फिलीस्तीनी राजदूत की प्रियंका गांधी से मुलाकात के मायने
देश देख रहा है कि मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच शुरु हुए हिंसक संघर्ष में किस तरह एक हंसता-बसता राज्य तबाह हो गया है;
- सर्वमित्रा सुरजन
देश देख रहा है कि मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच शुरु हुए हिंसक संघर्ष में किस तरह एक हंसता-बसता राज्य तबाह हो गया है। डेढ़ साल बाद भी वहां शांति की कोई सूरत नहीं बन रही। न ही केंद्र सरकार इसमें कोई जिम्मेदारी पूरी करती दिख रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने तो हाल में ये कह दिया कि पूर्वोत्तर में इस समय अभूतपूर्व शांति है। शायद उन्हें मणिपुर दिख नहीं रहा।
बुधवार को फिलीस्तीन के राजदूत आबेद एलराजेग अबू जाज़ेर ने वायनाड से नवनिर्वाचित सांसद प्रियंका गांधी को उनकी जीत पर बधाई दी। श्रीमती गांधी के आवास पर हुई इस मुलाकात की एक तस्वीर सामने आई है, जिसमें फिलीस्तीनी राजदूत और प्रियंका गांधी एक तस्वीर को थामे हुए हैं, जिसमें फिलीस्तीनी नेता यासिर अराफात और इंदिरा गांधी नजर आ रहे हैं।
देश में इस वक्त उठे सियासी बवाल और कांग्रेस को कमजोर साबित करने की कोशिश के बीच यह एक सुखद और भरोसा जगाने वाली खबर सामने आई है। अमूमन विदेशी राजदूतों की मुलाकात केन्द्रीय मंत्रियों, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या अन्य पदाधिकारियों आदि से होती है, लेकिन ऐसा बहुत कम होता है कि किसी के सांसद निर्वाचित होने पर किसी देश के राजदूत खुद बधाई देने पहुंचे। मगर प्रियंका गांधी को बधाई देने के तार इतिहास, वर्तमान और भविष्य तीनों से जुड़े हैं। फिलीस्तीन इस वक्त इजरायल के हमलों का शिकार होकर तबाह हो चुका है। युद्ध विराम की कोई सूरत वहां नहीं बन रही है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू हमास को खत्म करने की कसम में मासूम बच्चों को मारने से भी बाज़ नहीं आ रहे। जिस तरह कंस अपने प्राणों की रक्षा के लिए देवकी के नवजात बच्चों को पटक कर मार देता था, ठीक वैसा ही काम इस समय फिलीस्तीन में किया जा रहा है और दुनिया के ताकतवर नेता कहलाने का घमंड करने वाले लोग मुंह में दही जमा कर बैठे हैं।
लेकिन प्रियंका गांधी लगातार इजरायल का खुल कर विरोध कर रही हैं। राजदूत अबू जाज़ेर से भी उन्होंने कहा कि मैं हर उस मां के प्रति संवेदना व्यक्त करती हूं जिसने अपना बच्चा खोया है। वहीं फिलीस्तीनी राजदूत ने भी फिलीस्तीन अधिकारों को मजबूत करने की पहल में भारत के ऐतिहासिक योगदान को याद किया। इस मुलाकात में इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को भी याद किया गया। फिलीस्तीन राजदूत का यूं प्रियंका गांधी को बधाई देने पहुंचने का अर्थ है कि फिलीस्तीन भविष्य में भी कांग्रेस की भूमिका को रेखांकित कर रहा है। ये और बात है कि मौजूदा निजाम में भाजपा के नेताओं के लिए इजरायल आदर्श बना हुआ है।
असम में शहीद दिवस के एक कार्यक्रम में सोनितपुर पहुंचे मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि 'ऐतिहासिक रूप से हमारी सीमाएं बांग्लादेश, म्यांमार और पश्चिम बंगाल के साथ साझा होती हैं। हम (असमिया लोग) 12 जिलों में अल्पसंख्यक हैं। हमें इजरायल जैसे देशों के इतिहास से सीखना होगा कि कैसे ज्ञान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके और अदम्य साहस के साथ, दुश्मनों से घिरे होने के बावजूद भी यह एक मजबूत देश बन गया है। तभी हम एक जाति (समुदाय) के रूप में जीवित रह सकते हैं।' इस मौके पर मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि असम आंदोलन असमिया लोगों की पहचान की रक्षा के लिए था। लेकिन हमें यह स्वीकार करना होगा कि ख़तरा ख़त्म नहीं हुआ है। हर दिन, जनसांख्यिकी बदल रही है, हर दिन स्वदेशी लोग भूमि अधिकार खो रहे हैं। गौरतलब है कि असमिया समाज की सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिए 1979 से 1985 तक असम आंदोलन चला था, जो 15 अगस्त 1985 को केंद्र सरकार के साथ हुए एक समझौते के साथ खत्म हुआ, इसे असम समझौते के तौर पर जाना जाता है।
असम के मुख्यमंत्री अब उसी आंदोलन की याद फिर से जनता को दिलाते हुए आगाह कर रहे हैं कि खतरा खत्म नहीं हुआ है और इसमें वे जिस तरह इजरायल का उदाहरण पेश कर रहे हैं, उससे जाहिर होता है कि वे शांति के महत्व को नकार रहे हैं।
