प्रदूषण पर विरोध और गिरफ्तारी

देश की राजधानी दिल्ली में इंडिया गेट तरह-तरह के प्रदर्शनों का गवाह रहा है, लेकिन ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि सांस लेने के अधिकार को लेकर यहां लोगों ने अपनी आवाज़ बुलंद की;

By :  Deshbandhu
Update: 2025-11-10 21:22 GMT

देश की राजधानी दिल्ली में इंडिया गेट तरह-तरह के प्रदर्शनों का गवाह रहा है, लेकिन ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि सांस लेने के अधिकार को लेकर यहां लोगों ने अपनी आवाज़ बुलंद की। दिल्ली की हवा के बेहद खराब स्तर पर पहुंचने के बीच रविवार को इंडिया गेट पर 'स्मॉग से आज़ादी!' जैसे पोस्टर के साथ विरोध प्रदर्शन किया गया। हालांकि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया। जिसके बाद सोशल मीडिया पर हिटलर के बनाए गैस चेंबर को याद करते हुए लोगों ने लिखा कि इसका विरोध करेंगे तो सजा मिलेगी ही। इस तरह की टिप्पणियां सत्ता के लिए चेतावनी है, जहां लोगों ने लोकतंत्र की बुनियाद पर सरकार बनाई, मगर अहसास तानाशाही का हुआ तो अब नाराजगी दिख रही है।

बता दें कि इंडिया गेट के प्रदर्शन में बड़ी संख्या युवाओं की थी। नयी पीढ़ी के लिए अब जेन ज़ी शब्द का इस्तेमाल होने लगा है। जनरेशन का संक्षिप्तीकरण जेन और ज़ी यानी (अंग्रेजी वर्णमाला का आखिरी अक्षर)। बीते वक्त में बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल इन तीनों पड़ोसी देशों में युवाओं ने ही आंदोलन छेड़ा था, जिससे सत्ता बदलाव का रास्ता तैयार हुआ था। दुनिया के और भी देशों में युवा इसी तरह सड़कों पर निकले और सत्ता को झुकना पड़ा। इन उदाहरणों को सामने रखकर देश में पिछले 11 सालों से सत्तारुढ़ मोदी सरकार को भी चेतावनी मिलती रही कि बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार आदि पर सरकार ने कदम नहीं उठाया तो जेन ज़ी की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। इधर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी भी अब वोट चोरी जैसे मुद्दों पर युवाओं का आह्वान करने लगे हैं कि यही पीढ़ी लोकतंत्र की रक्षा करेगी तो भाजपा को इसमें राष्ट्र-विरोधी भावनाओं की बू आने लगती है। भाजपा आरोप लगाती है कि राहुल गांधी देश में अस्थिरता लाने के लिए युवाओं को आगे कर रहे हैं। लेकिन भाजपा ने शायद यह नहीं सोचा होगा कि राजनैतिक तौर पर जिन्हें वह अहम मुद्दे मानती है, उनसे इतर प्रदूषण को लेकर युवाओं का गुस्सा भड़क जाएगा। क्योंकि प्रदूषण तो शायद मोदी सरकार के लिए कोई मुद्दा ही नहीं है, अन्यथा पिछले 11 सालों से देश यथास्थितिवाद का शिकार न हुआ होता।

