जम्मू-कश्मीर में राहुल का बड़ा वादा

जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और नेशनल काफ्रेंस गठबन्धन ने प्रचार अभियान की शुरुआत बड़े वादे को दोहराते हुए कर दी है;

Update: 2024-09-05 07:07 GMT

जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और नेशनल काफ्रेंस गठबन्धन ने प्रचार अभियान की शुरुआत बड़े वादे को दोहराते हुए कर दी है। राहुल गांधी ने बुधवार को कश्मीर के रामबन में एक विशाल रैली को सम्बोधित करते हुए भारतीय जनता पार्टी की सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि 1947 में कांग्रेस की सरकार ने जम्मू-कश्मीर के राजा को हटाकर उसे राज्य का दर्जा दिया था लेकिन भाजपा सरकार ने पांच वर्ष पहले राज्य के दर्जे को समाप्त कर यहां एक राजा (लेफ्टीनेंट गवर्नर) को बैठा दिया है। उन्होंने ध्यान दिलाया कि आजाद भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि राज्य को केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया जा रहा है, जबकि अब तक केन्द्र शासित प्रदेशों को राज्य का दर्जा दिया जाता रहा। उन्होंने आश्वासन दिया कि उनकी पार्टी को अवसर मिला तो जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा लौटायेगी। 90 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस 32 सीटों पर और नेशनल काफ्रेंस 51 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पांच सीटों पर ्रफ्रेंडली फाइट होने जा रही है।18 व 25 सितम्बर तथा 1 अक्टूबर को यहां (तीन चरण) चुनाव होने जा रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि इस संवेदनशील राज्य में दस वर्षों के बाद चुनाव होने जा रहे हैं। 5 अगस्त, 2019 को भाजपा सरकार ने जम्मू-कश्मीर के लिये लागू अनुच्छेद- 370 को हटा कर इसे और लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया था। उसी साल विधानसभा का चुनाव होना था लेकिन वह इसी आधार पर टाल दिये गये थे। यहां चुनाव कराने की अनिच्छुक भाजपा की केन्द्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के अंतर्गत चुनाव कराना लाजिमी हो गया है। महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) गठबन्धन का हिस्सा तो नहीं है लेकिन समझा जाता है कि ज़रूरी हुआ तो उसका समर्थन कांग्रेस-एनसी को मिल सकता है। अनुमान लगाये जा रहे हैं कि भाजपा से लोगों की इस कदर नाराज़गी है कि उसे कश्मीर में बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ सका है। कांग्रेस से अलग होकर डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी बनाने वाले गुलाम नबी आज़ाद की भी राह कोई आसान नहीं मानी जा रही है। उसके अब तक 10 ही सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान हुआ है। माना जा रहा था कि उसका भाजपा से गठबन्धन हो सकता है लेकिन अब लगता है कि वह भाजपा की बी टीम के रूप में लड़ेगी। वैसे पहले ही उसके चार प्रत्याशियों ने मैदान छोड़ दिया है।

उधर दूसरी तरफ भाजपा अपनी रणनीति बनाने में मशगूल है लेकिन ऐसे अनेक मुद्दे हैं जिन्हें लेकर उसे जनता के बीच जाना मुश्किल हो जायेगा। पहली बात तो यही है कि अनुच्छेद- 370 हटाये जाने को लेकर वहां की जनता काफी नाराज़ है। उस प्रक्रिया के दौरान न तो वहां की जनता की राय ली गयी थी, न ही उसके बाद वे वादे पूरे हुए जिनका उल्लेख कर कहा जाता रहा कि जम्मू-कश्मीर के लोगों में खुशहाली आयेगी। जहां तक आतंकवादी घटनाओं से मुक्ति दिलाने की बात कही गयी थी, तो वैसा कुछ भी हासिल नहीं हो सका। घाटी में अब भी पाक समर्थित आतंकी गुटों के हमले गाहे-बगाहे होते रहते हैं। इनमें मरने वालों की संख्या भी अच्छी-खासी है। कश्मीरी पंडितों की वापसी भी एक प्रमुख मुद्दा था जिसके बारे में भाजपा काफी दावे करती रही है। उस मोर्चे पर भी सरकार के हाथ खाली हैं। बहुत कम संख्या में कश्मीरी पंडितों की वापसी हुई भी तो वे वहां स्थायी नहीं बसाये जा सके हैं। बाहरी मजदूरों की हत्याएं भी हुई हैं, कश्मीरी पंडित अब भी वहां कोई महफूज़ महसूस नहीं करते। जिस प्रकार से कश्मीरियों के बारे में भाजपा समर्थित लोगों ने अपमानजनक टिप्पणियां की हैं और जैसे लम्बे समय तक घाटी के लोगों की इंटरनेट सुविधा छीनी गयी थी, उन सारी मुश्किलात का जवाब लेने का अवसर जम्मू-कश्मीर के लोगों को अब मिल गया है।

राहुल गांधी जम्मू-कश्मीर में बेहद लोकप्रिय हुए हैं। याद हो कि 7 सितम्बर, 2022 को कन्याकुमारी से निकली राहुल की भारत जोड़ो यात्रा का समापन 30 जनवरी, 2023 को श्रीनगर में ही हुआ था जिसे पूरे देश की तरह ही जबर्दस्त प्रतिसाद मिला था। फ़ारुख़ अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती आदि न केवल समापन रैली में शामिल हुए थे, बल्कि वे इंडिया गठबन्धन के भी हिस्सेदार हैं जो कई अवसरों पर हुई बैठकों एवं रैलियों में बराबर शिरकत करते रहे हैं। स्थानीय राजनीतिक ज़रूरतों के कारण एनसी एवं पीडीपी इस चुनाव में आमने-सामने बेशक हों, लेकिन उसका फायदा भाजपा को मिलता हुआ नज़र नहीं आ रहा है। वैसे उसने 'मिशन 66' के नाम से बनाये चुनावी अभियान पर काम शुरू कर दिया है। गठबन्धन की एकमात्र आशा छिपे समर्थक गुलाम नबी आजाद से हो सकती है लेकिन उनका कितना लाभ उसे मिलेगा, यह तो परिणाम ही बतलाएंगे। हाल ही में पीडीपी के चौधरी ज़ुल्फीकार अली और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चौधरी अब्दुल गनी ने भाजपा का दामन थाम लिया है।

कांग्रेस-एनसी का पलड़ा इसलिये भारी माना जा रहा है क्योंकि राहुल और उनकी पार्टी जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा छीनने का शुरू से ही विरोध करती आ रही है। रैली में राहुल ने यह भी कहा कि चुनाव परिणाम जो भी हों, उनकी पार्टी राज्य का दर्जा वापस दिलाने का संघर्ष करती रहेगी और केन्द्र सरकार को इसके लिये मजबूर करेगी। उन्होंने प्रदेश में बेरोजगारी दूर करने के लिये लम्बित भर्तियां पूरा करने का भी आश्वासन दिया जो निश्चित ही मतदाताओं को आकर्षित करेगा।

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