मणिपुर : आग से खेल रही है सरकार
राज्य और वहां रहने वाले नागरिकों के खिलाफ हिंसा में घृणा की व्यापकता कोई अच्छे संकेत नहीं देती है और जैसा हम आज देख रहे हैं कि मणिपुर जल रहा है और सरकार नहीं जानती कि आगे क्या करना है;
- जगदीश रत्तनानी
राज्य और वहां रहने वाले नागरिकों के खिलाफ हिंसा में घृणा की व्यापकता कोई अच्छे संकेत नहीं देती है और जैसा हम आज देख रहे हैं कि मणिपुर जल रहा है और सरकार नहीं जानती कि आगे क्या करना है। एक संवेदनशील क्षेत्र में यह संवेदनशील राज्य है जिससे दोस्ताना रखने वाले पड़ोसी नहीं हैं। राज्य में सरकारी मशीनरी का नाकाम होना चिंता का कारण होना चाहिए।
मणिपुर में फिलहाल चल रहा संकट जटिल है। उसके कारण हैं, उसका इतिहास है और इस संकट को हवा देने वाली वजहें भी हैं। सिद्धांत रूप में इसे हाल-फिलहाल में हुई घटनाओं के आलोक में समझाया जा सकता है। सरल शब्दों में कहें तो इसका कारण मैतेई और कुकी लोगों के बीच लंबे समय से चल रहा विभाजन है। मैतेई लोगों की आबादी राज्य में 50 प्रतिशत से थोड़ी अधिक है। यह इम्फाल में केंद्रित है तथा जिसका घाटी के जिलों की लगभग 10 फीसदी भूमि पर कब्जा है। कुकी लोगों की कुल आबादी 25 प्रतिशत है जिनमें से कई ईसाई हैं और ये मणिपुर के अधिकतर पहाड़ी क्षेत्रों में फैले हुए हैं।
विवाद को हवा मिलने का कारण इम्फाल में मणिपुर उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमवी मुरलीधरन का वह फैसला है जिसमें न्यायाधीश ने सरकार को आदेश दिया कि वह मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने पर चार सप्ताह के भीतर फैसला करे। कुकी जनजातियों के विरोध के बावजूद मैतेई इसकी मांग कर रहे हैं। उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश को तथ्यात्मक रूप से गलत बताया है और इसके खिलाफ अपील की जा रही है। आंदोलन की एक वजह मैतेई के प्रभुत्व वाली सरकार द्वारा वन भूमि पर अवैध रूप से कब्जा करने वालों तथा पड़ोसी म्यांमार के अवैध प्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई और पहाड़ी क्षेत्रों में अफीम की खेती के खिलाफ एक अभियान भी है जिसने पहाड़ी इलाकों पर कब्जा रखने वाले कुकी के बीच नई चिंताओं को जन्म दिया है।
फिर भी ये तात्कालिक कारण, उस पर हुई प्रतिक्रिया और इतिहास मामले की पूरी कहानी नहीं बता सकता है जो एक ऐसे समग्र दृष्टिकोण में निहित है और वह चिंता पैदा कर सकता है, मणिपुर में अभी देखी जा रही घृणा को भड़का सकता है और इस तरह टूटने का कारण बन सकता है। धीरे-धीरे दिल में कड़वाहट पैदा करने के कारणों को आसानी से समझा या मापा नहीं जा सकता है। राज्य और वहां रहने वाले नागरिकों के खिलाफ हिंसा में घृणा की व्यापकता कोई अच्छे संकेत नहीं देती है और जैसा हम आज देख रहे हैं कि मणिपुर जल रहा है और सरकार नहीं जानती कि आगे क्या करना है। एक संवेदनशील क्षेत्र में यह संवेदनशील राज्य है जिससे दोस्ताना रखने वाले पड़ोसी नहीं हैं। राज्य में सरकारी मशीनरी का नाकाम होना चिंता का कारण होना चाहिए।
समस्या कितनी गंभीर है वह इस बात से समझी जा सकती है कि राज्य में 29 मई से 1 जून तक केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की सिलसिलेवार बैठकों तथा कार्रवाइयों और लगभग उसी समय सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे के दौरे के बाद भी राज्य में शांति स्थापित नहीं हो पाई है। आने वाले दिनों में इस बात पर बहुत चर्चा होगी कि राज्य में पहली बार शासन कर रही भाजपा ने प्रदेश को इस दुखद स्थिति में कैसे ला दिया है। इस बात पर भी बहस होगी कि किन निर्णयों या गलत कार्यों की श्रृंखला की वजह से ऐसा माहौल बन गया जिसके कारण मैतेई-कुकी संघर्ष नियंत्रण के बाहर हो गया।
फिर भी, भौगोलिक दूरी और मुख्य धारा से कटे होने के कारण मणिपुर के जलने और उसकी आपदा के कारणों को समझने में शेष भारत को समय लगा है।