गौरतलब है कि दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 370 के स्तर पर पहुंच गया, जो 'बहुत खराब' श्रेणी में आता है। नेशनल कैपिटल रीजन (एनसीआर) में भी हालात ऐसे ही हैं। नोएडा, गुड़गांव, फरीदाबाद, गाजियाबाद सब दमघोंटू हवा में कैद हैं। नवंबर की शुरुआत से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) का स्तर अभूतपूर्व ऊंचाइयों पर पहुंच गया है जो सीधे फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रहा है। ऐसे में हवा साफ करने के सघन उपायों की जगह कभी क्लाउड सीडिंग से नकली बारिश, कहीं कुछ इलाकों पर पानी का छिड़काव जैसे ऊपरी उपाय किए जा रहे हैं, जिनमें जनता के धन की बर्बादी तो है, राहत नाममात्र को भी नहीं है। ऊपर से सरकार को इस बात पर आपत्ति है कि जब धरने-प्रदर्शन के लिए जंतर-मंतर का स्थान ही तय किया गया है, तो इंडिया गेट पर लोग प्रदर्शन के लिए क्यों पहुंचे। ध्यान रहे कि प्रदर्शन शांतिपूर्ण था, केवल नारे और तख्तियों के साथ बच्चे, बूढ़े, जवान एकत्र हुए थे, ताकि सरकार को बताएं कि इस समय सांस लेना उनके लिए कितना दूभर हो गया है। फिर भी दिल्ली पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने दंगा नियंत्रण गियर में पहुंचकर कई प्रदर्शनकारी युवकों को हिरासत में ले लिया। इसे कानून व्यवस्था का मामला बताते हुए पुलिस ने कार्रवाई की। सरकार की नाकामी का इससे बड़ा सबूत क्या होगा कि उसे धरना प्रदर्शन कहां हो रहा है इससे तकलीफ है, इस बात से सरोकार नहीं है कि आखिर लोगों को प्रदूषण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए मजबूर क्यों होना पड़ा।

इंडिया गेट पर एक प्रदर्शनकारी ने कहा, 'यह हेल्थ इमरजेंसी है, न कि दोषारोपण का खेल। ट्रायल-एंड-एरर से हमारा भविष्य बर्बाद हो चुका है। सरकार को अब साफ हवा की नीति तुरंत लागू करनी चाहिए।' एक अन्य ने कहा, 'अमीर लोग एयर प्यूरीफायर खरीद सकते हैं या पहाड़ों पर भाग सकते हैं, लेकिन हम कहां जाएं? हर सर्दी में सांस लेने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। हवा सरकारी नहीं, सबकी है।'

वायु प्रदूषण कितना घातक हो चुका है, यह बात प्रदर्शन में शामिल एक डॉक्टर के बयान से समझी जा सकती है, उन्होंने कहा कि, दिल्ली में हर तीसरा बच्चा फेफड़ों की क्षति का शिकार है, वे साफ हवा वाले बच्चों से लगभग 10 साल कम जीते हैं। लंबे समय तक प्रदूषण से हृदय रोग, स्ट्रोक और अस्थमा होता है। यह गर्भ से शुरू होकर बुढ़ापे तक पीछा करता है।

नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने पुलिस की कार्रवाई और प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी पर कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने एक्स पर लिखा- स्वच्छ हवा का अधिकार एक बुनियादी मानवाधिकार है। शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का अधिकार हमारे संविधान द्वारा सुनिश्चित किया गया है। शांतिपूर्ण ढंग से स्वच्छ हवा की मांग करने वाले नागरिकों के साथ अपराधियों जैसा व्यवहार क्यों किया जा रहा है? वायु प्रदूषण करोड़ों भारतीयों को प्रभावित कर रहा है, हमारे बच्चों और हमारे देश के भविष्य को नुकसान पहुंचा रहा है। लेकिन वोट चोरी के ज़रिए सत्ता में आई सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं है, न ही वह इस संकट को हल करने का प्रयास कर रही है। हमें स्वच्छ हवा की मांग कर रहे नागरिकों पर हमला करने के बजाय, अभी वायु प्रदूषण पर निर्णायक कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

राहुल गांधी की इस बात को राजनैतिक विचारधारा और दलगत राजनीति से ऊपर उठकर समझने की जरूरत है। वायु प्रदूषण किसी पर यह देखकर असर नहीं करता कि किसने भाजपा को वोट दिया, किसने आप को या कांग्रेस को, या कौन राम मंदिर बनने से खुश हुआ या नहीं हुआ। लोगों को यह समझने की जरूरत है कि सांस लेने जैसी नैसर्गिक बल्कि जिंदा होने की पहली शर्त पर ही जब संकट आ जाए और उस पर भी सरकार पीड़ितों पर ही कार्रवाई करे तो यह कितनी गैरजिम्मेदाराना और एक हद तक आपराधिक हरकत है।

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