अवार्ड वापसी से घबराई सरकार
अपने खिलाफ बन रहे वातावरण से परेशान केन्द्र सरकार अपनी और भी फजीहत न होने देने के लिये कुछ ऐसे कदम उठा रही थी जो हास्यास्पद ही कहे जा सकते हैं;
अपने खिलाफ बन रहे वातावरण से परेशान केन्द्र सरकार अपनी और भी फजीहत न होने देने के लिये कुछ ऐसे कदम उठा रही थी जो हास्यास्पद ही कहे जा सकते हैं। उसने तय किया है कि किसी भी तरह के अवार्ड देने के लिये जिन लोगों के नाम शार्ट लिस्ट होते हैं उनसे पहले ही वह लिखवा लेगी कि प्राप्तकर्ता द्वारा किसी भी स्थिति में या विरोधस्वरूप ये अवार्ड वापस नहीं किये जायेंगे। पहले हुए ऐसे कुछ उदाहरणों को ध्यान में रखकर ही सम्भवत: सरकार ने इस आशय का फैसला लिया है, लेकिन यह फैसला बतलाता है कि विरोध से यह सरकार किस कदर घबराती है। जिस तरह से कोई सम्मान पाने की कोशिश करना या प्राप्त करना किसी का हक है वैसे ही सरकार के विरोध में या उसकी किसी रीति-नीति से नाराज़ होकर पुरस्कार ठुकराना या लौटाना भी उसका अधिकार है।
वर्तमान सरकार के कार्यकाल में ऐसे कुछ उदाहरण सामने आये हैं जब मानव गतिविधियों के विविध क्षेत्रों में जिन लोगों को उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिये सरकार द्वारा अवार्ड दिये गये थे, कुछ ने कतिपय मुद्दों पर अपनी असहमति, नाराजगी या विरोध जताते हुए अपने अवार्ड वापस किये थे। इसे सरकार अपनी किरकिरी मानती रही है।
नाराजगी दूर करने या अपनी कार्यप्रणाली को सुधारने की बजाय सम्मान न लौटाये जायें, इसके इंतज़ाम करना एक अजीब सी बात है। साल 2015 के दौरान कर्नाटक के प्रख्यात लेखक एमएम कलबुर्गी की हत्या के विरोध में 39 लेखकों ने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिये थे। इस स्थिति से निपटने के लिये ही शायद संसद की एक स्थायी समिति ने अकादमी पुरस्कारों के लिए शॉर्ट लिस्ट होने वाले उम्मीदवारों से ऐसा शपथ पत्र पहले से लेने का सुझाव दिया है कि प्राप्त होने पर वे सम्मान लौटाएंगे नहीं। पर्यटन, परिवहन और संस्कृति पर संसदीय स्थायी समिति ने सोमवार को राज्यसभा को अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें यह सिफारिश की गयी है। सम्मान लौटाने को अपमानजनक बताया गया है।
पुरस्कार लौटाने का इतिहास पुराना है। जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में महात्मा गांधी ने बोअर युद्ध के दौरान उनकी सेवाओं के लिये ब्रिटिश सरकार द्वारा दिया गया 'कैसर-ए-हिंद पुरस्कार' और नोबेल विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने 'नाइटहुड' की उपाधि लौटाई थी। 1954 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आशादेवी आर्यनायकम ने पद्मश्री और 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार से व्यथित प्रसिद्ध लेखक खुशवन्त सिंह ने पद्मभूषण लौटाया था। नृत्यांगना सितारा देवी ने 1973 में पद्मश्री तो स्वीकारा लेकिन बाद में पद्मभूषण लेने से यह कहकर इंकार कर दिया कि वे भारत रत्न से छोटा पुरस्कार नहीं लेंगी। 1991 में सरदार सरोवर बांध के निर्माण के विरोध में बाबा आमटे ने पद्म विभूषण और 1971 में मिला पद्मश्री लौटाया था।