अब नागरिकों ने बयान जारी किया है जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों- राज्य और केंद्र में भाजपा के कथित 'डबल इंजन' की आलोचना की गई है। बयान में कहा गया है- 'वर्तमान परिदृश्य में सशस्त्र मैतेई बहुसंख्यक समूह कुकियों के खिलाफ हिंसा फैला रहे हैं ... इसके साथ ही नफरत फैलाने वाले भाषण और दिखावे के लिए माफी मांगने का ढोंग कर रहे हैं।' राज्य का दौरा करने वाले दो कांग्रेस सांसदों का कहना है कि उन्हें हिंसा की वारदातों की जानकारी लेने के लिए गुप्त रूप से जाना पड़ा, 'एक ऐसी भूमि पर जहां मानवता पर पहचान व विचारधारा हावी हो गई है और जिसने घृणा, हिंसा, रक्तपात और मौत को जन्म दिया है ...।'
मणिपुर हिंसा पर प्रधानमंत्री की चुप्पी पर सवाल उठाने के लिए 10 विपक्षी दल एक साथ आ गए हैं। यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) भी सामने आ रहे दुख और तबाही से जाग गया है। आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि 'मणिपुर में पिछले 45 दिनों से लगातार जारी हिंसा बेहद चिंताजनक है।'
स्थिति वाकई चिंताजनक है। केंद्र सरकार के प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग द्वारा 2020-2021 के लिए सुशासन सूचकांक (जीजीआई) रिपोर्ट के अनुसार मणिपुर ऐसा राज्य है जिसे सुशासन के मामले में सबसे कमजोर होने के लिए चिह्नित किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है- 'पूर्वोत्तर राज्यों की सूची में मणिपुर 11.2 प्रश की सर्वाधिक गिरावट के साथ सबसे ऊपर है जिन्होंने 2019 की तुलना में नकारात्मक वृद्धि दर्ज की है।' स्पष्ट रूप से विकास की दिशा खो गई है। इस महत्वपूर्ण समय में राज्य में हिंसा की लगातार बढ़ती घटनाओं को रोकने तथा शांति स्थापित करने के लिए आवश्यक समर्थन के लिए सभी प्रयास किए जाने चाहिए। हिंसक वारदातों में 100 से अधिक लोगों की जान लेने वाले घटनाक्रम के माहौल को ठंडा करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
हालांकि इसमें समय लगेगा लेकिन मणिपुर हमें नीतिगत झुकाव के अप्रत्याशित परिणामों के बारे में सचेत कर रहा और बता रहा है कि लोगों का जो वर्ग यह विश्वास रखता है कि सरकार एक पूर्व निर्धारित एजेंडे के अनुसार परिवर्तन का आदेश देने के लिए सक्षम है, वे गलतफहमी में हैं। यह धारणा गलत है कि राज्य के साधनों का उपयोग उन विचारों और नीतियों को पूरा करने के लिए किया जा सकता है जो लोकतांत्रिक बहस की नींव पर बने राष्ट्र के मिज़ाज के खिलाफ जाते हैं, जो देने और लेने पर यकीन रखते हैं या इसे समायोजित करने और लोकतंत्र को जगह देने पर भरोसा रखते हैं। अपने पसंदीदा और संकीर्ण एजेंडे के लिए राज्य के साधनों का उपयोग मुसीबतों को निमंत्रण देना है।
नफरत फैलाना आसान है। सभी कार्यों या बयानों पर तत्काल प्रतिक्रिया नहीं मिलेगी। कुछ प्रतिक्रियाएं विरोध के रूप में आएंगी जिन्हें नियंत्रित करना आसान होगा। बड़े विरोध प्रदर्शनों को ताकत से कुचला जा सकता है। लेकिन जब यह ड्रामा चल रहा है और भारी बहुमत वाली सरकार सोचती है कि वह अपनी चुनी हुई दिशा में आगे बढ़ रही है तो उसके खिलाफ धीमी गति से विरोध की शुरूआत होती है जो समय पाकर जड़ पकड़ना शुरू कर सकती है। असंतोष की यह लहर अक्सर अनदेखी, अनसुनी होती है लेकिन वह एक घातक सुनामी की ताकत लिए होती है, जो अचानक प्रहार करने के लिए चुपचाप खड़ी हो जाती है। यह असंतोष प्रचंड व्यवधान ला सकता है जिसे देश बर्दाश्त नहीं कर सकता। हमें लगता है कि हम एक बेहतर भविष्य की राह पर हैं लेकिन हम गलत मार्ग पर जा सकते हैं जिस पर चलने से देश अधिक विभाजित एवं अनियंत्रित हो सकता है।
'द ब्लैक स्वान' किताब में नासिम निकोलस तालेब लिखते हैं- 'आश्चर्य की बात हमारी पूर्वानुमान त्रुटियों की भयावहता नहीं बल्कि इसके बारे में जागरूकता की कमी है। यह और भी चिंताजनक है जब हम घातक संघर्षों में संलग्न होते हैं..., नीति और कार्यों के बीच की इस गलतफहमी के कारण आक्रामक अज्ञानता की वजह से हम अप्रत्याशित घटनाओं को आसानी से आमंत्रित कर सकते हैं जिनका अंजाम भयावह हो सकता है। जैसे कि एक बच्चा रसायन विज्ञान किट के साथ खेल कर हादसों को न्यौता देता है।' वर्तमान संदर्भ में भारत के लिए इसमें एक महत्वपूर्ण संदेश हो सकता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सिंडिकेट : दी बिलियन प्रेस)