मणिपुर के राहत शिविरों में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव

मणिपुर का मानवीय और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट असाधारण है;

Update: 2023-08-12 07:15 GMT

- डॉ.आनंद जकरिया व डॉ. रमानी अटकुरी

मणिपुर का मानवीय और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट असाधारण है। दो समुदायों के बीच हिंसक संघर्ष के कारण जान-माल का नुकसान हो रहा है। बड़े पैमाने पर विस्थापन हो रहा है। इन कारणों से स्वास्थ्य प्रणाली पंगु हो रही है और इसके अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रतिकूल परिणाम होंगे। सरकार सेवाएं प्रदान करने की कोशिश कर रही है।

यह लेख मणिपुर में 100 से अधिक दिनों से जारी मानवीय संकट के समय चिकित्सा सुविधाओं की कमी की ओर पर आम जनता और चिकित्सा समुदाय का ध्यान तत्काल आकर्षित करने के लिए लिखा जा रहा है जो मणिपुर में काम कर रहे स्वास्थ्य पेशेवरों और स्वास्थ्य स्वयंसेवकों से प्राप्त आरंभिक सूचनाओं और गैर-सरकारी संगठनों की रिपोर्टों के आधार पर लिखा गया है। वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति, स्वास्थ्य निहितार्थ और इसे सुधारने के लिए क्या किया जाना चाहिए- इस पर संक्षेप में प्रकाश डालना इसका उद्देश्य है।

मणिपुर में हिंसा, आगजनी तथा हत्याओं के परिणामस्वरूप घाटी और पहाड़ी दोनों में अस्थायी आश्रयों में बड़ी संख्या में विस्थापित लोग हैं। स्कूल, छात्रावास, गोदाम, पूजा स्थल या सामुदायिक हॉल जैसी जगहें इन लोगों का आश्रय स्थल बने हुए हैं। स्थानीय लोग और नागरिक समाज संगठन अपनी क्षमता के अनुसार विस्थापितों को राहत प्रदान कर रहे हैं लेकिन यह प्रभावितों की जरूरतों को पूरा करने में अपर्याप्त है। प्रभावित कई लोगों ने राज्य छोड़ दिया है और पड़ोसी राज्यों (नगालैंड, असम, मिजोरम आदि) या उनके परिवार या रिश्तेदार अगर हैं तो नई दिल्ली और बेंगलुरु जैसे दूर-दराज के शहरों में चले गए हैं

मणिपुर में चल रहे संघर्ष के कारण अब घाटी और पहाड़ियों के बीच एक अनौपचारिक क्षेत्रीय विभाजन है जिसमें दोनों क्षेत्रों के बीच लोगों, सामानों और वाहनों की आवाजाही प्रतिबंधित है। ये बातें सभी को मालूम है लेकिन डर है कि संकट की सीमा और पैमाने का पूरा अंदाज किसी को नहीं है।

अस्थिर और अंशात मणिपुर में इस समय 70 हजार से अधिक लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हैं, 142 व्यक्तियों के मारे जाने की सूचना है जबकि 6,000 से अधिक घायल हुए हैं। भारत में मानवीय एजेंसियों के राष्ट्रीय गठबंधन स्फीयर इंडिया के अनुसार, इन विस्थापितों ने मणिपुर के 10 जिलों में स्थित 253 राहत शिविरों में शरण ले रखी है। यह रिपोर्ट अंतर-एजेंसी समन्वय समिति (राहत में शामिल एजेंसियां) की बैठकों और यूनाइटेड रिस्पांस स्ट्रैटेजी (यूआरएस) मैट्रिक्स का उपयोग कर 100 से अधिक स्थानीय संगठनों की प्रतिक्रिया के आधार पर बनाई गई है।

