देश के लिए शर्मिंदगी और अफसोस मुमकिन हुए

भाजपा अब भी जेडीएस के साथ गठबंधन में है, मानो प्रज्ज्वल रेवन्ना पर लगे आरोपों का जेडीएस या भाजपा से कोई लेना-देना नहीं है;

Update: 2024-05-02 02:22 GMT

- सर्वमित्रा सुरजन

भाजपा अब भी जेडीएस के साथ गठबंधन में है, मानो प्रज्ज्वल रेवन्ना पर लगे आरोपों का जेडीएस या भाजपा से कोई लेना-देना नहीं है। जेडीएस ने प्रज्ज्वल को निलंबित करने की औपचारिकता निभा ली है। लेकिन यह काम पिछले साल ही क्यों नहीं किया गया, जब आरोप पहली बार लगे थे। प्रज्ज्वल के खिलाफ कर्नाटक सरकार ने राज्य महिला आयोग की शिकायत के बाद विशेष जांच समिति गठित कर ली, लेकिन इससे पहले की जांच शुरु हो, 26 अप्रैल को हुए मतदान के अगले ही दिन सुबह प्रज्ज्वल रेवन्ना जर्मनी भाग गया।

दस साल पहले जब नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद पर बैठने के लिए देश के लोगों से कई वादे किए थे। वो सारे वादे, जुमले साबित हो गए, एक भी पूरा नहीं हुआ। चलिए, कोई बात नहीं। अपनी बात पर खरा न उतरने के लिए वो देश के लोगों से माफी नहीं मांगेगे, यह भी स्वीकार्य है। लेकिन क्या वे इस बात के लिए कभी माफी मांगेंगे कि उनके पद पर रहते हुए इस देश में महिलाओं के साथ ऐसे भयावह कृत्य हुए, जिन्हें सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। या महिलाओं का सम्मान भी श्री मोदी के लिए राजनैतिक मुद्दे और नारे से अधिक की कीमत नहीं रखता है।

मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र करवाकर जातीय उन्माद में डूबी भीड़ ने उनका जुलूस निकाला था और इस शर्मनाक घटना की चर्चा पूरी दुनिया में हुई थी। अब इसमें सीबीआई ने एक और भयानक खुलासा किया है कि पीड़ित महिलाओं ने पुलिस से सहायता मांगी थी। पुलिस की गाड़ी तक वे महिलाएं पहुंच गई थीं, लेकिन गाड़ी में बैठे पुलिसकर्मी ने कह दिया कि उसके पास गाड़ी की चाबी नहीं है और फिर उन्हें भीड़ के हवाले कर दिया। अगर यह किस्सा-कहानी होता तो भी उसे पूरा पढ़ने में डर लगता। लेकिन मणिपुर में जो कुछ हुआ, वो वास्तविक घटना है और फिर भी प्रधानमंत्री इसके लिए शर्मिंदगी महसूस नहीं करते, तो फिर उनकी संवेदनशीलता और नारी शक्ति के लिए अंतिम सांस तक काम करने के दावे पर सवाल उठने लाजिमी हैं।

यहां फिलहाल प्रधानमंत्री से ही सवाल इसलिए किया जा रहा है क्योंकि मणिपुर में पिछले साल शुरु हुए जातीय दंगों के बाद वे आज तक मणिपुर नहीं गए। शायद इसलिए कि इसके बाद उन्हें और मणिपुर की भाजपा सरकार को कुछ कठिन सवालों का सामना करना पड़ता। मगर संदेशखाली प्रधानमंत्री मोदी गए, क्योंकि प.बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी की सरकार है और यहां श्री मोदी को पीड़ित महिलाओं के बहाने टीएमसी पर हमला बोलने और अपनी राजनीति गर्माने का मौका मिल गया।

मणिपुर और संदेशखाली से पहले बिल्किस बानो प्रकरण भी हुआ था, प्रधानमंत्री ने उस पर भी कुछ नहीं कहा, हाथरस, उन्नाव और कठुआ मामलों पर भी उनका रवैया न कुछ सुनना है, न देखना है, न बोलना है, वाला रहा। महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोपी भाजपा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह को हटाने की हिम्मत भी श्री मोदी ने नहीं दिखाई। अब कर्नाटक से फिर एक डरावना मामला सामने आ गया है। यहां की हासन लोकसभा सीट से जेडीएस सांसद और एनडीए के मौजूदा उम्मीदवार प्रज्ज्वल रेवन्ना पर एक-दो नहीं, हजारों महिलाओं के यौन शोषण और उनका वीडियो जारी करने का गंभीर आरोप लगा है। कम से कम 29 सौ वीडियो सामने आ चुके हैं, जिनमें महिलाओं के साथ जबरदस्ती की जा रही है और ये महिलाएं कमजोर तबके की हैं या जेडीएस की कार्यकर्ता हैं। प्रज्ज्वल के ये वीडियो पिछले साल से ही सामने आने शुरु हो गए थे, लेकिन तब उसने इन्हें झूठा बताते हुए प्रेस और टीवी में इसकी जानकारी देने से रोका था। इस मामले को उजागर करने में भाजपा नेता देवराज गौड़ा की बड़ी भूमिका रही है। प्रज्ज्वल पर लगे गंभीर आरोपों के बावजूद भाजपा और जेडीएस गठबंधन ने उसे उम्मीदवार बनाया, शायद इसकी वजह यह है कि प्रज्ज्वल पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा का पोता, पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी का भतीजा और विधायक एच डी रेवन्ना का बेटा है।

