लोकसभा चुनावों में एनडीए जीता, लेकिन नरेंद्र मोदी नेतृत्व हारा

इंडिया ब्लॉक 2024 के चुनावों में सत्ता के दरवाजे के काफी करीब था;

Update: 2024-06-06 00:30 GMT

- नित्य चक्रवर्ती

इंडिया ब्लॉक 2024 के चुनावों में सत्ता के दरवाजे के काफी करीब था। 2024 एक और 2004 हो सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। यह एक वास्तविकता है। इंडिया ब्लॉक के नेताओं को स्थिति का ईमानदारी से आकलन करने और रणनीति बनाने के लिए अभी मिलना चाहिए। अब उनका मुख्य काम ब्लॉक सदस्यों की एकता को मजबूत करना है ताकि भाजपा का मुकाबला किया जा सके।

2024 के लोकसभा चुनावों में लोकतंत्र सबसे बड़ा विजेता है, क्योंकि 4 जून को घोषित परिणाम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के राजनीतिक विचारों में विविधता को रेखांकित करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के एकमात्र चेहरे जिनके नाम पर चुनाव लड़ा गया, को इस साल 19 अप्रैल से 1 जून तक सात चरणों में हुए 18वें लोकसभा चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग करने वाले 64.2 करोड़ मतदाताओं से सबसे बड़ी हार मिली है।

प्रधानमंत्री ने पिछले दो महीनों में एनडीए के लिए अपनी पार्टी के नारे 'अबकी बार 400 पारÓ के समर्थन में लगातार प्रचार किया, जिसमें से भाजपा का लक्ष्य 370 था। पूरे देश में यह प्रचार किया गया कि भाजपा 4 जून के नतीजों के जरिये इसे हासिल कर लेगी। अंतिम स्थिति यह है -एनडीए को 292 तथा भाजपा को 240सीटें मिली हैं जो 2019 के लोकसभा स्तर से 63 सीटें कम हैं। यह 2014 की 282सीटों से भी 42 सीटें कम है। इसके मुकाबले इंडिया ब्लॉक 233 सीटों के साथ एनडीए से केवल 59 सीटें पीछे है।

प्रधानमंत्री ने देश को सांप्रदायिक आधार पर धु्रवीकृत करने की कोशिश की थी। उन्होंने केंद्र और राज्यों में एक ही पार्टी को रखने के नारे के साथ कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों पर भी तीखे हमले किये। चुनाव परिणामों में क्षेत्रीय दलों के पुनरुत्थान ने इस बात की गारंटी दी है कि संघवाद को खत्म करके सभी शक्तियों को केंद्रीकृत करने का भाजपा का उद्देश्य सफल नहीं होगा।

आने वाले दिन नयी सरकार के लिए मुश्किल भरे होंगे, जिसका नेतृत्व अल्पमत वाली भाजपा की सरकार करेगी। परन्तु 2024 के लोकसभा नतीजों से क्या निष्कर्ष निकलेंगे? सबसे पहले तो नरेंद्र मोदी का कद कम हुआ है। वह खुद को विश्वगुरु और एक तरह के मसीहा के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे थे, जो यह दर्शाता था कि वह भी अजेय हैं। उन्हें भगवान ने 2047 तक अपना काम करने के लिए भेजा है। वह अपने समर्थकों और आम लोगों के बीच मिथक फैलाने के लिए चुनावों में भाजपा के भारी बहुमत पर निर्भर थे। यह पूरी तरह से गलत साबित हुआ है। नरेंद्र मोदी अब एक सामान्य राजनेता बन गये हैं, जो सरकार बनाने में अपने एनडीए सहयोगियों के भारी दबाव में होंगे।

भाजपा के आगे के हिंदुत्व के कार्यक्रम को झटका लगा है। भाजपा की सीटों में गिरावट और लोकसभा में अल्पमत में आने से संघ परिवार में उथल-पुथल मचेगी। प्रधानमंत्री और पार्टी में उनके करीबी सहयोगियों ने हाल के महीनों में चुनाव रणनीति के संबंध में एकतरफा कार्रवाई की, जिससे आरएसएस और संघ परिवार की अन्य इकाइयां नाराज हैं। प्रधानमंत्री को इन हिंदुत्ववादी ताकतों के गुस्से का सामना करना पड़ेगा, जो नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में अपने एजेंडे को पूरा करने का इंतजार कर रहे थे। मोदी उनकी नजर में विफल हो गये हैं।