मणिपुर में कार्यरत या वहां का दौरा कर चुके डॉक्टरों के अनुसार, शिविरों में साफ-सफाई की स्थिति गंभीर है खासकर बुजुर्ग और कमजोर लोगों के लिए। वहां भीड़-भाड़ है और स्वच्छता नहीं है। प्लास्टिक के बड़े टैंकों में पानी संग्रहित किया जाता है जो बाहर एक नल या बोरवेल से भरा जाता है। पानी कीटाणुरहित नहीं किया जाता है। अपशिष्ट जल की निकासी की व्यवस्था भी अपर्याप्त है। मानसून की शुरुआत होने के साथ ही स्वच्छता और जल निकासी बदतर हो गयी है। ऐसी भीड़-भाड़ वाली स्थिति में पर्याप्त सुविधा न होने के कारण बीमारी के प्रकोप का खतरा है। कुछ विस्थापित व्यक्तियों को मच्छरदानियां उपलब्ध कराई गई हैं। विस्थापितों को भोजन के रुप में सुबह-शाम मुख्य रूप से दाल और चावल दिया जाता है।

कभी-कभी बहुत कम मात्रा में सब्जियां या मांस दिया जाता है। छोटे बच्चों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं व बुजुर्गों की देखभाल के लिए न्यूनतम सुविधाएं उपलब्ध हैं। महिलाओं के लिए प्रसव पूर्व देखभाल तथा नियमित टीकाकरण सेवाएं बाधित हो गई हैं। एंटी-हाइपरटेंसिव या एंटी-डायबिटिक दवाओं की बहुत कम आपूर्ति है। बहुत कम सुविधाओं वाले इन शिविरों में प्रसव कराए जा रहे हैं। गंभीर रूप से बीमार रोगियों को अस्पताल ले जाना मुश्किल है। राहत शिविरों में ऐसे कई लोग हैं जिन्हें नशीली दवाओं की लत है और जिन्हें देखभाल और पुनर्वास सेवाओं की आवश्यकता है। विकलांग लोगों के लिए कोई सुविधा नहीं है। शिविरों में रह रहे लोगों के पास कोई काम नहीं है इस वजह से लोगों को किसी भी तरह बाहर से दवा खरीदने के लिए पैसा नहीं मिल सकता। शिविरों में रहने वाले और विशेष रूप से संघर्ष क्षेत्रों के रोगियों को अस्पताल पहुंचने में दिक्कत होती है।

रेफरल स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ ही शैक्षिक सुविधाएं घाटी में स्थित हैं और इसलिए हाल-फिलहाल पहाड़ियों में बने शिविरों में रहने वाले लोगों के लिए यह सुविधा दुर्गम हैं। हालांकि पहाड़ी क्षेत्रों में अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे भी मौजूद हैं लेकिन वहां घाटी की तुलना में कर्मचारियों के खाली पदों की संख्या बहुत अधिक है। स्वास्थ्य सुविधाओं में विशेषज्ञों, दवाओं और उपभोक्ता सामग्रियों की भारी कमी है। मौजूदा संघर्ष ने पहले से ही कमजोर स्वास्थ्य प्रणाली की समस्या को और बढ़ा दिया है।

अन्य राज्यों की तुलना में मणिपुर के स्वास्थ्य संकेतक, शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर और 5 वर्ष से कम आयु के कुपोषण के अखिल भारतीय औसत (एसआरएस 2020) से बेहतर हैं। यदि राज्य में अशांति का वर्तमान माहौल जारी रहता है तो इनमें से कुछ स्वास्थ्य संकेतक खराब हो सकते हैं।

मणिपुर के नागरिक अपने परिवार के सदस्यों की मृत्यु के साथ अपनी संपत्ति और आजीविका के नुकसान से भी दुखी हैं। भीड़भाड़ वाले शिविरों में तीन महीने से रहना तनावपूर्ण है। दोनों समुदायों में एक-दूसरे के खिलाफ गुस्सा और नाराजगी है। विस्थापन और कभी-कभी माता-पिता या भाई-बहन की मौत से बच्चे तनावग्रस्त और सदमे में हैं। अनिश्चित भविष्य और घर वापसी की अनिश्चितता ने तनाव और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को और बढ़ा दिया है। संघर्ष से कृषि गतिविधियां प्रभावित हुई हैं क्योंकि लोग बचाव के लिए अपनी जमीनें छोड़कर भाग हैं। स्कूली बच्चे, कॉलेज के छात्र और पेशेवर पाठ्यक्रम करने वाले लोग अपनी पढ़ाई फिर से शुरू नहीं कर पा रहे हैं। हमलों के डर से कुकी छात्र घाटी के अपने कॉलेजों में वापस नहीं जा सकते। उन्हें अपना भविष्य अनिश्चित लगता है।

