विपक्ष को जीतने से रोकने की कोशिश

बिहार में मतदान के बाद लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की सांसद शांभवी चौधरी ने जब बाहर मीडिया के सामने अपने परिवार के साथ तस्वीरें खिंचवाई तो पहले अपने दाएं हाथ की तर्जनी उन्होंने दिखाई, फिर अपने पिता और जेडीयू के मंत्री अशोक चौधरी के टोकने पर बाएं हाथ की तर्जनी दिखाई, और इन तस्वीरों और वीडियो में शांभवी चौधरी के दोनों हाथों की तर्जनी उंगलियों पर स्याही के निशान साफ दिख रहे हैं;

By :  Deshbandhu
Update: 2025-11-16 22:40 GMT

बिहार में मतदान के बाद लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की सांसद शांभवी चौधरी ने जब बाहर मीडिया के सामने अपने परिवार के साथ तस्वीरें खिंचवाई तो पहले अपने दाएं हाथ की तर्जनी उन्होंने दिखाई, फिर अपने पिता और जेडीयू के मंत्री अशोक चौधरी के टोकने पर बाएं हाथ की तर्जनी दिखाई, और इन तस्वीरों और वीडियो में शांभवी चौधरी के दोनों हाथों की तर्जनी उंगलियों पर स्याही के निशान साफ दिख रहे हैं। यह वीडियो वायरल हुआ तो कांग्रेस और राजद जैसे विपक्षी दलों ने उन पर दो बार वोट डालने का गंभीर आरोप लगाया। लेकिन पटना जिला प्रशासन का कहना है कि यह जानबूझकर नहीं किया गया था, बल्कि मतदान अधिकारियों की मानवीय भूल के कारण हुआ। शांभवी चौधरी के अनुसार, मतदान के बाद एक चुनावकर्मी ने गलती से उनके दाहिने हाथ पर स्याही लगा दी। जब पीठासीन अधिकारी ने यह देखा, तो उन्होंने गलती को सुधारते हुए नियमों के अनुसार उनके बाएं हाथ की उंगली पर भी स्याही लगाई।

मोदी शासन के दौर में शांभवी चौधरी वंशवादी राजनीति का एक और उदाहरण हैं। जिस तरह से उन्होंने अपनी दोनों उंगलियों पर वोट देने की स्याही लगवाई वह उनकी राजनैतिक अपरिपच्ता को दिखाता है। क्योंकि सांसद होने के नाते उन्हें तो पता ही होना चाहिए था कि स्याही लगवाने के लिए कौन सा हाथ आगे करना है। वहीं मतदान अधिकारी से भी यह लापरवाही अपेक्षित नहीं थी। हो सकता है वाकई शांभवी चौधरी ने एक बार वोट डाला हो, लेकिन ये भी हो सकता है कि जिसे मानवीय भूल बताया जा रहा है, वह असल में दो बार वोट डालने की निशानी है।

बहरहाल, इस प्रकरण को अब यही खत्म कर दिया गया है। लेकिन कल्पना कीजिए कि ऐसी ही कोई भूल राहुल गांधी से हुई होती तो मीडिया में अब तक उनकी कितनी ट्रोलिंग हो चुकी होती। खुद नरेन्द्र मोदी, अमित शाह और भाजपा के तमाम नेता उनकी लानत-मलामत करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। इस समय बिहार चुनाव में महागठबंधन की हार को लेकर भी राहुल गांधी पर सारा ठीकरा फोड़ा जा रहा है। यह सही है कि राहुल गांधी ने बिहार का बार-बार दौरा किया, वहां वोटर अधिकार यात्रा निकाली, संविधान सम्मान सम्मेलन किए, अलग-अलग तबकों से चर्चाएं कीं, लेकिन बिहार का चुनाव न अकेले कांग्रेस लड़ रही थी, न राहुल गांधी चुनावों का चेहरा था। वो तो मीडिया को मोदी के मुकाबले विपक्ष से एक चेहरा खड़ा करना होता है तो राहुल गांधी ही उसके लिए नजर आते हैं। बाकी अब तो मीडिया को भी सोचना चाहिए कि जिस तरीके से बिहार में एकतरफा चुनाव हुए हैं, उसके बाद मोदी बनाम कोई नहीं का नैरेटिव ही वह चलाए तो बेहतर है। आखिर देश में अभी यही तो हो रहा है।

