ट्रंप ने तय कर लिया फिलिस्तीन का भविष्य
बीते दो साल से फिलीस्तीन में चल रहे नरसंहार के खत्म होने के दिन करीब आते दिख रहे हैं;
बीते दो साल से फिलीस्तीन में चल रहे नरसंहार के खत्म होने के दिन करीब आते दिख रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की बैठक के बाद गज़ा का शांति प्रस्ताव तैयार हो गया है। ट्रंप ने गज़ा के भविष्य की पूरी रूपरेखा तैयार कर ली है। एक योजना बनाई गई है, जिसके तहत हमास को 72 घंटे के अंदर 20 जीवित इज़रायली बंधकों को रिहा करना है और उन क़रीब 20 बंधकों के शवों को वापस करना है, जिनके बारे में माना जाता है कि उनकी मौत हो चुकी है। योजना के मुताबिक हमास अपने हथियार त्याग देगा, इसके साथ ही उसकी सुरंगें और हथियार बनाने के ठिकाने नष्ट कर दिए जाएंगे। हर इजरायली बंधक के शव की रिहाई पर इजरायल 15 ग़ज़ावासियों के शव लौटाएगा। योजना में यह भी कहा गया है कि जैसे ही दोनों पक्ष इस प्रस्ताव पर सहमत होंगे, ग़ज़ा पट्टी में तुरंत पूरी सहायता भेजी जाएगी। ट्रंप ने कहा कि अगर हमास इस योजना को स्वीकार नहीं करता है तो अमेरिका नेतन्याहू के साथ खड़ा होगा। वहीं नेतन्याहू ने कहा है कि अगर हमास इस योजना ठुकराता है या इसका पालन नहीं करता है तो इज़रायल अपने काम को अंजाम तक लेकर जाएगा। नेतन्याहू की इस धमकी का अर्थ यह है कि हमास को खत्म करने के नाम पर गज़ा पर कब्जे की जो योजना नेतन्याहू की बनी हुई है, वो हर हाल में पूरी होगी।
दो सालों से तबाह गज़ा में अब और ज्यादा धमाके नहीं होंगे, जो बची-खुची जिंदगियां शेष हैं, वो शायद आगे भी बरकरार रहेंगी, इस बात को राहत की तरह देखा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्रंप की इस घोषणा का स्वागत किया है, ब्रिटेन, फ्रांस व यूरोपीय यूनियन के देश इस शांति प्रस्ताव से सहमत हैं। सऊदी अरब, कतर, संयुक्त अरब अमीरात, जॉर्डन, तुर्किए, पाकिस्तान, इंडोनेशिया आदि मुस्लिम देश भी गज़ा के लिए बनी योजना पर सहमत हैं और फिलीस्तीन के अधिकारी भी इसे सकारात्मकता के साथ देख रहे हैं। फिलीस्तीन के पास अब और कोई रास्ता तो बचा ही नहीं है। बीते दो सालों में एक बसे-बसाए देश को पूरी तरह तबाह कर अब पश्चिमी ताकतों ने उसे फिर से बसाने की योजना बना दी है। पूंजीवाद की यही कार्यशैली है। पहले किसी चीज में खोट निकालो, उसे खत्म करो और फिर अपनी मर्जी का ऐसा ढांचा वहां खड़ा करो, जिससे अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जा सके। लालच का यह तंत्र इतना निष्ठुर है कि उसे बंजर जमीन, हरे-भरे जंगल, मूक जानवर, हाड़-मांस के इंसान किसी में कोई फर्क नहीं दिखता। उसका बुलडोजर सब पर एक तरह से चलता है। गज़ा अब पूंजीवाद के बुलडोजर से पूरी तरह समतल होने जा रहा है। इसलिए अब इन सवालों के जवाब शायद ही मिलें कि बंधकों की रिहाई, शवों की वापसी हो जाएगी, आगे और हमले भी नहीं होंगे। लेकिन हमास को खत्म करने के नाम पर जिन मासूमों की जान ली गई है, उन्हें क्या कभी इंसाफ नहीं मिलेगा।
