राहुल ने राजनीति को जनतांत्रिक बना दिया

नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने 26 सितंबर को हरियाणा में असंध और बरवाला में दो चुनावी रैलियों को संबोधित किया;

Update: 2024-09-28 08:14 GMT

- प्रो. रविकांत

पिछले एक दशक से राजनीति और सत्ता में संवेदनशीलता का लोप हो गया है। सत्ता में हिंदुत्व का वर्चस्व स्थापित है। सरकारी तंत्र नागरिकों के प्रति जिम्मेदार नहीं, बल्कि प्रजा को आज्ञापालक बनाकर रखना चाहता है। लोगों के हित और कल्याण के बदले सत्ताधारियों का महिमामंडन होने लगा। लोकतंत्र जैसे राजतंत्र में तब्दील हो गया।

'मेरा अंतिम लक्ष्य प्रत्येक आंख से आंसू पोंछना है।

- महात्मा गांधी

नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने 26 सितंबर को हरियाणा में असंध और बरवाला में दो चुनावी रैलियों को संबोधित किया। राहुल गांधी ने अपने भाषण में करनाल जिले के 8-10 साल के बच्चे देव के आंसुओं का बार-बार जिक्र किया। वह अपने पिता से मिलने के लिए बेताब है। लेकिन उसके पिता अमित मान अभी घर वापस नहीं आ सकते। राहुल गांधी ने कहा, 'मैं देव के आंखों से आंसू पोंछना चाहता हूं। उसके होठों पर खुशी देखना चाहता हूं। उसके पिता को भारत बुलाना चाहता हूं। मैं एक ऐसा हरियाणा चाहता हूं, जहां अवैध तरीके से कोई नौजवान नौकरी के लिए विदेश जाने के लिए मजबूर ना हो। राहुल गांधी के भाषण ने पूरे देश को द्रवीभूत कर दिया है। आज करनाल के बच्चे देव और उसके आंसुओं का जिक्र हर व्यक्ति की जुबान पर है। देश का हर जागरुक व्यक्ति राहुल गांधी के भाषण की प्रशंसा कर रहा है। बहुत शालीन किंतु गंभीरता से राहुल गांधी लगातार देश के बुनियादी मुद्दों को उठा रहे हैं। देव का जिक्र करते हुए खुद राहुल गांधी की आंखों में आंसू छलक आते हैं। ये आंसू नाटकीय भंगिमा के लिए जबरन नहीं पैदा किए गए। बल्कि एक पिता और पुत्र के बिछोह से उपजे हैं। राहुल गांधी ने अपनी युवावस्था के दहलीज पर ही अपने पिता को हमेशा के लिए खो दिया था। राहुल गांधी के छलकते हुए आंसुओं में पिता के अहसास की गर्माहट और उनको खोने की पीड़ा मौजूद थी।

राहुल गांधी ने शीर्ष पद पर पहुंचे बिना भारत की राजनीति को सृजनात्मक जीवन मूल्यों से संवारा है। उन्होंने राजनीति को संवेदनशील बनाया है। सत्ता के लिए नफरत और विभाजन की राजनीति से दूर राहुल गांधी मनुष्यता को पोषित करने वाली राजनीति कर रहे हैं। दो-तीन साल पहले जहां लोगों को राजनीति से ऊब और चिढ़ होने लगी थी, राहुल ने प्रेम और सौहार्द्र का संदेश देकर राजनीति के प्रति लोगों का रुझान बदल दिया है। राहुल गांधी कभी प्रधानमंत्री बनें या ना बनें, उन्होंने भारत की राजनीति में एक नया प्रतिमान स्थापित कर दिया है, जिसकी चर्चा लंबे समय तक होती रहेगी।

इसकी शुरुआत भारत जोड़ो यात्रा से हुई। कन्याकुमारी से कश्मीर तक पैदल चलते हुए राहुल गांधी ने बच्चों को कंधों पर बिठाया, बुजुर्गों को सीने से लगाया, नौजवानों को हौसला दिया, महिलाओं को सम्मान दिया, दलितों को सामाजिक न्याय का संकल्प दिया, आदिवासियों को इस देश का पहला मालिक कहकर पुकारा, पिछड़ों की भागीदारी के लिए जाति जनगणना की मांग की। राहुल गांधी ने इस यात्रा के जरिए देश में व्याप्त नफरत और हिंसा के भय को दूर करने में कामयाबी हासिल की। किसानों और नौजवानों की नई उम्मीद बनकर राहुल गांधी खड़े हो गए। मुसलमानों और ईसाइयों के लगातार दरक रहे भरोसे को राहुल गांधी ने मजबूत किया। उन्होंने देश की राजनीति में 'भारत के विचार' को बिखरने से बचाया।

