2000 रुपए का नोट सबक सिखा गया है सरकार को
2000 रुपये के नोट को जारी करने और वापस लेने के फैसले से सबक सीखा जा सकता है;
- जगदीश रत्तनानी
2000 रुपये के नोट को जारी करने और वापस लेने के फैसले से सबक सीखा जा सकता है। पहला यह है कि निर्णय का उद्देश्य तब खो जाता है जब इसके कारण होने वाली बाधाओं को हल करना मुश्किल होता है। यदि नीति काले धन को बाहर निकालने के लिए थी (जिनमें से कोई भी नहीं मिला) तो उच्च मुद्रा नोट की शुरुआत एक पाठ्यक्रम का विषय है कि काले धन और जमाखोरी को प्रोत्साहित करने के लिए क्या नहीं किया जाना चाहिए
बुरी यादों के साथ जीना आसान नहीं होता है। विमुद्रीकरण ऐसी ही यादों में से एक है जो देश के दिलोदिमाग पर सरकार के एक ऐसे कदम के रूप में अंकित है जिसके कारण व्यापक व्यवधान व जनहानि हुई और भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी से उतर गई। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि 2000 रुपये के नोट को बंद करने के फैसले से उस खतरनाक विमुद्रीकरण की बदसूरत याद ताजा हो जाती है जिसे पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 'संगठित और वैध लूट' कहा था। मोदी सरकार पर यह उनकी सबसे कठोर टिप्पणी थी। हर किसी को पता था कि नोटबंदी का यह भूत फिर सामने आयेगा। 2000 रुपये के नोट को बंद किए जाने से यह सामने आ गया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने नोट की कानूनी वैधता जारी रखने की घोषणा के साथ प्रेस विज्ञप्ति, परिपत्र और इससे संबंधित बार-बार पूछे जाने वाले प्रश्नों (एफएक्यू) के जवाबों के साथ इसे खबरों में बनाये रखा।
इस डर से कि इस निर्णय को गलत तरीके से समझा जाएगा, यह सावधानी और परिवर्तन जरूरी था। निश्चित रूप से इस बार यह विमुद्रीकरण का मामला नहीं है बल्कि 2000 रुपये के नोट के प्रचलन से योजनाबद्ध वापसी का मामला है जिसके चलते यह नोट वैध मुद्रा बना हुआ है। नागरिकों के पास 30 सितंबर, 2023 तक अपने खातों में नोट जमा करने या बैंक काउंटरों पर अन्य मूल्यवर्ग के नोटों के साथ इन्हें बदलने का समय है। हालांकि एक्सचेंज में थोड़ी कठिनाई है- बैंक शाखाओं के कामकाज में बाधा न पहुंचे इसलिए एक बार में केवल 20,000 रुपये तक के नोट जमा किए जा सकते है। केवाईसी मानदंडों के साथ नोट जमा के लिए कोई सीमा नहीं है।
आरबीआई के शब्दों में कहा जाए तो 'जनता को होने वाली असुविधा को कम करने, परिचालन सुविधा सुनिश्चित करने तथा बैंक शाखाओं के नियमित कामकाज में व्यवधान से बचने के लिए सभी बैंक एक समय में 20,000 रुपये की सीमा तक 2000 रुपये के नोट बदल सकते हैं।' इसे देखने का एक तरीका यह है कि आरबीआई एक व्यवस्थित विनिमय चाहता है जो विध्वंसक नहीं है। इसका दूसरा पक्ष यह है कि भारतीय बैंकिंग और शाखा संचालन को भारतीय नोटों के साथ बाधित करना काफी आसान प्रतीत होता है ! अपने अद्वितीय बैंगनी रंग के साथ 2000 रुपये का नोट कम से कम स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे कम समय तक रहने वाले भारतीय मुद्रा नोट के रूप में जाना जाएगा।
उच्च मूल्य वर्ग के नोट को वापस लेना सही दिशा में एक कदम है। उच्च मुद्रा नोट को भारतीय प्रणाली से लगभग सभी नकदी के (चलन से) बाहर निकलने के कारण उत्पन्न शून्य को भरने के लिए एक अति साहसिक उपाय के रूप में पेश किया गया था जो देश में तब तक (और अब भी कई हिस्सों में) नकदी के लेन-देन पर रहता है। फिर भी, यह शुरू में ही स्पष्ट हो गया था कि सिस्टम से काले धन को बाहर निकालने का नोटबंदी कार्यक्रम का एक कथित उद्देश्य उच्च मुद्रा नोट के जारी होने के साथ ही विफल हो गया था। जब नोट उच्च मूल्यवर्ग का होता है तो नकदी की जमाखोरी आसान होती है। नतीजतन, नकदी जमा करने के लिए हतोत्साहित करने के लिए यह होना चाहिए कि मुद्रा का बड़ा हिस्सा छोटे मूल्यवर्ग में होना चाहिए। विकसित दुनिया में उच्च मूल्य वर्ग के नोट जारी नहीं किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में फेडरल रिजर्व बोर्ड वर्तमान में 1, 2, 5, 10, 20, 50 और 100 डॉलर के मूल्यवर्ग में बैंक नोट जारी करता है। वहां उच्च मूल्यवर्ग का नोट आखिरी बार 1945 में मुद्रित किया गया था और 1969 में बंद कर दिया गया था।
