इंडिया ब्लॉक पार्टियों को एक स्थिर सरकार देने के लिए हाथ मिलाना चाहिए

जम्मू और कश्मीर में 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को तीन चरणों में विधानसभा चुनाव होंगे, जिसमें 90 विधायकों का चुनाव होगा;

Update: 2024-08-21 08:01 GMT

- कल्याणी शंकर

आगामी विधानसभा चुनावों के लिए परिदृश्य स्पष्ट नहीं है। कांग्रेस और एनसी एक साथ जा सकते हैं। उमर अब्दुल्ला ने कहा कि पीडीपी के साथ गठबंधन करना मुश्किल होगा क्योंकि संसदीय चुनाव में दोनों एक दूसरे के खिलाफ खड़े हुए थे। अगर क्षेत्रीय दलों को सुधार करना है तो उन्हें एकजुट होना होगा और इंडिया ब्लॉक को सहयोग करना होगा।

जम्मू और कश्मीर में 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को तीन चरणों में विधानसभा चुनाव होंगे, जिसमें 90 विधायकों का चुनाव होगा। अगस्त 2019 में भारत के संविधान की धारा 370 के निरस्त होने और राज्य के विभाजन के बाद यह पहला चुनाव होगा।

नये चुनाव कराने में देरी कई सालों से विवाद का विषय रही है। हालांकि, समय-सीमा तय करने में हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश महत्वपूर्ण था। अब जब चुनावों की घोषणा हो गई है, तो सभी राजनीतिक दलों ने इसका स्वागत किया है।

कश्मीर लंबे समय से भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा है। दोनों देश कश्मीर पर दावा करते हैं, हालांकि वे इसके केवल एक हिस्से पर शासन करते हैं। पाकिस्तान ने इस मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण भी कर दिया है, जिसे संयुक्त राष्ट्र में भी लाया गया है।

2019 में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा राज्य को विभाजित करने के फैसले के बाद मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आईं। इस फैसले के कारण कश्मीर ने अपना झंडा, आपराधिक संहिता और संवैधानिक सुरक्षा खो दी। कश्मीरियों के लिए सरकारी नौकरी के अवसर कम हो गये और अब वे गैर-निवासियों के लिए खुले हैं। चुनौतियों के बावजूद, राज्य ने सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के बदलाव देखे हैं। प्रधानमंत्री की पहल ने विकास को बढ़ावा दिया है और जम्मू-कश्मीर में निवेश करने में खाड़ी देशों की बढ़ती दिलचस्पी एक आशाजनक भविष्य का संकेत देती है, जिससे निवासियों में उम्मीद जगी है।

गृह मंत्रालय ने बताया कि 2019 में सुरक्षा बलों की हताहतों की संख्या 80 से घटकर 2023 में 33 हो गई है और 2019 में 44 से घटकर 2023 में 12 नागरिकों मौतें हुई हैं।

पिछले राज्य चुनाव 2014 में हुए थे। 2024 के लोकसभा चुनावों में उच्च मतदान ने विधानसभा चुनावों को कराने के उत्साह को जन्म दिया है। कश्मीर में हाल ही में हुए संसदीय चुनावों में ऐतिहासिक 58.46प्रतिशत मतदान हुआ, जो 2019 के आम चुनाव से 30 अंकों की वृद्धि है।

सरकार ने 2019 में भारत के संविधान की धारा 370 को हटाने और विभाजन के बाद 2022 में परिसीमन अभ्यास पूरा किया। 2022 के परिसीमन के बाद जम्मू और कश्मीर में विधानसभा सीटें 87 से बढ़कर 114 हो गईं, जिसमें पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) की 24 सीटें शामिल हैं। सीटों में यह वृद्धि संभावित रूप से सत्ता के संतुलन को बदल सकती है और आगामी चुनावों में राजनीतिक दलों की रणनीतियों को प्रभावित कर सकती है।

