सही आंकड़े छुपा कर विकास के झूठे दावे
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेस (आईआईपीएस) एक प्रतिष्ठित डीम्ड भारतीय विश्वविद्यालय है;
- जगदीश रत्तनानी
एनएचएफएस- 5 ने बताया कि पांच वर्ष से कम आयु के 36 प्रतिशत बच्चे अविकसित हैं। मतलब यह कि उनकी उम्र के हिसाब से विकास बहुत कम है जो एनएफएचएस- 4 में देखे गए क्रोनिक कुपोषण के मामले में मामूली बदलाव बताता है जो केवल 38 फीसदी है। इसी तरह पांच साल से कम उम्र के 19 प्रतिशत बच्चे कमजोर हैं अर्थात उनकी ऊंचाई के हिसाब से बहुत पतले हैं जो एनएचएफएस- 4 में देखे गए 21 फीसदी से थोड़ा ही कम है।
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेस (आईआईपीएस) एक प्रतिष्ठित डीम्ड भारतीय विश्वविद्यालय है। 63 साल पुराना यह संस्थान अन्य कार्यों के अलावा अत्यधिक सम्मानित और प्रसिद्ध राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) श्रृंखला और रिपोर्टों के लिए प्रसिद्ध है। इन रिपोर्टों में एनएफएचएस राउंड के तहत डेटा विश्लेषण किया गया है जिसने पिछले तीन दशकों से भारत की जनसांख्यिकीय और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी का एक स्वतंत्र बुनियादी नज़रिया प्रदान किया है ताकि हमें बताया जा सके कि नीतिगत निर्देशों से जमीनी स्तर पर बदलाव हो रहा है या नहीं। इस प्रकार आईआईपीएस डेटा पर एक महत्वपूर्ण स्थान पर काम करता है जो सरकार को उसके कामों का आईना दिखाता है और नीतिगत कार्यों को सही दिशा में चलाने में मदद कर सकता है।
इस महत्वपूर्ण संस्थान के निदेशक प्रसिद्ध जनसांख्यिकी, शोधकर्ता और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व संकाय सदस्य प्रोफेसर केएस जेम्स को पिछले हफ्ते निलंबित कर दिया गया। उन्हें जांच पूरी होने तक मुख्यालय क्षेत्र मुंबई न छोड़ने का निर्देश दिया गया है। बताया जा रहा है कि इस निर्णय से आईआईपीएस फैकल्टी और पूर्व छात्र सदमे में हैं। विपक्ष ने इस कदम की आलोचना की है। इस घटनाक्रम से वैज्ञानिक और अन्य संकायों के सदस्य चिंतित हैं। निलंबन किन कारणों से किया गया इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन मामले की जानकारी रखने वालों का कहना है कि निदेशक को हटाने के लिए पहले कई तरह के प्रयास किए गए जिसके बाद निलंबन का आदेश जारी किया गया। जाहिर तौर पर उन्हें कुछ महीने पहले इस्तीफा देने के लिए कहा गया था लेकिन जेम्स ने कथित तौर पर यह कहते हुए इंकार कर दिया कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है और वे बिना किसी कारण के इस्तीफा नहीं देंगे।
इस निलंबन से एक बार फिर यह आशंका पैदा हो रही है कि सरकार संस्थानों को नियंत्रित करने और उन लोगों को दंडित करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है जिन पर वह लगाम नहीं लगा पा रही है। यह सच है कि जेम्स का निलंबन सजा नहीं है बल्कि जांच होने तक की गई कार्रवाई है। यह भी सच है कि सरकार को प्राप्त शिकायतों या सूचनाओं के आधार पर जांच करने का अधिकार है। लेकिन अगर अंदरूनी खबरों पर भरोसा किया जाए तो यह भी उतना ही सच है कि सरकार निदेशक को बाहर करना चाहती थी, लेकिन अगर यह अनियमितताओं का मामला है तो निदेशक को कैसे और क्यों जाने के लिए कहा जाएगा और जांच भी तभी शुरू की गई जब उन्होंने चुपचाप जाने से इंकार कर दिया?