दूसरी बात यह है कि हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा है। जहां तक उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा का सवाल है, भगवा खेमे के लिए यह विनाशकारी था। पार्टी ने मध्य प्रदेश में पूर्ण बहुमत बरकरार रखा है, लेकिन ऐसा राज्य में कांग्रेस के कमजोर नेतृत्व और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के भाजपा में शामिल होने के पैंतरे के बाद हुआ है। मध्य प्रदेश में पूरा संगठन गड़बड़ा गया। कांग्रेस के सक्षम नेतृत्व में पार्टी राज्य में बेहतर प्रदर्शन कर सकती थी।
हिंदी भाषी राज्य भाजपा की मुख्य ताकत हैं और इसे पार्टी की मुख्य ताकत माना जाता है, क्योंकि यह क्षेत्र उसके हिंदुत्व के आधार से जुड़ा है। अग्रणी राज्य उत्तर प्रदेश में पार्टी के पतन से निश्चित रूप से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित भाजपा के शीर्ष नेताओं के बीच पुनर्विचार की स्थिति पैदा होगी। योगी का भविष्य दांव पर है, क्योंकि वे उत्तर प्रदेश में अभियान चलाने वाले भाजपा के मुख्य नेता थे।

अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में बड़ा उलटफेर किया है और खास बात यह है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस-सपा गठबंधन कामयाब रहा है। आने वाले दिनों में इसे और आगे बढ़ाना होगा, क्योंकि राज्य में 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं।

तीसरी बात यह है कि राहुल गांधी एक मजबूत नेता के रूप में उभरे हैं, जिन्हें लोगों से अधिक स्वीकार्यता मिल रही है। राहुल ने कांग्रेस के अभियान की कमान बहुत अच्छे से संभाली है। वे हिंदुत्व, बेरोजगारी, महंगाई समेत मुख्य मुद्दों पर प्रधानमंत्री और भाजपा पर लगातार हमला करते रहे हैं। दरअसल, राहुल ने एक ऐसे नेता की परिपक्वता दिखाई है, जो गठबंधन सहयोगियों से निपट सकता है।

कांग्रेस ने 2024 के चुनावों में अपनी लोकसभा सीटों को लगभग दोगुना कर लिया है, लेकिन 18वीं लोकसभा चुनाव के नतीजों से मिले सबक के आधार पर आगे की कार्रवाई आने वाले दिनों में पार्टी को अच्छा लाभ दे सकती है। खामियां जगजाहिर हैं, कांग्रेस नेतृत्व द्वारा सुधारात्मक कार्रवाई के लिए उनका ध्यान रखा जा सकता है। देश की 139 साल पुरानी पार्टी कांग्रेस खुद को इंडिया ब्लॉक के प्रभावी संचालक के रूप में काम करने के लिए तैयार कर सकती है।

इंडिया ब्लॉक ने कई राज्यों में अच्छा प्रदर्शन किया है। यह घटक दलों के जमीनी कार्यकर्ताओं की समन्वित कार्रवाई से संभव हुआ है। इसके जरिए कई युवा नेता उभरकर सामने आये हैं। राहुल गांधी के अलावा अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, आदित्य ठाकरे, उदयनिधि स्टालिन, कल्पना सोरेन और अभिषेक बनर्जी ऐसे युवा नेता हैं, जिनके आने वाले दिनों में इंडिया ब्लॉक की अगुआई करने की उम्मीद है। उद्धव ठाकरे और एम के स्टालिन दोनों ने दिखाया है कि कैसे संयुक्त नेतृत्व भाजपा और एनडीए को बड़ा झटका दे सकता है। आने वाले दिनों में अशांत राजनीतिक स्थिति से निपटने के लिए इंडिया ब्लॉक को सभी स्तरों पर मजबूत करना होगा।

