ललित सुरजन की कलम से- हिंदी में साहित्येतर लेखन और एक अच्छी पुस्तक

मुझे जब कभी इस साहित्येतर लेखन के अंतर्गत प्रकाशित कोई पुस्तक पसंद आई है तो मैंने अक्षर पर्व में इस स्तंभ के अंतर्गत उसकी चर्चा यथासमय पर की है। एक बार फिर एक और अच्छी पुस्तक मेरे हाथों में है;

Update: 2025-05-15 02:58 GMT

'मुझे जब कभी इस साहित्येतर लेखन के अंतर्गत प्रकाशित कोई पुस्तक पसंद आई है तो मैंने अक्षर पर्व में इस स्तंभ के अंतर्गत उसकी चर्चा यथासमय पर की है। एक बार फिर एक और अच्छी पुस्तक मेरे हाथों में है।

वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह ने भारतीय डाक -सदियों का सफरनामा शीर्षक से जो पुस्तक दस साल पहिले लिखी, उसके अब तक छह संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। यह तो तय है कि भारतीय डाक विभाग ने इस पुस्तक की बिक्री में खासा योगदान किया होगा; फिर भी उसके छह संस्करण प्रकाशित होना इस बात का सबूत है कि सामान्य पाठकों के बीच भी पुस्तक लोकप्रिय हुई है। चूंकि इसे नेशनल बुक ट्रस्ट ने प्रकाशित किया है, इसलिए बिक्री के आंकड़े भी प्रामाणिक होंगे, इसमें संदेह नहीं।'

'अरविंद ने भारतीय डाक लिखने हेतु सामग्री जुटाने में गहन शोध और अपार श्रम किया है। इसके लिए उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर डाकघर की प्रणाली का अध्ययन किया, कुछ पड़ोसी देशों की डाक व्यवस्था को भी समझा, डाक विभाग के अभिलेखों में डूबकर तथ्य और आंकड़े जुटाए, नीति निर्माताओं याने डाक विभाग के मंत्रियों व अफसरान के साथ बातचीत कर उनका दृष्टिकोण समझा, तब कहीं जाकर 400 पृष्ठ की यह किताब तैयार हो सकी है।'

(अक्षर पर्व मई 2016 अंक की प्रस्तावना)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2016/05/blog-post_18.html

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