कई आशंकाओं के साथ मोदी फिर पीएम

पहले दो बार की तरह उत्साह के साथ नहीं बल्कि कई आशंकाओं के बीच रविवार को नरेन्द्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री का पद सम्हाल लिया है;

Update: 2024-06-10 01:47 GMT

पहले दो बार की तरह उत्साह के साथ नहीं बल्कि कई आशंकाओं के बीच रविवार को नरेन्द्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री का पद सम्हाल लिया है। उन्होंने इस तरह देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बराबरी तो कर ली लेकिन उनकी यह पारी कई तरह के खतरों के बीच शुरू हो रही है। उनके पद सम्हालने के पहले ही यह सवाल पूछे जाने लगे थे कि आखिर यह सरकार कब तक चलेगी।

इन आशंकाओं के मजबूत आधार हैं। उसके कई आयाम भी हैं। पहली बात तो यही है कि मोदी सरकार पहले दो बार की भांति अपने बूते नहीं वरन दो दलों की बैसाखियों पर खड़ी है। आंध्रप्रदेश की तेलुगु देशम पार्टी के चन्द्रबाबू नायडू ने अपने 16 और बिहार के नीतीश कुमार ने अपने जनता दल (यूनाइटेड) के 12 सदस्यों के साथ नेशनल डेमोक्रेटिक एलाएंस (एनडीए) का हिस्सा बनकर मोदी की ताजपोशी कराई है। दोनों के साथ मोदी व भारतीय जनता पार्टी का इतिहास खट्टा-मीठा रहा है। एनडीए के कहने को तो और भी कई सहयोगी दल हैं पर इतनी हैसियत किसी अन्य में नहीं है कि वे मोदी सरकार को गिरा सके। टीडीपी और जेडीयू के समर्थन को जितना मजबूत टेका माना जा रहा है, वे ही सबसे कमजोर कड़ियां भी बतलाई जा रही हैं। इसका कारण यह है कि वैचारिक रूप से दोनों पार्टियां भाजपा से दूर हैं। फिर, दोनों के लिये प्रांतीय हित उनकी राजनीतिक वरीयता में हैं। दोनों का इतिहास एनडीए का हाथ कभी धरने का तो कभी झटकने का रहा है।

अगर इस मुद्दे पर बात करें कि आखिर क्यों इन दो पार्टियों के सन्दर्भ व परिप्रेक्ष्य में ऐसा कहा जा रहा कि ये दोनों दल एनडीए सरकार से कभी भी अलग हो सकते हैं, तो जवाब है कि अनेक मुद्दे हैं जिन्हें लेकर उनका भाजपा के साथ टकराव होना तय है। मसलन, टीडीपी अल्पसंख्यकों की हितैषी मानी जाती है जबकि भाजपा का नज़रिया इस बाबत जगजाहिर है। जिस टीडीपी के साथ भाजपा ने लोकसभा चुनाव के साथ हुआ विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ा था, उसने मुस्लिमों के लिये कई तरह की आर्थिक मदद का वादा किया है। इनमें प्रमुख है हज जाने वालों के लिये 1 लाख रुपये की आर्थिक सहायता, मदरसों, मौलवियों को हर माह नकद राशि आदि। भाजपा के लोग इसे कब तक बर्दाश्त करेंगे, कहा नहीं जा सकता। ऐसे ही, नीतीश बाबू सामाजिक न्याय के पुरोधा माने जाते हैं और देश में जाति आधारित जनगणना कराने के वे पैरोकार रहे हैं।

भाजपा इसके विरोध में रही है। दोनों (चंद्रबाबू-नीतीश) ही अपने-अपने प्रदेश के लिए विशेष राज्य का दर्जा मांग रहे हैं। जिस तरह से पिछले कई वर्षों से यह मांग लटकाकर रखी गयी है, वह अब भी शायद ही पूरी हो। कारण यह है कि केन्द्र ने अगर यह मांग मान ली तो और भी अनेक राज्यों से यह मांग उठ सकती है। फिर, इसका श्रेय भी क्रमश: टीडीपी एवं जेडीयू को जायेगा और भाजपा या मोदी उसका राजनीतिक लाभ नहीं उठा पायेगी। आने वाले समय में इन मुद्दों पर परस्पर टकराव सम्भावित है। इतना ही नहीं, समान नागरिकता कानून, नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर आदि कई ऐसे मसले हैं जिन पर इन दोनों ही प्रमुख धड़ों की एनडीए से एकदम अलग राय है। इन दोनों सहयोगियों के रहते भाजपा इन मुद्दों पर आगे नहीं बढ़ सकेगी; और अगर नहीं बढ़ती तो वह अपने कोर वोटरों को नाराज़ व निराश दोनों ही करेगी। एक बात तो तय है कि भाजपा का मुस्लिम विरोधी एजेंडा आगे नहीं बढ़ सकेगा जिससे भाजपा कमजोर पड़ेगी क्योंकि यही उसकी मजबूती है।

एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि आंध्रप्रदेश में तो टीडीपी को इतना बड़ा जनादेश है कि वह भाजपा पर बिलकुल भी निर्भर नहीं है; पर दिल्ली में उसका साथ छोड़ देने पर केन्द्र सरकार गिर जायेगी। इसलिये चंद्रबाबू कहीं अधिक भारी पड़ रहे हैं। बिहार में अगले वर्ष चुनाव हैं। यदि नीतीश को लगता है कि उनके केन्द्र में एनडीए के साथ रहने से उनका विधानसभा में नुकसान होगा तो वे कोई और फैसला ले सकते हैं।

एनडीए इस बार संसद के बाहर व भीतर भी गिरे हुए मनोबल के साथ दिखाई देगी। जबकि इंडिया ब्लॉक बेहद मजबूती के साथ लौटा है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस तकरीबन 100 सदस्यों के साथ उपस्थित होगा। इससे आधी संख्या में मोदी को पानी पिलाने वाली कांग्रेस के प्रमुख नेता राहुल गांधी दो स्थानों से जीतकर सदन में आएंगे जबकि मोदी पिछले चुनावों के मुकाबले इतने कम वोटों से जीते हैं कि उसे एक तरह से उनकी हार ही कहा जा रहा है। इस समय की लोकसभा की बैठकों में वे यह नहीं कह सकेंगे कि वे एक अकेले सब पर भारी है। इसके साथ ही मोदी की कहें या भाजपा या एनडीए की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इंडिया पहले जैसी मजबूती से खड़ा है। पराजय के बाद भी उसमें कोई दरार नहीं पड़ी है। मोदी का वह दावा कहीं से पूरा होता नहीं दिख रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि 4 जून की शाम को इंडिया बिखर जायेगा। लोकसभा में मजबूत विपक्ष भाजपा को हर रोज परेशान करेगा।

लोगों का एक यह भी अनुमान है कि सरकार चलाने के लिये और पद पर बने रहने की अनिवार्यता के चलते मोदी को सहयोगियों की भरपूर लल्लो-चप्पो करनी पड़ेगी। इससे उनके प्रति होने वाली उपेक्षा से भाजपा के सदस्यों में निराशा व नाराज़गी हो सकती है। यह नाराजगी सरकार को भारी पड़ सकती है।

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