केजरीवाल मोदी पर मोदी की तरह ही हमला कर रहे हैं
जनता भी नहीं कर रही है। जनता का भी अब जो मूड सामने आ चुका है वह यही है कि सबसे पहले उसे बेरोजगार करने वाले को हटाना है;
- शकील अख्तर
जनता भी नहीं कर रही है। जनता का भी अब जो मूड सामने आ चुका है वह यही है कि सबसे पहले उसे बेरोजगार करने वाले को हटाना है। बेरोजगारी आज सबसे बड़ा मुद्दा बन गई है। और मोदी का इस पर एक शब्द भी नहीं बोलना जनता की इस आशंका को सही साबित कर रहा है कि मोदी जी के लिए यह कोई मुद्दा ही नहीं है। लगता है जो वह बड़ी-बड़ी बातें करते हैं जिसे अब जनता भी फेंकना कहने लगी है उस पर वे खुद भी यकीन करने लगे हैं।
अरविन्द केजरीवाल का बाहर आना मोदी जी के लिए मुसीबत बन गया। उनका प्रचार कि मैं जो चाहे कर सकता हूं, पांच सौ साल में मुझसे ताकतवर आदमी कोई नहीं हुआ कि हवा निकल गई। मोदी जी, भाजपा, भक्त और उनके मीडिया को यकीन ही नहीं था कि जिस केजरीवाल पर मोदी जी की आंख टेढ़ी है उसे जमानत भी मिल सकती है। सारा प्रचार तो यही था कि जिस पर मोदी जी ने हाथ डाल दिया वह खत्म। इसी डर से कांग्रेस के नेता भाजपा में शामिल हो रहे थे। ऐसा भय का माहौल बना दिया था कि किसी के भी खिलाफ कुछ भी हो सकता है।
आज वह माहौल टूट गया। झूठी ताकत की पूरी कहानी ध्वस्त हो गई। इसलिए आज भाजपा को सफाइयां देने पड़ रही हैं कि मोदी जी ही प्रधानमंत्री रहेंगे। 2029 तक भी और उसके बाद भी।
केजरीवाल से लोगों की चाहे जितनी शिकायतें हों, खासतौर से उनका किसी एक स्टैंड पर नहीं टिकने को लेकर मगर यह सही है कि मोदी को मोदी की ही शैली में जवाब वे ही दे सकते हैं। राहुल की शराफत, उनका आदर्शवाद, सिद्धांत उन्हें दूसरों के बारे में कुछ भी कहने नहीं देता। पिछले दस साल में मोदी जी ने इतने आरोप लगाए, खराब भाषा बोली, जो मुंह में आया बोला मगर राहुल ने मर्यादा बनाए रखी। प्रियंका जरूर कुछ तीखे शब्द बाण चला रही हैं। उनके भाषण हिट भी बहुत हो रहे हैं। मगर मर्यादा उन्होंने भी बना रखी है।
लेकिन केजरीवाल मोदी जी की तरह ही राजनीति करते हैं। जिनमें साधन नहीं साध्य ही प्रमुख होता है। इसलिए इंडिया गठबंधन में वे सबसे आखिरी में आए और गठबंधन खासतौर से कांग्रेस ने भी उन्हें बहुत सोच-समझ कर यस कहा।
दरअसल केजरीवाल और कांग्रेस दोनों यह समझ गए थे कि फर्स्ट थिंग फर्स्ट! पहले मोदी को हटाना जरूरी है। बाद की बाद में देखेंगे।
और इसलिए जमानत पर बाहर आते ही केजरीवाल ने मोदी की तरह ही बड़ा धमाका किया कि जीत भी जाएं तो भी मोदी जी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे। जिस तरह उन्होंने आडवानी, मुरली मनोहर जोशी, सुमित्रा महाजन को 75 साल की उम्र का वास्ता देकर मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया वैसे ही अब उन्हें भी जाना पड़ेगा। अगले साल वे 75 के हो रहे हैं। यह बिल्कुल मोदी जी वाली ही शैली है। जैसे वे दूसरी पार्टियों के बारे में कहते हैं वैसी ही। कांग्रेस खतम हो जाएगी। सोनिया गांधी ऐसी, नेहरू ऐसे, राहुल ये! या आम आदमी पार्टी क्या है, केजरीवाल आतंकवादी! सब पर बोला लालू जी, तेजस्वी, अखिलेश, ममता, उद्धव ठाकरे, शरद पवार किस को छोड़ा?