अभी पिछले हफ्ते तक संरा महासभा में फिलीस्तीन के समर्थन में आवाज़ें उठ रही थीं, उसे मान्यता देने वाले देशों की संख्या बढ़ रही थी, और बेंजामिन नेतन्याहू के भाषण में जिस तरह कई देशों के राजदूत उठकर चले गए, उसमें यह खुशफहमी बनी कि वैश्विक व्यवस्था में अघोषित बदलाव हो रहा है, कि संयुक्त राष्ट्र संघ की महत्ता पुन: स्थापित हो रही है। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप संयुक्त राष्ट्र संघ की जगह लेते जा रहे हैं या ले चुके हैं। ट्रंप खुद दावा करते रहते हैं कि कितने देशों के बीच युद्ध उन्होंने रुकवाए हैं, यहां तक कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार का दावेदार बताया जाने लगा है। अब गज़ा में तथाकथित शांति बहाली के बाद यह दावेदारी और बढ़ जाएगी। फिर यह सवाल नहीं होंगे कि शांति प्रस्ताव के बाद अब जो फिलीस्तीन खड़ा किया जाएगा, उसकी डोर असल में किसके हाथ में रहेगी। यह तो घोषित तथ्य है कि इजरायल को शुरु से अमेरिका का पूरा समर्थन रहा है। बीते कुछ दिनों में ट्रंप ने चाहे नेतन्याहू को हमले रोकने या और ज्यादा हिंसा बर्दाश्त न करने की बात कही है, लेकिन यह केवल दिखावटी बातें थीं। इज़रायल अमेरिका की छत्रछाया में ही फला-फूला है और अब फिलीस्तीन को भी अमेरिका की कठपुतली सरकार मिलेगी, यह तय है।
गौरतलब है कि अमेरिका ने ग़ज़ा की भावी शासन व्यवस्था की जो रूपरेखा रखी है, उसमें एक गैर-राजनीतिक फ़िलीस्तीनी कमेटी ग़ज़ा पर अस्थायी रूप से शासन करेगी, इसकी देखरेख एक नयी अंतरराष्ट्रीय ट्रांज़िशन बॉडी 'बोर्ड ऑफ़ पीस' करेगी। कहा जा रहा है कि इसका नेतृत्व ट्रंप ख़ुद करेंगे, लेकिन इसमें ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की भी अहम भूमिका रहेगी, ऐसी खबरें हैं। इस योजना में फिलीस्तीनी शासन में हमास की कोई भूमिका नहीं रहेगी। अमेरिका की 'आर्थिक विकास योजना' के तहत ग़ज़ा का पुनर्निर्माण किया जाएगा। इसमें यह भी कहा गया है कि 'इज़रायल ग़ज़ा पर न तो कब्ज़ा करेगा और न ही उसे अपने देश में मिलाएगा' और उसकी सेनाएं समय के साथ ही चरणबद्ध तरीके से पीछे हटेंगी। इस बार ट्रंप ने अपने पिछले बयानों के उलट कहा है कि फ़िलीस्तीनियों को ग़ज़ा छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा। लोगों को वहीं रहने और बेहतर ग़ज़ा बनाने का अवसर दिया जाएगा। सबसे खास बात यह कि इस योजना में एक फ़िलीस्तीनी राष्ट्र की संभावना के लिए दरवाज़ा भी खुला छोड़ा गया है। यहूदियों को इजरायल में बसाने से पहले से फिलीस्तीनी राष्ट्र बना हुआ था, लेकिन अब उसे अपनी ही जमीन पर वैध पहचान का मोहताज बनाया जा रहा है।
इस पूरी कवायद में टोनी ब्लेयर को जो महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल रही है, वह किसी बड़े खेल का इशारा कर रही है। 2007 में प्रधानमंत्री पद छोड़ने के बाद ब्लेयर को अमेरिका, यूरोपीय संघ, रूस और संयुक्त राष्ट्र यानी क्वार्टेट का मध्य-पूर्व दूत बनाया गया था। याद कीजिए यह वही ब्लेयर हैं जिन्होंने बिना किसी सबूत के इराक पर हमले में अमेरिका का साथ दिया था और सद्दाम हुसैन के खतरे को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया था। विनाशकारी हथियारों के शक में न केवल इराक को तबाह किया गया, बल्कि सद्दाम हुसैन को फांसी पर चढ़ाया गया। ये काम उन लोगों ने किया, जिनके तहखानों में कई विनाशकारी हथियार रखे हुए हैं। नेतन्याहू जैसे युद्ध अपराधियों के हौसले ट्रंप ने और बढ़ा दिए हैं।