज़ुल्मों-सितम को लेकर सबसे अधिक संवेदनशील है। लेकिन सच यह है कि अमेरिका एक व्यापारिक देश है, और वह जेम्स कारविल के जुमले से ज़रा भी डिगा नहीं।
कहावत है, 'खुशी में खाना, दु:ख में खाना, थक लगी तो खाना, मन खराब हुआ तो खाना, बात करना तो खाना, बात की शुरुआत करना तो खाना।' इस कथन के अनुरूप ही अमेरिका के नवनियुक्त राजदूत एरिक गार्सेटी ने कूटनीति आरंभ की है। गार्सेटी को दक्षिण भारतीय भोजन से लेकर मुंबई का बड़ा पाव और दिल्ली का देसी तड़का बहुत पसंद है। पान भी चबा लेते हैं। राजदूत महोदय ने हैदराबाद में थाली का स्वाद चखते समय शेफ को अपने साथ की कुर्सी पर बैठा लिया था, और रेसिपी पूछते रहे। गार्सेटी ने न्यूयार्क के कोलंबिया यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन करते समय हिंदी की एक साल पढ़ाई की थी, फि र अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद ऑक्सफोर्ड में रोड्स स्कॉलरशिप के लिए चुने गये। काफी एक्टिव राजदूत कहे जाएंगे गार्सेटी। ज़मीन की ख़बर रखते हैं कि भारत के गांव-देहात तक में क्या हो रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बहुत सोच समझकर लॉस एंजिलिस के मेयर एरिक गार्सेटी को भारत में अपना राजदूत नामित किया था। 52 साल के गार्सेटी लॉस एंजिल्स के 42वें मेयर रहे हैं, जो न्यूयॉर्क के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। माज़ी में गार्सेटी भारत में मानवाधिकारों को लेकर खुलकर बोलते रहे हैं। आप गार्सेटी के पुराने वीडियो क्लिप्स देखिए, उन्होंने मोदी सरकार द्वारा लाए गए नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को मुसलमानों के प्रति भेदभावपूर्ण बताया था। गार्सेटी ने 2021 में अमेरिकी कांग्रेस के ऊपरी सदन 'सीनेट' में कहा था, 'अगर मैं भारत में राजदूत नियुक्त हुआ, तो मानवाधिकारों के मुद्दे को उठाता रहूंगा।' उसके बरक्स एक निजी चैनल के कार्यक्रम में भारत में गार्सेटी की नियुक्ति के सवाल पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा था, 'आने दीजिए उन्हें, प्यार से समझा देंगे।' तीन महीने में इतना ज़रूर हुआ है, कि एंबेसडर गार्सेटी मानवाधिकार हनन के सवाल पर पहले की तरह मुखर नहीं दीख रहे। क्या यह देसी तड़के का असर है?
हम विश्लेषण करते समय भूल जाते हैं कि अमेरिका मूलत: व्यापारी देश है। 'अमेरिका फर्स्ट' का मतलब ही होता है, 'बिजनेस फर्स्ट'। ध्यान से देखिये, पिछले छह महीनों से हमारे कामर्स मिनिस्टर पीयूष गोयल और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल किस क़दर व्यस्त हैं। मार्च 2023 में पीयूष गोयल अपने अमेरिकी समकक्ष गीना रायमोंदो के साथ सेमीकंडक्टर सप्लाई पर हस्ताक्षर कर चुके थे। 4 जून, 2023 को अमेरिकी प्रतिरक्षा मंत्री लियोड ऑस्टिन दो दिन के वास्ते दिल्ली आये। उनके रहते प्रतिरक्षा उत्पादन के क्षेत्र में शोध, सहकार के वास्ते 'इंडस-एक्स' पर सहमति बन गई। भारत जेट इंजन का उत्पादन, लंबी दूरी के आयुध निर्माण और बख्तरबंद वाहनों के निर्माण का हब बनेगा। यदि भारत में निर्मित अमेरिकी आयुध यूक्रेन को निर्यात किये जाएंगे, तो सोच लीजिए, भारत-रूस संबंधों पर उसका कितना असर पड़ेगा?
रूसी आर्म्स सप्लाई के साथ सबसे बड़ी दिक्क़त स्पेयर पार्ट्स के सप्लाई को लेकर होती रही है। अमेरिकी हथियार लॉबी ने इसी कमज़ोर नस को दबाकर 'इंडस-एक्स' डील का फायदा उठाया है। अमेरिका ने जनवरी 2023 से ही हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को आईसीईटी (इनीशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी) के वास्ते इंगेज़ रखा है। डोभाल के अमेरिकी समकक्ष जेक सुलीवन ने रक्षा और खुफिया निगरानी के काम आने वाले आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, सेमीकंडक्टर, स्पेस एक्सप्लोरेशन, डाटा को कई तरह से प्रोसेस करने और कंप्यूटर की गति तेज़ करने वाले 'क्वांटम कंप्यूटिंग' तकनीक के निर्यात की सहमति ले ली है। इसका मतलब यही होता है कि अमेरिका से आये जो सॉफिस्टिकेटेड उपकरण भारत में इस्तेमाल में होंगे, उससे भारतीय गतिविधियों की चौकसी अमेरिकंस के लिए आसान हो जाएगी।
जो बाइडेन के सत्ता में आने से पहले ही पेंटागन इसका ब्लू प्रिंट तैयार कर चुका था कि दोनों देशों की सेनाएं कटिंग एज टेक्नालॉजी के क्षेत्र में सहकार करेंगी। बाइडेन प्रशासन ठीक उसी ब्लू पिंट पर आगे बढ़ रहा है। बाहर से जो चंद अमेरिकी ड्रोन हमें दीख रहे हैं, वो केवल ट्रेलर भर हैं, पिक्चर अभी बाक़ी है!
pushpr1@rediffmail.com