ये सवाल तब महत्वपूर्ण हो जाते हैं जब आईआईपीएस के काम को जनसांख्यिकी से संबंधित आंकड़ों को सामने रखने में इसकी भूमिका, प्रजनन और बाल स्वास्थ्य, सामाजिक-आर्थिक संकेतक, प्रजनन क्षमता, माता तथा बाल मृत्यु दर, पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर, पोषण की स्थिति, टीकाकरण की पहुंच, पानी, स्वच्छता, लैगिंक हिंसा और यहां तक कि मधुमेह और रक्तचाप जैसी जीवन शैली की आधुनिक बीमारियों के प्रसार जैसे प्रमुख मापदंडों में देखा जाता है।
एनएफएचएस रिपोर्ट की नवीनतम रिलीज (एनएफएचएस- 5, 2019-2021) में देश को बताया गया है कि 19 प्रतिशत भारतीय परिवार खुले में शौच करते हैं। एनएफएचएस-4 की 2015-16 की रिपोर्ट की तुलना में खुले में शौच करने वाले आंकड़ों में 39 फीसदी सुधार ग्रामीण भारत के लिए एनएफएचएस- 5 ने बताया कि 26 फीसदी घरों में अभी भी शौचालय नहीं थे इसलिए वे खुले में शौच करते थे। निश्चित तौर पर पिछले कुछ वर्षों में संख्या में सुधार है लेकिन फिर भी यदि आप इसे इस तरह से देखना चाहते हैं तो यह उस व्यापक दावे की हवा निकाल देता है जिसमें 2019 में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ग्रामीण भारत पहले से ही खुले में शौच से मुक्त है। उन्होंने महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती मनाने के लिए चल रहे कार्यक्रमों के हिस्से के रूप में यह दावा किया था।
राजनीतिक दावों व अधिकारियों द्वारा पेश फर्जी आंकड़ों तथा जमीनी आंकड़ों के बीच का विरोधाभास स्वतंत्र रूप से आंकड़े रिपोर्ट करने में समर्थ आईआईपीएस के स्वतंत्र एनएफएचएस चलाने के महत्व को प्रतिपादित करता है। हालांकि आईआईपीएस स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) का एक हिस्सा है किन्तु यह एक स्वायत्त संस्थान है और इसे कभी भी अपने सर्वेक्षणों और निष्कर्षों पर सवालों का सामना नहीं करना पड़ा है। वास्तव में एनएचएफएस का सर्वेक्षण विश्वस्तरीय है और अमेरिका के आईसीएफ, यूनाईटेड स्टेट एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट, ब्रिटेन के अंतरराष्ट्रीय विकास विभाग, बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, यूनिसेफ, यूएनएफपीए तथा भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय जैसे वैश्विक भागीदारों के साथ काम करता है।
एनएफएचएस- 5 की 2019-2021 की रिपोर्ट में अन्य आंकड़े भी हैं जो हमें बताते हैं कि भारत वास्तव में अच्छा नहीं कर रहा है। उदाहरण के लिए एनीमिया बढ़ गया है। एनएचएफएस- 5 के दौरान छह महीने से पांच वर्ष की आयु के 67 फीसदी बच्चों में एनीमिया (हीमोग्लोबिन का स्तर 11.0 ग्राम प्रति डेसीलीटर से नीचे) था जो एनएफएचएस- 4 (2015-16) के 59 फीसदी के अनुमान से अधिकहै। एनीमिया के कारण बच्चों का विकास धीमी गति से होता है और न्यूरो डेवलपमेंट को प्रभावित करता है।
एनएचएफएस- 5 ने बताया कि पांच वर्ष से कम आयु के 36 प्रतिशत बच्चे अविकसित हैं। मतलब यह कि उनकी उम्र के हिसाब से विकास बहुत कम है जो एनएफएचएस- 4 में देखे गए क्रोनिक कुपोषण के मामले में मामूली बदलाव बताता है जो केवल 38 फीसदी है। इसी तरह पांच साल से कम उम्र के 19 प्रतिशत बच्चे कमजोर हैं अर्थात उनकी ऊंचाई के हिसाब से बहुत पतले हैं जो एनएचएफएस- 4 में देखे गए 21 फीसदी से थोड़ा ही कम है। यह घातक कुपोषण का संकेत है। 32 फीसदी बच्चे कम वजन के हैं जो एनएफएचएस-4 के दौरान 36 फीसदी से कम हैं।
ये आंकड़े एक तरह से उस सरकार के सामने की चुनौतियों की ओर इशारा करते हैं जो सफलता का दावा करने और उन सभी लड़ाइयों, योजनाओं एवं मिशनों में जीत की बात करने की जल्दी में है जिन्हें वह उजागर करना चाहती है। जो बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं उनकी सच्ची कहानी थोड़ी अलग है। यथार्थ को स्वीकार करने, नीति को दुरुस्त करने और वांछित लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए खर्च को प्राथमिकता देने में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन खोखले दावे जल्द ही खोखले साबित होंगे। वे देर-सबेर सरकार की छवि खराब करेंगे। सरकार एक ऐसे भारत की कहानी नहीं बना सकती जो एक वैश्विक, विशाल और मजबूत अर्थव्यवस्था है जिसमें एनीमिक, दुबले, अविकसित और कुपोषित बच्चे हैं।
भारत खुले में शौच से मुक्त होने की घोषणाओं के साथ स्वच्छ नहीं हो सकता है। इसके बजाय सरकार पूरी सफलता के लिए कोशिश करने का दावा कर सकती है। अगर प्रयासों में अधिक समय लगता है तो भी यह एक अच्छी यात्रा होगी। यह याद रखना अच्छा होगा कि इराक युद्ध के बाद अमेरिकी नौसेना के सुसज्ज विमानवाहक पोत पर 'मिशन पूर्ण' की घोषणा करने की राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की हड़बड़ी संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए आपदा के अलावा कुछ नहीं लाई। हमें वहां जाने की जरूरत नहीं है। आईआईपीएस द्वारा दी गई ऐसी रिपोर्ट्स हमें ईमानदार बनाए रखेंगी। इसलिए विकास के एजेंडे के साथ आगे बढ़ते समय आईआईपीएस के निदेशक को निलंबित करना अच्छा नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सिंडिकेट : दी बिलियन प्रेस)