बिहार चुनाव के लिए महागठबंधन के कमजोर प्रदर्शन और राहुल गांधी को नाकारा साबित करने के लिए अब दलीलें पेश हो रही हैं कि राहुल बीच में विदेश चले जाते हैं, कि राहुल पार्टटाइम राजनीति करते हैं, कि राहुल में परिपच्ता नहीं है। इस बार तो उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने राहुल गांधी का अपमान करने के लिए गांधीजी के तीन बंदरों से तुलना करते हुए टप्पू, पप्पू और अप्पू जैसी निकृष्ट बात कही थी। हिमंता बिस्वासरमा ने राहुल गांधी को अपशकुन करने वाला बताया था। निजी स्तर के ऐसे हमले राहुल गांधी पर हमेशा से होते आए हैं, लेकिन फिर भी वे लोकतंत्र बचाने और संविधान संरक्षण के अपने लक्ष्य से विचलित नहीं होते यही भाजपा की सबसे बड़ी परेशानी है। इसलिए इस हार के बाद राहुल गांधी पर इल्जाम लगाने का एक कारण वोट चोरी का मुद्दा भी बताया जा रहा है। दलील है कि राहुल गांधी ने भाजपा और मोदी पर वोट चोरी के इल्जाम लगाए, इसका उल्टा असर जनता पर हुआ।

जबकि नजर ये आ रहा है कि बिहार के चुनाव ने संविधान में दी चुनावी प्रणाली की धज्जियाँ उड़ा दी हैं। कई प्रकरण सामने आए हैं, जिनमें भाजपा के नेताओं, पदाधिकारियों ने एक से ज़्यादा वोट डाले हैं। एक व्यक्ति एक वोट के सिद्धांत पर चुनाव नहीं हुआ तो फिर भाजपा की जीत पहले ही तय थी। चुनाव आयोग ने एसआईआर में कम से कम 62 लाख वोट काटे और फिर 20 लाख वोट जोड़े गए, जिनमें से 5 लाख वोट तो बिना एसआईआर फॉर्म भरे ही जुड़ गए। 6 अक्टूबर को चुनाव का ऐलान करते हुए ज्ञानेश कुमार ने बिहार में मतदाताओं की संख्या 7.42 करोड़ बताई थी, जो वोटिंग के बाद 11 नवंबर को बढ़कर 7.45 करोड़ कैसे हो गई। इस 3 लाख वोटर के बारे में कांग्रेस ने सवाल किए तो जवाब मिला कि 3 लाख की बढ़ोतरी इसलिए हुई क्योंकि चुनाव नियमों के अनुसार, योग्य नागरिक चुनाव की घोषणा के बाद भी, मतदान के प्रत्येक चरण में नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि से 10 दिन पहले तक मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए आवेदन कर सकते हैं।

लेकिन ऐसा नियम है तो फिर मतदाताओं की संख्या बताने के वक्त ही यह क्यों नहीं बताया गया कि इसमें अभी और नाम जुड़ सकते हैं। चुनाव आयोग ने भाजपा के लिए कैसा पक्षपात किया इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो महिलाओं के खाते में बीच चुनाव में 10-10 हजार की राशि का आना है। यह सरेआम रिश्वत है और विपक्ष ने इस पर पहले ही आपत्ति जताई थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब कहा जा रहा है कि ये 10 हजार रुपए ही जीत की चाबी बन गए। इसके अलावा बिहार के लोगों के लिए स्पेशल ट्रेन चलवाकर वोट के लिए भेजना, कई जगहों पर स्ट्रांग रुम का सीसीटीवी बंद होना, सुरक्षा के लिए भाजपा शासित राज्यों से ही बल को भेजना ऐसे कई फैसले लिए गए, जिन पर आम तौर पर ध्यान नहीं जाता, लेकिन इनसे धांधली करने में आसानी हो जाती है।

राहुल गांधी इसी तरफ अब लोगों का ध्यान ले जा रहे हैं, इसलिए भाजपा की निगाह में खटक रहे हैं। राहुल गांधी ने वोट चोरी के केवल आरोप नहीं लगाए बल्कि सबूतों के साथ देश के सामने सारा कच्चा चिट्ठा खोल कर रख दिया। डुप्लीकेट वोटर, फ़ज़ीर् पते, नक़ली तस्वीरें, एक घर में 500 वोटर जैसे फ़ज़ीर्वाड़े राहुल गांधी ने देश को दिखाए। राहुल गांधी साफ कह चुके हैं और उनके बाद विपक्ष के दूसरे नेताओं ने भी कहा कि जब हम सत्ता में आएंगे तो ऐसी धांधली करने वालों को बख्शेंगे नहीं। इसलिए अब कोशिश यही है कि विपक्ष को कभी जीत ही नहीं मिले।

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