'एक अकेला सब पर भारी' और '56 इंच की छाती' की मुनादी करते हुए नरेंद्र मोदी ने अपने इर्दगिर्द एक औरा बना लिया था। इसमें सत्ता का गुरुर तो था ही विपक्ष को अप्रासंगिक बना देने की हनक भी थी। नरेंद्र मोदी का यह अहंकार देश के लोगों पर बहुत भारी पड़ गया। नोटबंदी और कोरोना काल की तालाबंदी के समय लोगों को भेड़-बकरियों की तरह हांक दिया गया। सैकड़ों लोग मर- खप गए। लेकिन मोदी ने उफ्फ तक नहीं की। किसानों की मौत पर जश्न मनाने वाले सत्तातंत्र के सामने आज राहुल गांधी के एक बच्चे के आंसुओं का जिक्र करना बहुत मायने रखता है। राहुल गांधी ने अपने भाषण में देव के दर्द को बयां करते हुए भारत में बेरोजगारी की भयावहता को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया। करनाल से निकलकर अमित मान और उसके जैसे हजारों नौजवान डंकी बनकर अमेरिका और यूरोप के देशों में काम की तलाश में पहुंचे।

राहुल गांधी ने अमित मान की उस यातना भरी यात्रा का भी जिक्र किया। पश्चिम एशिया से होते हुए दक्षिण अमेरिका के जंगलों और समुद्र को पार करके माफिया से लुटते-पिटते हुए दर्जनों भारतीय नौजवान अमेरिका पहुंचे। अमित मान 10 साल तक अपने वतन वापस नहीं लौट सकता। बूढ़े मां-बाप, पत्नी और बच्चे रोज उसकी राह देखते हैं! देव को लगता है कि उसके पिता अब वापस नहीं आयेंगे। अब वह उनसे नहीं मिल पाएगा। राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस ऐसा हरियाणा चाहती है, जहां बेरोजगार नौजवानों को अपने देश में ही रोजगार मिले। दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था की ओर उन्मुख कथित विश्वगुरु भारत में इतनी बेरोजगारी क्यों है? राहुल गांधी ने मोदी और उनके कॉर्पोरेट मित्रों पर बड़ा हमला करते हुए कहा, मोदी ने अदानी को पोर्ट, एयरपोर्ट सब कुछ बेच दिया। अडानी और अंबानी का कारोबार चीनी कंपनियों के साथ है।

अडानी चीन से सामान मंगाकर, उस पर अपना लेबल चस्पाकर बेचता है। सामान चीन बना रहा है। रोजगार चीन में सृजित हो रहा है। मुनाफा अदानी कमा रहा है और भारत के नौजवान डंकी बनकर दूसरे देशों में जाकर नौकरी करने के लिए मजबूर हैं। सेना और पुलिस की सेवा करने का ख्वाब संजोने वाले हरियाणा के नौजवानों के सामने निपट अंधेरा है। उनके सपनों को मोदी ने छीन लिया। बूढ़े मां-बाप और बच्चों की आंखों को आंसू दिए और पत्नी को लंबा इंतजार। राहुल गांधी का यह भाषण जितना स्वाभाविक था, उतना ही प्रभावशाली भी।

पिछले एक दशक से राजनीति और सत्ता में संवेदनशीलता का लोप हो गया है। सत्ता में हिंदुत्व का वर्चस्व स्थापित है। सरकारी तंत्र नागरिकों के प्रति जिम्मेदार नहीं, बल्कि प्रजा को आज्ञापालक बनाकर रखना चाहता है। लोगों के हित और कल्याण के बदले सत्ताधारियों का महिमामंडन होने लगा। लोकतंत्र जैसे राजतंत्र में तब्दील हो गया। लोगों के लिए बनाई गईं नीतियां और काम राजा की कृपादृष्टि हो गए। इसीलिए कोरोना वैक्सीन हो या 5 किलो राशन, इसके लिए थैंक यू मोदी जी बोलना पड़ता है। राहुल गांधी ने राजतंत्रात्मक राजनीति को जनतांत्रिक बना दिया है।

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