मगर चौथी पास किसी ने नहीं कहा। यह केजरीवाल ही कह सकते हैं। राहुल भी कह रहे हैं कि अब मोदी जी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे। मगर उनका आकलन यह है कि भाजपा एक सौ चालीस से ज्यादा ही नहीं पाएगी तो प्रधानमंत्री बनने का सवाल ही नहीं।
मगर केजरीवाल मोदी की स्टाइल में ही खेलते हैं। वे यह कहकर भाजपा के अंदर हलचल मचा देते हैं कि अगर जीत भी गए तो अमित शाह बनेंगे। और सबसे पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी को हटाया जाएगा। जो केजरीवाल चाहते थे वह काम हो गया। खुद अमित शाह जिनके प्रधानमंत्री बनने की बात कही गई उन्हें सफाई देना पड़ी। राजनाथ सिंह जिनका सबसे ज्यादा अवमूल्यन किया गया उन्हें भी कहना पड़ा कि नहीं बनेंगे तो मोदी जी। राजनाथ केन्द्र की राजनीति में भाजपा के सबसे पुराने नेता हैं। सीनियर। दो बार के अध्यक्ष हैं। मगर सबसे ज्यादा डरे वे ही रहते हैं। 2014 में प्रधानमंत्री बनते ही उनके बेटे पंकज सिंह पर जिस तरह पुलिस से वसूली के आरोप लगाए गए थे। उसके बाद से पंकज सिंह का राजनीतिक भविष्य तो रुक ही गया खुद राजनाथ अपना आत्मविश्वास खो बैठे। आज की तारीख में भाजपा के सबसे दयनीय नेताओं में वे हैं। जैसे बसपा का बड़े से बड़ा नेता भी कोई अधिकार नहीं रखता मगर कहता यही है कि नहीं ऐसा नहीं है। बहन जी ने हमें पूरी छूट दे रखी है पानी की बोतल कौन सी खरीद कर पीना है यह हम खुद तय करते हैं। वैसे ही राजनाथ के पास भी तय करने के इतने ही अधिकार हैं। भले आदमी हैं मगर सबसे ज्यादा डरे हुए।
ऐसे नेताओं की लिस्ट बहुत लंबी है। सब इंतजार में बैठे हैं। केजरीवाल ने मोदी के रिटायरमेंट की घोषणा करके सबकी उम्मीदों को हरा कर दिया। भाजपा में लोग कहने लगे कि कांटा ही कांटे को निकाल सकता है। केजरीवाल को वहां भी मोदी की तरह ही लोग व्यक्तिवादी नेता मानते हैं। जो खुद को स्थापित करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
कांग्रेस के कई समर्थकों को कष्ट है यह कि केजरीवाल से समझौता क्यों किया? लेकिन कांग्रेस जानती है कि यह समय छोटे विरोधी से लड़ने का नहीं। राजनीति का पुराना सिद्धांत है कि दुश्मन का दुश्मन आपका दोस्त! कांटा कांटे को निकालता है। आज भी यह सवाल है कि अगर इंडिया गठबंधन जीत जाता है तो सबसे पहले विवाद की शुरूआत कहां से होगी? हो सकता है कहीं और से हो या न हो लेकिन सबको केजरीवाल की महत्वाकांक्षा पर सबसे ज्यादा शक है
लेकिन यह समय इन सब बातों पर विचार करने का नहीं है। क्योंकि जनता भी नहीं कर रही है। जनता का भी अब जो मूड सामने आ चुका है वह यही है कि सबसे पहले उसे बेरोजगार करने वाले को हटाना है। बेरोजगारी आज सबसे बड़ा मुद्दा बन गई है। और मोदी का इस पर एक शब्द भी नहीं बोलना जनता की इस आशंका को सही साबित कर रहा है कि मोदी जी के लिए यह कोई मुद्दा ही नहीं है। लगता है जो वह बड़ी-बड़ी बातें करते हैं जिसे अब जनता भी फेंकना कहने लगी है उस पर वे खुद भी यकीन करने लगे हैं।
मनोविज्ञान में ऐसी चीज होती है कि आप झूठ बोल बोलकर खुद उस पर यकीन करने लगते हैं। लगता है मोदी जी को यकीन है कि उन्होंने अपने वादे जिसे अब वह गारंटी कहने लगे हैं के अनुरूप दो करोड़ रोजगार हर साल दिए हैं। और फिर भी अगर कुछ लोग बचे रह गए तो वह उनके कहे मुताबिक पकौड़े तलकर रोजगार पा रहे हैं।
इसलिए जनता भी इसमें बिल्कुल नहीं उलझ रही कि अगर इंडिया जीता तो कौन बनेगा प्रधानमंत्री? अब लोग कहते हैं कि मोदी जी ने इंडिया जीता कहकर यह तो मान लिया है कि वे नहीं जीत रहे। बाकी बहुत नेता हैं वहां और अगर मोदी जी चाहेंगे तो उनसे पूछ लेंगे! वहां बीजेपी में तो कोई उनसे पूछने वाला होगा नहीं। हार के बाद क्या होगा इसकी कल्पना भी मोदी जी के लिए भयावह होगी। खुद बीजेपी और संघ के लोग उन्हें बख्शेंगे नहीं। दस साल में पार्टी और संघ कहीं नहीं है। मोदी सरकार, मोदी तीसरी बार, मोदी परिवार सब मोदी ही मोदी है। भाजपा और संघ का कहीं नाम नहीं है।
इसलिए केजरीवाल का यह दांव कामयाब हो गया। इंडिया गठबंधन से मोदी का ध्यान हट गया। अब वे यही सोच रहे हैं कि पार्टी में कौन क्या करेगा। उनके सबसे बड़े समर्थक अमित शाह को केजरीवाल ने प्रधानमंत्री पद के सपने दिखा दिए। दूसरे बड़े नेता योगी को चेतावनी दे दी कि अगले निशाने पर आप हो। कोई भाजपा नेता इसकी सफाई भी नहीं दे रहा है। मतलब केजरीवाल की तीर सही निशाने पर लगा है। भाजपा में हचलच मच गई।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)