ललित सुरजन की कलम से- आने वाले दिनों की एक तस्वीर
'कांग्रेस अपने बुनियादी चरित्र में एक राजनैतिक दल नहीं, बल्कि एक आंदोलन है;
'कांग्रेस अपने बुनियादी चरित्र में एक राजनैतिक दल नहीं, बल्कि एक आंदोलन है। इतिहास उठाकर देखें कि पार्टी में समय-समय पर भांति-भांति के विचारों के लोग आते-जाते रहे हैं। इसकी शुरूआत नरम दल और गरम दल के समय ही हो गई थी।
गो कि इसे आंदोलन का रूप महात्मा गांधी ने दिया। इस दृष्टि से विचार करें तो समझ आता है कि कांग्रेस को हर समय ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता है जो उसके आंदोलनकारी रूप को कायम रख सके।
इसके लिए सत्ता को साध्य नहीं, बल्कि साधन मानने की भावना; और जब सत्ता से बाहर हों तो आंदोलन को जारी रखने के लिए धैर्य, साहस और बलिदान के गुण चाहिए। कहना न होगा कि 1947 से लगातार लंबे समय तक सत्ता में बने रहने के कारण पार्टी के बड़े वर्ग ने उसे ही साध्य मान लिया, जिसके दुष्परिणाम भी पार्टी को जब-तब भुगतने पड़े हैं।'
'यह मेरा मानना है कि महात्मा गांधी ने कांग्रेस को जिस सांचे में ढाला था, उसे सबसे बढ़कर नेहरूजी ने ही सही अर्थों में समझा था। आज राहुल उसी भावना का पुनराविष्कार करने का प्रयत्न कर रहे हैं। आज की बदली हुई परिस्थितियों में वे कितने सफल हो पाते हैं, यह एकदम अलग बात है। 1964 के बाद से अलग-अलग दौर में के. कामराज, सिंडीकेट, पीवी नरसिंहराव, सीताराम केसरी आदि का पार्टी में वर्चस्व रहा, लेकिन यह सबके सामने है कि उन्होंने पार्टी को मजबूत किया या कमजोर!'
(देशबन्धु में 06 जून 2019 को प्रकाशित)
Posted by Lalit Surjan at 00:07