पर्यावरणवादी सुंदरलाल बहुगुणा ने पेड़ों की कटाई के विरोध में 1981 में पद्मश्री ठुकराया पर 2009 में पद्म विभूषण स्वीकार कर लिया। प्रसिद्ध अभिनेता सौमित्र चटर्जी ने पहले पद्मश्री अस्वीकार कर दिया पर बाद में पद्म विभूषण ले लिया। बिलियर्ड्स चैंपियन माइकेल फरेरा ने भी पद्मश्री को नकारा पर पद्म विभूषण लिया। सरोद वादक बुद्धदेव दासगुप्ता की भी यही कहानी है। अन्ना हजारे ने शासकीय भ्रष्टाचार के विरोधस्वरूप 1991 में पद्मश्री लौटाया पर अगले साल पद्म भूषण स्वीकार लिया। श्री श्री रविशंकर ने 2015 में पद्म विभूषण ठुकराया पर 2016 में जब कई लोग अपने सम्मान लौटा रहे थे, तो इसे ग्रहण कर लिया।
मदर टेरेसा ने 1960 व 1961 में दो बार पद्मश्री यह कहकर नहीं लिया कि वे तो ईश्वर की सेवा कर रही हैं; पर नोबेल पुरस्कार मिलने के पश्चात भारत रत्न ले लिया। उद्योगपति के. के. बिड़ला ने इंदिरा गांधी द्वारा पद्मभूषण की पेशकश के प्रति अनासक्ति जतलाई। दूसरी बार उन्होंने फिर से इसे यह कहकर नकारा कि इससे वे अपने पिता के समकक्ष आ जायेंगे जो यही पुरस्कार पा चुके थे।
गांधीवादी अमलप्रवा दास ने पद्मश्री व पद्म विभूषण दोनों ही ठुकराये थे। शासकीय कृषि नीति के खिलाफ महाराष्ट्र के किसान नेता शरद जोशी ने जीते जी पद्मश्री तो ठुकराया ही, मरणोपरांत उन्हें दिये जा रहे पद्म विभूषण को भी लेने से उनके परिजनों ने इंकार कर दिया। सितार वादक विलायत खान ने 1964 में पद्मश्री, 1968 में पद्मभूषण और 2000 में पद्म विभूषण इसलिये इंकार कर दिया कि चयन समितियां उनके संगीत का मूल्यांकन करने में अक्षम हैं। प्रसिद्ध बांग्ला नाटककार बादल सरकार ने पद्मश्री (1972) और पद्म भूषण (2010) इसलिये नकारा कि वे पहले ही (1968) संगीत नाटक अकादमी से पुरस्कृत हैं जो उनके कामों को बेहतर जानती है।
कवि सुरजीत पातर ने देश में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ 1993 में प्राप्त साहित्य अकादमी और 2020 में 2012 में मिला पद्मश्री लौटाया था। पत्रकार मणिकोंडा ने भी दो बार पद्म विभूषण नकार दिया।
सम्मान लेना या न लेना किसी की मर्जी पर है और लौटाना भी उसका अपना निर्णय है। सरकार को तो यह देखना चाहिये कि जिन मुद्दों के खिलाफ सम्मान लौटाया जा रहा है उसका निवारण हो। सम्मान वापसी को प्रतिष्ठा का मुद्दा न बनाकर सरकार को उदार दिल दिखाना चाहिये। यह लिखवाकर लेना कि मिलने पर वे अवार्ड वापस नहीं करेंगे, सरकार का भय दर्शाता है कि वह अपनी छवि गिरने की कितनी चिंता करती है। इससे यह भी झलकता है कि सरकार को प्रतिभाओं की न तो तासीर का अंदाजा है और न ही वे उनका सम्मान करना जानते हैं। सचमुच का प्रतिभाशाली व्यक्ति सम्मान लौटाने का अपना अधिकार सुरक्षित रखेगा। लिखकर वे ही देंगे जो दोयम दर्जे के होंगे।