चौथा सबक दक्षिणी राज्यों में बदलते राजनीतिक मूड का है। आंध्र प्रदेश में ऐसा लगता है कि टीडीपी-भाजपा गठबंधन जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी सरकार की जगह लेगा। टीडीपी ने बड़ी वापसी की है। तमिलनाडु और केरल में भाजपा ने अपनी उपस्थिति में मामूली सुधार किया है। कर्नाटक में कांग्रेस ने 2019 के चुनावों की तुलना में अपनी टैली में सुधार किया, लेकिन भाजपा-जेडी (एस) गठबंधन प्रभावी रहा। तेलंगाना में, भाजपा और कांग्रेस दोनों ने क्षेत्रीय पार्टी बीआरएस की कीमत पर लाभ कमाया। फिर से ओडिशा में, क्षेत्रीय बीजेडी को चुनावों में भाजपा ने हरा दिया। यह भाजपा के हाथों एक क्षेत्रीय पार्टी की हार थी जो अप्रत्याशित नहीं थी। इस तरह, क्षेत्रीय दलों के बारे में भी कोई सीधी रेखा नहीं है।

टीडीपी को बहुत लाभ हुआ है जबकि वाईएसआरसीपी, बीआरएस और बीजेडी को नुकसान हुआ है। फिर भी, कुल मिलाकर, क्षेत्रीय दलों ने कई राज्यों में बढ़त हासिल की है और यह इंडिया ब्लॉक की संघीय राजनीति को मजबूत करने के लिए बहुत सकारात्मक है।

18वें लोकसभा चुनाव में एनडीए का वोट शेयर 46प्रतिशत रहा, जो 2019 के आंकड़े से 2 प्रतिशत कम है जबकि 2024 के चुनावों में इंडिया ब्लॉक का वोट शेयर 41प्रतिशत था, जो 8प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करता है। भाजपा के वोटों में यह गिरावट अभियान के अंतिम दिनों में नरेंद्र मोदी की स्थिति में कमी से जुड़ी है।

क्षेत्रीय दलों में, पश्चिम बंगाल में, तृणमूल कांग्रेस ने 2019 की अपनी टैली 22 में 7 सीटें जोड़ी है। टीएमसी ने 2024 के चुनावों में 4प्रतिशत की वृद्धि के साथ अपना वोट शेयर 47प्रतिशत तक बढ़ाया, जबकि भाजपा का वोट शेयर 3प्रतिशत घटकर 37प्रतिशत रह गया। टीएमसी सरकार पर तमाम आरोपों के बावजूद टीएमसी ने भाजपा और कांग्रेस-वाम गठबंधन को हराकर अपनी स्थिति में काफी सुधार किया है। ममता इंडिया ब्लॉक की एक महत्वपूर्ण नेता हैं। ब्लॉक के अन्य नेताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि टीएमसी के अन्य भागीदारों के साथ संबंध मधुर हों। केंद्र में माकपा नेताओं को बंगाल में अपने उम्मीदवारों के लोकसभा परिणामों का विश्लेषण करना होगा और ईमानदारी से पता लगाना होगा कि पिछले पांच वर्षों में कोई बदलाव क्यों नहीं हुआ। उन्हें राज्य नेतृत्व से स्वतंत्र होकर गहन जांच करनी चाहिए।

वास्तव में, इंडिया ब्लॉक 2024 के चुनावों में सत्ता के दरवाजे के काफी करीब था। 2024 एक और 2004 हो सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। यह एक वास्तविकता है। इंडिया ब्लॉक के नेताओं को स्थिति का ईमानदारी से आकलन करने और रणनीति बनाने के लिए अभी मिलना चाहिए। अब उनका मुख्य काम ब्लॉक सदस्यों की एकता को मजबूत करना है ताकि भाजपा का मुकाबला किया जा सके जो नरेंद्र मोदी के घटते कद के साथ गिरती जा रही है। भाजपा पस्त है, नरेंद्र मोदी उतने मजबूत नहीं हैं। एनडीए के साथी रणनीतिगत कारणों से भाजपा के साथ नहीं जुड़े हैं। शरद पवार और उद्धव ठाकरे जैसे दिग्गज एनडीए के साथी टीडीपी, जेडी(यू), शिंदे शिवसेना से गठबंधन के लिए बात कर सकते हैं। अगर लोकतांत्रिक तरीके से नरेंद्र मोदी को तीसरा कार्यकाल न देने का कोई अवसर आता है, तो उसका लाभ उठाया जाना चाहिए। भाजपा के पक्ष में खेल अभी भी खत्म नहीं हुआ है।

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