कर्नाटक की राजनीति में रसूख रखने वाले इस परिवार के साथ प्रधानमंत्री मोदी की कई तस्वीरें हैं। 26 अप्रैल को हासन में दूसरे चरण में मतदान हुआ और इसके पहले प्रज्ज्वल के प्रचार के लिए पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों से अपील की थी कि प्रज्ज्वल को दिया हुआ हरेक वोट उन्हें मजबूती देगा।

सवाल ये है कि जब प्रज्ज्वल पर यौन शोषण के आरोप पहले से लग रहे थे, तो प्रधानमंत्री मोदी उसका प्रचार करने क्यों पहुंचे। क्या उन्हें इस बारे में पता नहीं था। अगर ऐसा है तो क्या उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दे देना चाहिए, क्योंकि उनकी अनभिज्ञता कमजोरी की निशानी है। क्या देश को कमजोर प्रधानमंत्री के हवाले किया जाना चाहिए। और अगर प्रधानमंत्री को प्रज्ज्वल पर लगे आरोपों की जानकारी थी, तब भी उन्हें प्रधानमंत्री पद पर बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है, क्योंकि एक यौन शोषण के आरोपी के लिए उन्होंने वोट मांगे। जबकि उनकी पहली जिम्मेदारी देश के लोगों की सुरक्षा और उनके आत्मसम्मान को बनाए और बचाए रखने की है।
हैरानी की बात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने पद से इस्तीफा देना तो दूर, इस मसले पर कुछ बोल ही नहीं रहे हैं। एक बार भी उन्होंने इस बात के लिए अफसोस नहीं जताया कि उनकी तस्वीर एक बलात्कार के आरोपी के साथ है, जिसके साथ उन्होंने मंच साझा किया। भाजपा अब भी जेडीएस के साथ गठबंधन में है, मानो प्रज्ज्वल रेवन्ना पर लगे आरोपों का जेडीएस या भाजपा से कोई लेना-देना नहीं है।

जेडीएस ने प्रज्ज्वल को निलंबित करने की औपचारिकता निभा ली है। लेकिन यह काम पिछले साल ही क्यों नहीं किया गया, जब आरोप पहली बार लगे थे। प्रज्ज्वल के खिलाफ कर्नाटक सरकार ने राज्य महिला आयोग की शिकायत के बाद विशेष जांच समिति गठित कर ली, लेकिन इससे पहले की जांच शुरु हो, 26 अप्रैल को हुए मतदान के अगले ही दिन सुबह प्रज्ज्वल रेवन्ना जर्मनी भाग गया। हालांकि उसके परिवार का कहना है कि उसका दौरा पहले से तय था। मान लिया दौरे का कार्यक्रम पहले से बना हुआ था, लेकिन जब हजारों महिलाओं के यौन शोषण का आरोप लगा है, और जांच शुरु हो गई है, तो एक जिम्मेदार नागरिक और सांसद होने के नाते प्रज्ज्वल को दौरा रद्द करके देश वापस नहीं आ जाना चाहिए था। अगर हजारों महिलाओं की शिकायतें झूठी हैं, सारे वीडियो गलत हैं, तो फिर जांच-पड़ताल से दूरी क्यों बनाई जा रही है।

इस मामले में भाजपा का रवैया भी बेहद शर्मनाक है। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा ने अब तक कुछ नहीं कहा, महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी भी खामोश हैं और गृहमंत्री अमित शाह कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि यह राज्य की कानून-व्यवस्था का मामला है। क्या श्री शाह यह नहीं जानते कि देश भर के विमानतल किसके अधीन आते हैं और वहां से किसी आरोपी या किसी अपराधी को भागने से रोकने की जिम्मेदारी किसकी है। विजय माल्या, नीरव मोदी, ललित मोदी, मेहुल चौकसी ये सारे लोग तो देश के लोगों का पैसा लूटकर भाजपा सरकार में भागने में कामयाब हो गए, अब मोदीजी ने इस बात को भी मुमकिन कर दिखाया है कि देश में सबसे भयानक और सबसे बड़े कहे जा रहे सेक्स स्कैंडल का आरोपी भी आराम से भाग गया।

कांग्रेस की यूपीए सरकार के वक्त जब निर्भया कांड हुआ था, उस पर भी कई सवाल उठे थे। लेकिन तब न देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह या दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने सवालों और आलोचनाओं से बचने की कोशिश की। लोगों की नाराजगी को उन लोगों ने सुना और साथ ही निर्भया के इलाज से लेकर उसके दोषियों को सजा दिलवाने और उसके परिजनों की मदद तक सारी जिम्मेदारी निभाई।

नरेन्द्र मोदी हमेशा दावा करते हैं कि पिछली सरकारों ने कुछ नहीं किया और देश में सारे काम उन्होंने ही किए हैं। किस सरकार ने क्या किया और क्या नहीं, इसका लेखा-जोखा तो जनता की स्मृति में दर्ज है ही, और जनता उसका हिसाब वक्त आने पर कर लेगी। लेकिन पिछली सरकार और पिछले प्रधानमंत्री में जो नैतिक बल था, नरेन्द्र मोदी अपने कथित 56 इंची सीने से कभी उस बल का प्रदर्शन नहीं कर पाए। यहां मोदी है तो मुमकिन है, नहीं कह पाए। देश इसके लिए हमेशा अफसोस करेगा, हमेशा शर्मिंदा रहेगा।

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