राहुल का संघ पर नया हमला

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर बड़ा हमला बोला है;

Update: 2025-01-16 03:19 GMT

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर बड़ा हमला बोला है। इस बार उनके निशाने पर सीधे संघप्रमुख मोहन भागवत आये हैं। दरअसल मंगलवार को भागवत ने एक बयान में वह सब कह दिया जो संघ वर्षों से कहता तो आया है लेकिन जब बात सार्वजनिक रूप से कहने या संवैधानिक मंच से स्वीकारने का अवसर आता है तो संगठन या तो मुकर जाता है या अपनी लाइन बदल देता है। 15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हुआ था और स्वतंत्र भारत का नीति-नियामक ग्रंथ भारतीय संविधान है, यह सभी जानते हैं परन्तु संघ का हमेशा से कुछ अलग ही विचार रहा है।

आजादी की लड़ाई से खुद को दूर रखने वाले संघ ने 26 जनवरी, 1950 को लागू किये गये संविधान को भी यह कहकर स्वीकार नहीं किया था कि 'इसमें कुछ भी भारतीय नहीं है।' जाहिर है कि संघ एवं उसके राजनीतिक विंग पूर्ववर्ती जनसंघ और वर्तमान भारतीय जनता पार्टी की पसंद 'मनुस्मृति' रही है जो कि गैरबराबरी और वर्ण भेद पर आधारित संहिता है। यह कुनबा आजाद भारत के संवैधानिक प्रतीकों के भी खिलाफ रहा है। यही कारण है कि वर्षों तक संघ के नागपुर स्थित संघ मुख्यालय पर तिरंगा नहीं वरन शाखाओं में फहराया जाने वाला भगवा झंडा ही लगाया जाता था।

पिछली लगभग पौन शताब्दी के दौरान विभिन्न मौकों पर संघ के पदाधिकारियों द्वारा या उनके मुखपत्रों में ये विचार तो अभिव्यक्त होते ही रहे लेकिन मंगलवार के जिस बयान को लेकर राहुल आक्रामक हुए हैं, उसमें भागवत ने कहा कि भारत ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण दिवस पर अपनी 'सच्ची आजादीÓ हासिल की। भागवत का आशय राममंदिर की प्राणप्रतिष्ठा से था जो कि अयोध्या में पिछले साल हुआ था। तिथि के अनुसार इसकी सालगिरह 11 जनवरी को मनाई गई थी। भागवत ने यह भी कहा कि '15 अगस्त, 1947 को भारत को अंग्रेजों से राजनीतिक आजादी मिलने के बाद, देश से निकले उस खास नजरिये के दिखाए रास्ते के अनुसार एक लिखित संविधान बनाया गया, लेकिन दस्तावेज़ के अनुसार नहीं चलाया गया।'

भागवत के इस बयान को राहुल ने 'राष्ट्रद्रोह' करार देते हुए कहा कि संघप्रमुख ने स्वतंत्रता की लड़ाई, संविधान और हर भारतीय का अपमान किया है। राहुल गांधी बुधवार की सुबह कांग्रेस के नयी दिल्ली स्थित नवनिर्मित मुख्यालय के उद्घाटन अवसर पर बोल रहे थे। उन्होंने भागवत को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि 'आज जो लोग सत्ता में हैं, वे तिरंगे को सलाम नहीं करते, राष्ट्रीय ध्वज को नहीं मानते, संविधान को नहीं मानते और भारत के बारे में उनका नज़रिया हमसे बिलकुल अलग है।'

भारत को लेकर नज़रिये का फर्क बतलाकर राहुल उन बुनियादी कारणों पर चले जाते हैं जिसके कारण कांग्रेस और संघ-भाजपा के बीच लड़ाई की स्पष्ट रेखा खिंचती है। इनमें से बहुत से ऐसे तथ्य हैं जो पिछले 75 वर्षों में कई बार साफ तौर पर उभरकर सामने तो आ ही चुके हैं, जिनके चलते कांग्रेस के साथ कई अनेक दल एवं संगठन भी संघ-जनसंघ-भाजपा के खिलाफ खड़े होते हैं। ऐसा भी नहीं कि राहुल इस मुद्दे पर पहली बार संघ को घेर रहे हैं पर इस बार सीधे भागवत पर हमला कर उन्होंने दर्शा दिया है कि लगातार तीसरी बार लोकसभा का चुनाव हारने, भाजपा को तीसरी बार सत्ता से दूर रखने में असफल रहने तथा इंडिया गठबन्धन की एकजुटता में आ रहे अवरोधों के बावजूद संघी विचारधारा के खिलाफ कांग्रेस की लड़ाई न धीमी पड़ी है और न ही ठंडी।

अपनी दोनों भारत जोड़ो यात्राओं के दौरान राहुल ने विचारधाराओं का जो संघर्ष छेड़ा था, उसमें कांग्रेस न तो कोई ढील देने जा रही है और न ही वह इससे पीछे हटेगी। उसे यह भी पता है कि वह संघ के विरोध की लड़ाई में बिलकुल अकेली है, वैसे ही जिस प्रकार आजादी की लड़ाई उसने अपने बलबूते पर लड़ी थी। इसलिये अपने भाषण में राहुल ने साफ किया कि, 'इस देश में कोई भी दूसरी पार्टी नहीं जो उन्हें (भाजपा को) रोक सके। उन्हें रोकने वाली एकमात्र पार्टी कांग्रेस है। राहुल का यह कहना उनके संगठन के हौसलों को तो दर्शाता ही है, इसकी तैयारी भी दिखलाता है कि मौका पड़े तो वह अकेली संघ-भाजपा से दो-दो हाथ करेगी। उनके बयान को गठबन्धन के उसके सहयोगियों की ओर संकेत भी माना जाये जो या तो संघ-भाजपा से लड़ने में डरते हैं या जो इंडिया में नेतृत्व परिवर्तन की बातें करने लगे हैं।

राहुल कोई पहली बार संघ परिवार पर हमलावर नहीं हुए हैं, तो भी उन्होंने एक तरह से संविधान को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मोहन भागवत के बीच अंतर्विरोध को भी उजागर कर दिया है। कहां तो 2024 के लोकसभा चुनावों में पूरी भाजपा 400 के पार जाने का मंसूबा पाले हुई थी और कहां अब मोदी संविधान की रक्षा की बात करने लगे हैं, क्योंकि पिछली और वर्तमान लोकसभा में उनकी पार्टी के सांसदों की सदस्य संख्या में 63 की कमी आई है। माना जाता है कि भाजपा को यह नुकसान संविधान बदलने के उसके इरादे उजागर होने के चलते हुआ है। जैसा कि आरोप है, भाजपा ने कम से कम 70 सीटों पर मतदान के आंकड़ों में हेरा-फेरी करके सरकार बचाई है। ऊपर से दो पार्टियों की बैसाखी भी उसे थामनी पड़ी। सम्भवत: भागवत को मोदी की इस मजबूरी का या तो भान नहीं है अथवा उन्हें चिंता नहीं है; अन्यथा वे इस तरह का संविधान विरोधी बयान नहीं देते। राहुल ने इस विसंगति को पकड़ लिया और एक झटके में उन्होंने भागवत पर हमला करते हुए संघ व भाजपा दोनों को बेनकाब कर दिया है। संविधान की रक्षा का कांग्रेस का संकल्प भी उनके बयान में अंतर्निहित है।

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