देश देख रहा है कि मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच शुरु हुए हिंसक संघर्ष में किस तरह एक हंसता-बसता राज्य तबाह हो गया है। डेढ़ साल बाद भी वहां शांति की कोई सूरत नहीं बन रही। न ही केंद्र सरकार इसमें कोई जिम्मेदारी पूरी करती दिख रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने तो हाल में ये कह दिया कि पूर्वोत्तर में इस समय अभूतपूर्व शांति है। शायद उन्हें मणिपुर दिख नहीं रहा, या उन्होंने अब उसे भारत का हिस्सा मानना ही छोड़ दिया है। मणिपुर को मोदी सरकार की विभाजनकारी नीति ने पूरी तरह झुलसा दिया है और अब भी भाजपा के नेता शांति की बात न कर भड़काने वाले बयान दे रहे हैं।
हिमंता बिस्वासरमा ने बांग्लादेश, म्यांमार के साथ प.बंगाल का जिक्र करके सीधे दुश्मन से तुलना की, जो बताता है कि उनका विश्वास विभाजनकारी और युद्धोन्मादी राजनीति में है। अपने पड़ोसी देशों को सीधे दुश्मन करार देना क्या मोदी सरकार की नीति में भी है, यह स्पष्टीकरण केंद्र को देना चाहिए। क्योंकि प.बंगाल में नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ एक विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया, यह प्रदर्शन बांग्लादेश की सीमा से लगे बशीरहाट में हिंदू संगठनों ने आयोजित किया था। इसमें भाषण देते हुए सुवेंदु अधिकारी ने कहा कि- 'हम बांग्लादेश पर निर्भर नहीं हैं। बांग्लादेश हम पर निर्भर है' अगर हम वहां 97 प्रोडक्ट्स नहीं भेजेंगे तो आपको चावल और कपड़े नहीं मिलेंगे। अगर हम झारखंड में पैदा हो रही बिजली बांग्लादेश नहीं भेजेंगे तो 80प्रश गांव में लाइट नहीं जलेगी।' इतनी धमकी मानो पर्याप्त नहीं थी कि श्री अधिकारी बांग्लादेश पर सीधे युद्ध की चेतावनी ही दे दी, उन्होंने कहा कि 'हासीमारा में 40 राफेल एयरक्रॉफ्ट तैनात हैं। सिर्फ दो विमान भेजने से काम हो जाएगा।'
भारत की विदेशनीति हमेशा शांति को तरजीह देने की रही है। हमने कभी किसी पर खुद से हमला नहीं किया, लेकिन यहां भाजपा के एक विधायक सीधे पड़ोसी देश को हमले की धमकी दे रहे हैं, व्यापारिक संबंध खत्म करने की चेतावनी दे रहे हैं। तो मोदी सरकार को यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय का जिम्मा जिन्हें सौंपा गया है, क्या उन्होंने सुवेंदु अधिकारी को इस तरह के वक्तव्य देने के लिए अधिकृत किया है, क्या भारत की विदेश और रक्षा नीति अब भाजपा की सुविधा के मुताबिक चलेगी। सुवेंदु अधिकारी ने तो बांग्लादेश की मोहम्मद युनूस सरकार को अवैध और तालिबानी बता दिया, साथ ही यह भी कहा कि शेख हसीना ही वहां की वैध प्रधानमंत्री हैं, वो ढाका लौटेंगी और मोहम्मद युनूस को उन्हें सैल्यूट करके रिसीव करना होगा।
बांग्लादेश में शेख हसीना को जिस तरह अपदस्थ किया गया, उसका समर्थन भारत ने नहीं किया और शेख हसीना को राजनैतिक शरण देकर सच्चे मित्र और पड़ोसी का धर्म भी निभाया। मोदी सरकार इसके लिए प्रशंसा की पात्र है। लेकिन अब जबकि वहां मोहम्मद युनूस के नेतृत्व में सरकार का गठन हुआ है, तब इस तरह की टिप्पणियां साफ तौर पर वहां के आंतरिक मामलों में दखल देना है। अल्पसंख्यक कहीं भी हों, किसी भी देश में हों, किसी भी धर्म के हों, उनके अधिकारों की हर हाल में रक्षा होनी चाहिए और उन पर अत्याचार हो तो उसकी आलोचना भी स्वाभाविक है। लेकिन यहां पर सुवेंदु अधिकारी हिंदुत्व की भावनाओं को भुनाने का अतिरेक करते दिख रहे हैं।
अब यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निर्भर करता है कि वह अपने बड़बोले नेताओं को किस तरह संयम का पाठ पढ़ाते हैं। चुनावों के वक्त हिंदू-मुसलमान करने का खेल तो भाजपा खेलती ही है और तब उसका जवाब देने के लिए विपक्ष भी मौजूद रहता है। लेकिन पड़ोसी देशों के साथ कूटनीतिक, राजनैतिक शिष्टाचार का पालन करना होता है, वहां धार्मिक विभाजन का खिलवाड़ देश के लिए दूरगामी तौर पर घातक साबित होगा। और चलते-चलते एक सुझाव, भाजपा ठंडे दिमाग से सोचे कि फिलीस्तीन के राजदूत प्रियंका गांधी से मिलने क्यों पहुंचे। उन्हें कांग्रेस की उपयोगिता और इस देश को बनाने में कांग्रेस के योगदान का एहसास हो जाएगा।