भारत में नोटबंदी की घोषणा 8 नवंबर, 2016 को की गई थी। मार्च, 2017 तक तत्कालीन नए पेश किए गए 2000 रुपये के बैंक नोट का हिस्सा, प्रचलन में रही मुद्रा के कुल मूल्य का 50 प्रतिशत से अधिक था लेकिन बाजार में प्रचलन में मुद्रा की कुल मात्रा का सिर्फ 3.3 फीसदी था। नकदी के भूखे देश की जमाखोरी की तत्काल आवश्यकता को 2000 के नोट ने पूरा किया। हालांकि समय के साथ नोट के सामान्य प्रवाह को एक योजनाबद्ध तरीके से कम कर दिया गया है जिसमें नोटों की संख्या में कमी आई है। 2018-19 में नोटों की छपाई बंद हो गई थी। उच्च वर्ग के नोट की वापसी का यह निर्णय समझदारी और जनहितैषी नीतियों का मामला रहा है। यह सरकार के कुछ अन्य नीतिगत उपायों की अचानक घोषणा के बिल्कुल विपरीत है, खासकर नोटबंदी और लॉकडाउन के संदर्भ में जब कोविड-19 का प्रकोप शुरू ही हुआ था।
2000 रुपये के नोट को जारी करने और वापस लेने के फैसले से सबक सीखा जा सकता है। पहला यह है कि निर्णय का उद्देश्य तब खो जाता है जब इसके कारण होने वाली बाधाओं को हल करना मुश्किल होता है। यदि नीति काले धन को बाहर निकालने के लिए थी (जिनमें से कोई भी नहीं मिला) तो उच्च मुद्रा नोट की शुरुआत एक पाठ्यक्रम का विषय है कि काले धन और जमाखोरी को प्रोत्साहित करने के लिए क्या नहीं किया जाना चाहिए लेकिन इसे केवल तात्कालिक दर्द को कम करने के लिए किया जाना चाहिए था।
दूसरा यह कि सरकार यहां लोगों को अप्रत्याशित रूप से पकड़ने के लिए नहीं है। अप्रत्याशित तरीके से पकड़ने की नीति संकट पैदा करेगी। इससे यह लगता है कि लोग विरोधी हैं, अयोग्य और अनिच्छुक हैं या सामूहिक भलाई के लिए सहयोग करने के लिए तैयार नहीं हैं। दूसरा, अप्रत्याशित तरीके से पकड़ने की नीति जनसंख्या के सबसे कमजोर वर्ग पर पड़ने वाले अपेक्षित और अप्रत्याशित गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पर विचार नहीं करती है।
बुजुर्ग नागरिक जो सिर्फ सुरक्षा और आपातकालीन जरूरतों के लिए नकदी रखते हैं, जिस मजदूर के पास मुश्किल से नकदी है और परिवार को खिलाने के लिए उसे अपनी दैनिक कमाई पर निर्भर रहना पड़ता है, नई तकनीक के प्रति उदासीन लोग जो डिजिटल भुगतान पर भरोसा नहीं करते हैं, वे सभी नोटबंदी की सख्ती के अनपेक्षित शिकार थे। अचानक लॉकडाउन लगाने के मामले में भी ऐसा ही हुआ। लोगों से अपने घरों से बाहर न निकलने के लिए कहा गया। इस बात की परवाह नहीं की गई कि बड़ी संख्या में लोगों के पास घर नहीं हैं तथा देश की अर्थव्यवस्था प्रवासी मजदूरों पर अत्यधिक निर्भर करती है। प्रवासी श्रमिकों के पास पीने या खाने के लिए कुछ भी नहीं है उनकी जेबें खाली हैं, उनकी रोजंदारी खत्म हो गई है या उनकी मजदूरी नहीं दी गई है। उन्हें घर वापस जाने के लिए पैदल चलना पड़ा था।
अच्छी तरह से नियोजित और सोची गई नीति के माध्यम से जो निर्णय होते हैं वे इवेंट क्रिएशन या सुर्खियों के जाल में नहीं फंसते हैं। वे विषय के पक्ष और विपक्ष के मुद्दों पर चर्चा और अच्छी तरह से विचार किए जाने का लाभ भी उठाती है ताकि उनके अंतिम परिणाम बहुत बेहतर हो सकें। सरकार को कोई भी निर्णय लेने के पहले 1948 में गांधी द्वारा दिए गए एक सरल संदेश के बारे में सोचना चाहिए जिसमें उन्होंने उनके गहरे सामाजिक विचारों को व्यक्त किया था -'मैं तुम्हें एक मंत्र दूंगा। जब भी आप संदेह में हों, या जब स्वयं आपके स्वार्थ बहुत अधिक हावी हो जाएं तो निम्नलिखित परीक्षण लागू करें।
सबसे गरीब और सबसे कमजोर आदमी या महिला के चेहरे को याद करें जिसे आपने देखा होगा तथा अपने आप से पूछें कि क्या आप जो कदम उठाने का विचार कर रहे हैं वह उसके लिए किसी काम आने वाला है। क्या इससे उसे कुछ हासिल होगा? क्या यह उस व्यक्ति या महिला के अपने जीवन और भाग्य पर नियंत्रण बहाल करने में मदद करेगा? दूसरे शब्दों में, क्या यह भूखे और आध्यात्मिक रूप से भूखे लाखों लोगों के लिए स्वराज (मुक्ति) की ओर ले जाएगा? तब आप पाएंगे कि आपका संदेह और आपका स्वार्थ पिघल जाएगा।'
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सिंडिकेट: दी बिलियन प्रेस)