भाजपा ने दावा किया कि धारा 370 को खत्म करने और कश्मीर में उसके बाद लागू की गई नीतियों ने क्षेत्र को बेहतर तरीके से विकसित किया है।
जम्मू और कश्मीर में हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण जीत थे। 2024 के लोकसभा चुनावों में, एनसी और पीडीपी ने फिर से उभार देखा। चुनाव ने उन्हें अपनी सदस्यता को पुनर्जीवित करने और लंबे समय से चले आ रहे मुद्दों को सामने लाने का मौका दिया। हालांकि कांग्रेस को कोई सीट नहीं मिली, लेकिन नेशनल कॉन्फ्रेंस ने तीन में से दो सीटें जीतीं, तथा तीसरी सीट के लिए कड़ी चुनौती पेश हुई।

इस क्षेत्र में आतंकवाद के इतिहास और चुनावों में धांधली के आरोपों के बावजूद, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनावों की व्यापक रूप से सराहना की गई। आगामी चुनाव धारा 370 के तहत क्षेत्र के विशेष दर्जे को रद्द करने के बाद जम्मू और कश्मीर को भारतीय संघ में पूरी तरह से एकीकृत करने के केंद्र सरकार के प्रयासों का परीक्षण करेगा। यह चुनाव आयोग के लिए भी बिना किसी हिंसक घटना के चुनाव कराने की परीक्षा है।

राजनीतिक दलों ने आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी शुरू कर दी है, जिसमें प्रचार रणनीति, गठबंधन और उम्मीदवार चयन शामिल हैं। कांग्रेस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और नेशनल कॉन्फे्रंस ने चुनावों की योजना बनाने के लिए बैठकें की।

यदि विधानसभा चुनाव निर्धारित समय पर होते हैं, तो घाटी में नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के बीच मुकाबला देखने को मिलेगा। इसके अलावा, लोकसभा चुनावों के दौरान जिस धु्रवीकरण और अलगाववादी कथानक ने जोर पकड़ा था, वह विधानसभा चुनावों के दौरान और तेज हो जायेगा।

2014 के जम्मू-कश्मीर चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। 49 दिनों तक राष्ट्रपति शासन लागू रहा, जब तक कि पीडीपी की महबूबा मुफ़्ती को भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री नहीं बना दिया गया। बाद में भाजपा ने सत्तारूढ़ गठबंधन से अपना समर्थन वापस ले लिया, जिसके कारण फिर से राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। नवंबर 2018 में विधानसभा भंग कर दी गई और दिसंबर 2018 में राष्ट्रपति शासन फिर लागू कर दिया गया। तब से राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है।

सरकार को यह तय करना होगा कि नरम अलगाववाद से निपटने के लिए कश्मीर घाटी में हस्तक्षेप करना है या चुनाव से पहले पुनर्गठन योजना पर विचार करना है।
संसदीय चुनावों के दौरान, कांग्रेस और एनसी ने गठबंधन किया था। एनसी ने कश्मीर में तीन सीटों पर चुनाव लड़ा, जबकि कांग्रेस ने जम्मू और उधमपुर में चुनाव लड़ा। इंडिया गठबंधन का हिस्सा पीडीपी को समायोजित नहीं किया गया और उसने नेशनल कॉन्फ्रेंस के खिलाफ कश्मीर में तीन सीटों पर उम्मीदवार उतारे।

आगामी विधानसभा चुनावों के लिए परिदृश्य स्पष्ट नहीं है। कांग्रेस और एनसी एक साथ जा सकते हैं। उमर अब्दुल्ला ने कहा कि पीडीपी के साथ गठबंधन करना मुश्किल होगा क्योंकि संसदीय चुनाव में दोनों एक दूसरे के खिलाफ खड़े हुए थे।

अगर क्षेत्रीय दलों को सुधार करना है तो उन्हें एकजुट होना होगा और इंडिया ब्लॉक को सहयोग करना होगा। कश्मीर चुनाव महत्वपूर्ण हैं और पूरा देश एक दशक के बाद एक लोकप्रिय सरकार का उदय देखेगा।

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