धार्मिक उन्माद का शिकार समाज
देश में सांप्रदायिक विद्वेष और धार्मिक असहिष्णुता इस तरह अपनी जड़ें गहरी कर चुकी है कि अब इससे समूचे देश का भविष्य खतरे में नजर आने लगा है;
देश में सांप्रदायिक विद्वेष और धार्मिक असहिष्णुता इस तरह अपनी जड़ें गहरी कर चुकी है कि अब इससे समूचे देश का भविष्य खतरे में नजर आने लगा है। भारत की हस्ती बाकी देशों से अलग इसलिए मानी गई क्योंकि यहां सभी धर्मों, जातियों और वर्णों के लोग तमाम असमानताओं के बावजूद दूध-चीनी की तरह मिलकर रहे। यह केवल किताबी बातें नहीं हैं, बल्कि कुछ समय पहले तक यही माहौल देश का सच था। धार्मिक, जातीय दंगे-फसाद तो हमेशा होते रहे, लेकिन उनका असर सीमित रहा। जो दुखद घटनाएं अतीत में हुईं, उन्हें समाज पर दाग की तरह देखा गया। इन घटनाओं पर शर्मिंदा होने और अफसोस करने वालों का दायरा बड़ा रहा। मगर अब यह सब बदल चुका है। अब हिंदू धर्म का झंडा बुलंद करने के साथ-साथ गैर हिंदुओं के खिलाफ जिस तरह का माहौल बनाया जा रहा है, उसमें व्यापक समाज की खामोशी विचलित कर रही है।
मध्यप्रदेश में एक अरसे से भाजपा का शासन चल रहा है। बीच में कुछ समय के लिए कांग्रेस के हाथ में सत्ता आई थी, लेकिन फिर ऑपरेशन कमल की सफलता के बाद शिवराज सिंह चौहान ने फिर से सत्ता संभाल ली। इसी मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से गोडसे का महिमामंडन करने वाली प्रज्ञा सिंह ठाकुर सांसद बनी हैं। बीते बरसों में धार्मिक असहिष्णुता के कई मामले मध्यप्रदेश से सामने आए हैं। कभी भाजपा नेता ने पोहा खाने वालों को बांग्लादेशी बताया, कभी चूड़ी बेचने वाले मुस्लिम शख्स पर छेड़खानी का आरोप लगा, तो कभी मिशनरी स्कूल पर पत्थर फेंके गए, ऐसे उदाहरणों की एक लंबी सूची तैयार हो चुकी है। दुख इस बात का है कि इस सूची को छोटा करने की कोई पहल होती नहीं दिख रही है, न सरकार की ओर से, न नागरिक समाज की ओर से।
धर्म के नाम पर उन्माद और भय का माहौल बनाने का एक ताजा उदाहरण उज्जैन से सामने आया है, जहां बजरंग दल के सदस्यों ने आसिफ शेख नाम के मुस्लिम युवक और एक विवाहित हिंदू महिला को अजमेर जा रही ट्रेन से नीचे उतार दिया। बजरंग दल का आरोप है कि मुस्लिम युवक महिला को बहला फुसलाकर उसे अजमेर ले जा रहा था। संगठन ने युवक पर लव जिहाद का आरोप लगाया। सोशल मीडिया पर इस घटना का एक वीडियो भी वायरल हो रहा है। जिसमें बजरंग दल के कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बताने वाले तीन लोग आसिफ शेख को ट्रेन के कोच से बाहर खींचते हुए दिख रहे हैं। इस दौरान महिला भी उनके पीछे चलती दिख रही है। बजरंग दल के लोगों ने दोनों पीड़ितों को उज्जैन के रेलवे पुलिस स्टेशन को सौंप दिया। राजकीय रेलवे पुलिस ने दोनों के पारिवारिक मित्रों से पूछताछ की और उनके माता-पिता के आने तक उन्हें थाने में बिठाये रखा। हालांकि बयान दर्ज होने के बाद उन्हें छोड़ दिया गया।
आजादी का अमृत महोत्सव मनाते इस देश में धार्मिक कट्टरता का जहर कितना फैल चुका है, यह प्रकरण इसकी मिसाल है। बजरंग दल के लोगों ने दो वयस्क लोगों को केवल इस बात के लिए प्रताड़ित किया कि वे अलग-अलग धर्म के होने के बावजूद साथ में यात्रा कर रहे थे। वे दोनों पारिवारिक मित्र थे, इसलिए पुलिस ने उनके परिजनों से बात करके उन्हें छोड़ दिया, पर उनमें पारिवारिक संबंध नहीं भी होते, तब भी ये किस कानून में लिखा है कि दो अलग धर्मों के लोग साथ में यात्रा नहीं कर सकते। अगर उन्होंने यात्रा के दौरान कोई दुर्व्यवहार किया होता, जिससे सहयात्रियों को तकलीफ होती, तब भी इस पर केवल पुलिस को ही कार्रवाई का अधिकार था। बजरंग दल के लोगों को इतनी छूट किसने दी और किसके दम पर वे इस तरह की गुंडागर्दी कर रहे थे, यह सवाल समाज को अपने आप से पूछना चाहिए। जीआरपी के मुताबिक इस मामले में किसी के द्वारा शिकायत ना मिलने पर बजरंग दल के सदस्यों के खिलाफ कोई शिकायत नहीं दर्ज की गई। तो यह भी सोचने की बात है कि आखिर वो कौन सा डर है लोगों के मन में, जो इन लोगों के खिलाफ शिकायत नहीं की जा रही। और पुलिस क्या केवल इस आधार पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकती कि इन लोगों ने बिना कारण दो यात्रियों की यात्रा बाधित की। आखिर कब तक संविधान प्रदत्त अधिकारों का धर्म के नाम पर हनन होता रहेगा, यह अब समाज को सोचना होगा।