वक्फ़ बोर्ड : मुस्लिमों की सुने सरकार!
भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र सरकार द्वारा वक्फ़ संशोधन कानून के जरिये जैसे बदलाव प्रस्तावित हैं;
भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र सरकार द्वारा वक्फ़ संशोधन कानून के जरिये जैसे बदलाव प्रस्तावित हैं, उनके खिलाफ़ देश भर के मुस्लिमों में नाराज़गी है। इसकी बानगी सोमवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर दिखी। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक बड़ा प्रदर्शन कर सरकार को चेतावनी दी है कि यदि वक्फ़ कानून संशोधन विधेयक (2024) वापस नहीं लिया गया तो इसके खिलाफ देशव्यापी आंदोलन होगा। बोर्ड के अतिरिक्त जमाते इस्लामी व जमीयत उलेमा-ए-हिन्द जैसे कई और संगठन शामिल हुए जो कि देश के अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। पहले से ही सरकार इस बात से वाकिफ़ है कि मुस्लिम संगठनों की इससे नाराज़गी है। बेहतर होगा कि सरकार इस कानून को लाने का विचार ही त्याग दे। वैसे भी जब संशोधन कानून लाया गया तभी संसद के अलावा देश भर के मुस्लिमों तथा उन तमाम नाराज़ हैं जो नागरिकों की धार्मिक आज़ादी के पक्षधर हैं।
हालांकि इस प्रदर्शन को लेकर केन्द्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरण रिजिजू ने अपनी सरकार के चिर-परिचित अंदाज में कांग्रेस तथा विपक्ष पर दोष मढ़ दिया और कहा कि वह इस कानून को लेकर देश भर में झूठ फैला रही है। उन्होंने यह भी कहा कि यह कानून मुस्लिमों के हित में है। एक तरह से देश भर के वक्फ़ों से उनकी ज़मीनें छीन लेने की साफ मंशा सरकार की दिखाई देती है। अब तक मस्जिदों को संचालित करने एवं उनका प्रबंधन करने वाले बोर्ड के काम-काज में संशोधित कानून के जरिये सरकार की न केवल दखलंदाजी बढ़ेगी बल्कि सभी स्थानों पर देश के प्रमुख दो सम्प्रदायों- हिन्दुओं व मुस्लिमों के बीच दूरी भी बढ़ेगी। बोर्ड पर सरकार या स्थानीय प्रशासन का नियंत्रण होने से मस्जिदों का रखरखाव भी कठिन हो जायेगा।
याद हो कि 2024 में सरकार संसद में वक्फ़ संशोधन अधिनियम लेकर आई थी जिसका दोनों सदनों में तीव्र विरोध हुआ था। विपक्ष की मांग के आगे झुकते हुए इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा गया था लेकिन उसमें सत्तारुढ़ भाजपा का बहुमत होने के कारण इसमें वे सारे संशोधन शामिल करने की सिफारिशें की गयीं जो कि सरकार या यूं कहें कि भाजपा चाहती है। लोगों में एक आम धारणा यह फैलाई गई है कि वक्फ़ के पास अकूत ज़मीनें हैं जिनके बल पर मुस्लिमों की राजनीति होती है। सच तो यह है कि वक्फ़ की जमीनों एवं अन्य परिसम्पत्तियों से ही मस्जिदों का खर्च निकलता है। आम धारणा यह भी है, जो कि सुनियोजित तरीके से फैलायी गयी है कि मस्जिदों में देश विरोधी तथा हिन्दू विरोधी कार्यक्रम चलाये जाते हैं। दरअसल यह भी भाजपा द्वारा ध्रुवीकरण का एक टूल है जो उसे हिन्दुओं के वोट दिलाने में मददगार साबित होता है। नये कानून के जरिये एक तरह से पूरा नियंत्रण सरकार के हाथों में चले जाने से मुस्लिमों को उनके धार्मिक कार्यक्रमों को सम्पन्न करने में न केवल कठिनाई आयेगी वरन दैनंदिन के कामों के लिये भी जिला प्रशासन पर निर्भर होना पड़ेगा।
यह एक तरह से एक समुदाय की धार्मिक आज़ादी में हस्तक्षेप होगा। इन कारणों से यदि मुस्लिम समुदाय प्रस्तावित कानून से नाराज़ है तो वह स्वाभाविक ही है। जंतर-मंतर पर प्रदर्शन उसी नाराज़गी के कारण होने वाला प्रदर्शन कहा जा सकता है जिसमें शामिल होने के लिये आयोजकों ने न केवल जेपीसी के सदस्यों को आमंत्रित किया बल्कि भाजपा के नेतृत्व में बने नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस के सदस्यों से भी ऐसा ही आग्रह किया है।
इस कानून के विरोध पर रिजिजू का कहना वैसा ही है जैसा कृषि कानून पर सरकार तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित विभिन्न मंत्री कहते आये थे, कि यह कानून किसानों के हित में है। यह समझ से परे है कि भाजपा सरकार जो भी कानून लाती है वह किसी न किसी के हित में होने का दावा करती है, लेकिन सिर्फ उन्हें पता नहीं होता जिसका हित सरकार करना चाहती है। नोटबन्दी जनता के हित में थी पर जनता की समझ में नहीं आई, जीएसटी व्यवसायियों के हित में थी पर व्यवसायियों की समझ में नहीं आई और उन्होंने विरोध किया, कृषि कानून किसानों के हित में था पर किसानों की समझ में नहीं आया और उन्होंने विरोध किया, संविधान की अनुच्छेद 370 का विलोपन जम्मू-कश्मीर के हित में था परन्तु वह वहां के नागरिकों की समझ में नहीं आया और उन्होंने विरोध किया, तीन तलाक की समाप्ति मुस्लिमों के हित में थी पर उन्हें समझ में नहीं आई और उन्होंने विरोध किया तथा इलेक्टोरल बॉन्ड्स कानून मतदाताओं के हित में था पर मतदाताओं की समझ में नहीं आया और उन्होंने विरोध किया। सरकार का कोई भी कानून किसी की समझ में न आने तथा उनका विरोध होने का कारण यह है कि सरकार न तो इस पर सम्बन्धित पक्षों से बात करती है और न ही संसद में इस पर चर्चा करती है। विशेषज्ञों की तो दूर, सम्बन्धित मंत्रियों से तक विचार-विमर्श किये बिना कानून लागू हो जाते हैं। उपरोक्त सभी कानून ऐसे ही आये।
असली बात यह है कि भाजपा सरकार के सारे काम सिर्फ और सिर्फ एक ही उद्देश्य के इर्द-गिर्द घूमते हैं- वह है हिन्दू वोटों का धु्रवीकरण। प्रस्तावित वक्फ़ संशोधन कानून का मकसद भी यही लगता है। एक बार यह कानून लागू हो जाने के बाद साफ है कि देश के हर छोटे-बड़े शहर-कस्बे में वक्फ़ की जमीनों पर कब्जे के लिये संघर्ष की जमीन तैयार हो जायेगी। वक्फ़ की जमीनों पर सत्ता से जुड़े लोगों की नज़रें पहले से हैं। इसलिये संशोधन कानून का विरोध लाजिमी है।