मणिपुर का मानवीय और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट असाधारण है। दो समुदायों के बीच हिंसक संघर्ष के कारण जान-माल का नुकसान हो रहा है। बड़े पैमाने पर विस्थापन हो रहा है। इन कारणों से स्वास्थ्य प्रणाली पंगु हो रही है और इसके अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रतिकूल परिणाम होंगे।

सरकार सेवाएं प्रदान करने की कोशिश कर रही है लेकिन निरंतर हिंसा और लोगों के लगातार विस्थापन को देखते हुए व्यापक चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य समुदाय के लिए इन सेवाओं की व्यवस्था और पूरा करना महत्वपूर्ण है।

तत्काल स्वास्थ्य आवश्यकताएं चिकित्सा आपूर्ति के साथ-साथ वहां काम करने वाले कर्मचारियों के लिए भी जरूरी है। वहां अभी जिन बातों की आवश्यकता है, उनमें प्रमुख हैं- गर्भवती महिलाओं, छोटे बच्चों, बुजुर्गों और पुरानी बीमारी से पीड़ित लोगों को वरीयता के साथ प्राथमिक देखभाल प्रदान करने के लिए चिकित्सा पेशेवरों को स्वयंसेवा करनी चाहिए, ऐसे स्वयंसेवक वहां तैनात हों जो दु:ख और सदमे की स्थिति से उबरने के लिए परामर्श प्रदान कर सकते हैं या फिर इसे प्रदान करने के लिए स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित कर सकते हैं, स्थानीय स्वयंसेवकों के लिए बुनियादी स्वास्थ्य प्रशिक्षण जिससे वे छोटी बीमारियों का इलाज करने, प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करने और रोग निगरानी कर सकें और इलाज के लिए स्वास्थ्य किट का प्रावधान हो, दवाएं, आपूर्ति आदि।

इसमें संदेह नहीं कि दोनों समुदायों के साथ विश्वास बहाली के उपायों को शुरू करके यथाशीघ्र शांति बहाली सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। सरकार को बिना किसी भेदभाव के राहत और पुनर्वास सुनिश्चित करना चाहिए।

निम्नलिखित प्राथमिकताओं की पहचान करते हुए उम्मीद करनी चाहिए कि ये प्रथमिकताएं पूरी की जानी चाहिए : सरकार उचित पोषण, सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता के प्रावधान सहित सभी शिविरों को चलाने की पूरी जिम्मेदारी ले, सभी शिविरों में स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करें, ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों को मजबूत बनाना, जिन लोगों ने अपने पहचान पत्र खो दिए हैं उन लोगों के पहचान दस्तावेजों को बहाल करने की आवश्यकता है, महिलाओं की सुरक्षा, यौन उत्पीड़न की रोकथाम और यौन हिंसा के मामले में त्वरित कार्रवाई करना, स्वास्थ्य कर्मियों और चिकित्सा आपूर्ति के लिए सुरक्षित मार्ग उपलब्ध कराना और रोगियों और सुविधाओं दोनों तक पहुंचने की अनुमति दी जानी चाहिए, चिकित्सा, नर्सिंग और स्वास्थ्य विज्ञान से संबद्ध छात्रों को राज्य के भीतर या बाहर अपनी पढ़ाई फिर से शुरू करने में सक्षम बनाना, प्रभावित व्यक्तियों का यथाशीघ्र पुनर्वास आदि।

मणिपुर में चल रहे संघर्ष का समाधान केवल निरंतर राजनीतिक प्रयास और अंतर-सामुदायिक सुलह के माध्यम से ही हो सकता है लेकिन यह जरूरी है कि चिकित्सा बिरादरी के सदस्य होने और भारतीय नागरिकों के रूप में स्थायी शांति स्थापित होने तक मणिपुर के लोगों की पीड़ा कम करने के लिए काम करें।

(डॉ. जकरिया, क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर में मेडिसिन के प्रोफेसर हैं। डॉ. अटकुरी मध्य भारत में आदिवासी और ग्रामीण समुदायों के लिए कार्यरत हैं। सिंडिकेट : दी बिलियन प्रेस)

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