श्रम संहिताएं शोषण का नया औजार

केंद्र सरकार ने शुक्रवार को एक अधिसूचना जारी कर चार श्रम संहिताएं लागू कर दी हैं;

By :  Deshbandhu
Update: 2025-11-23 21:42 GMT

केंद्र सरकार ने शुक्रवार को एक अधिसूचना जारी कर चार श्रम संहिताएं लागू कर दी हैं। इनमें से मजदूरी संहिता 2019 में संसद ने पारित की थी। अन्य तीनों संहिताएं सामाजिक सुरक्षा संहिता, औद्योगिक संबंध संहिता और व्यवसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशाएं संहिता 2020 में संसद में पारित की जा चुकी हैं। लेकिन इसके बाद इन्हें लागू करने पर कोई बात नहीं हुई, तो समझा गया कि इन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। 2024 में मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल भी खत्म हो गया। फिर चुनाव में जीत कर नरेन्द्र मोदी ने तीसरा कार्यभार संभाला, उसके बाद भी इन श्रम संहिताओं पर कोई बात नहीं हुई। अब यकायक मोदी सरकार ने इन्हें लागू करने की अधिसूचना जारी कर सबको चौंका दिया। सरकार इस फैसले को कर्मचारियों और मज़दूरों के हित में बता रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, 'आज, हमारी सरकार ने चार लेबर कोड लागू कर दिए हैं। यह आज़ादी के बाद मज़दूरों लिए सबसे बड़े और प्रगतिशील सुधारों में से एक है। यह हमारे कामगारों को बहुत ताक़तवर बनाता है। इससे नियमों का पालन भी काफ़ी आसान हो जाएगा और यह 'ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस' को बढ़ावा देने वाला है।'

प्रधानमंत्री ने इन्हें आजमाए बिना ये तो कह दिया कि ये मजदूरों के सबसे प्रगतिशील सुधारों में से एक हैं, लेकिन ये नहीं बताया कि पिछले कार्यकाल में इन सुधारों को लागू करने से उन्हें किसने रोका था और अब अचानक इन्हें लागू क्यों किया गया। ध्यान रहे कि जिस समय इन संहिताओं को पारित कराया गया, वह कोरोना महामारी का दौर था। जिसने नोटबंदी के बाद त्रस्त जनता की कमर बुरी तरह तोड़ दी थी। लाखों लोग बेघर और बेरोजगार हो गए थे। तब नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का लुभावना नारा दिया था। अभी श्रम संहिताओं को लागू करते वक्त फिर इसी आत्मनिर्भर भारत की बात ही कही जा रही है। मगर मजदूर संगठन अब भी यह नहीं मान रहे हैं कि इनसे मजदूरों का भला होगा। पांच साल पहले भी उन्होंने इसका विरोध किया था, और वे अब भी यही कह रहे हैं कि यह पूंजीपतियों के हितों को देखते हुए बनाए गए हैं।

श्रम संहिता के ख़िलाफ़ इंटक, एटक, एचएमएस, सीआईटीयू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, एईडब्लूए, एआईसीसीटीयू, एलपीएफ़ और यूटीयूसी जैसे मज़दूर संगठनों ने 26 नवंबर को देशभर में विरोध प्रदर्शन का $फैसला भी किया है। वहीं कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, 'मज़दूरों से जुड़े 29 मौजूदा क़ानूनों को 4 कोड में री-पैकेज किया गया है। इसका किसी क्रांतिकारी सुधार के तौर पर प्रचार किया जा रहा है, जबकि इसके नियम अभी तक नोटिफ़ाई भी नहीं हुए हैं। उन्होंने सवाल खड़े किए हैं, 'लेकिन क्या ये कोड भारत के मज़दूरों की न्याय के लिए इन 5 ज़रूरी मांगों को हक़ीक़त बना पाएंगे?

1.मनरेगा समेत पूरे देश में हर किसी के लिए 400 रुपये की न्यूनतम मज़दूरी

2. 'राइट टू हेल्थ' क़ानून जो 25 लाख रुपये का हेल्थ कवरेज देगा

3. शहरी इलाक़ों के लिए एम्प्लॉयमेंट गारंटी एक्ट

4. सभी असंगठित श्रेत्र के मज़दूरों के लिए पूरी सोशल सिक्योरिटी, जिसमें लाइफ़ इंश्योरेंस और एक्सीडेंट इंश्योरेंस शामिल है।

5. प्रमुख सरकारी क्षेत्रों में कॉन्ट्रैक्ट वाली नौकरी पर रोक।

देखना होगा कि मोदी सरकार इन सवालों के जवाब देती है या इन्हें अनदेखा कर देती है। वैसे सरकार का दावा है कि साल 2019 के वेज कोड से कामगारों को न्यूनतम मज़दूरी की गारंटी मिल सकेगी और हर पांच साल में न्यूनतम मज़दूरी की समीक्षा की जाएगी। लेकिन जिस देश में साल में कई बार महंगाई के झटके लगते हैं, वहां मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी तय करने के लिए पांच साल क्या ज्यादा लंबा वक्त नहीं है। सरकार का यह भी दावा है कि इससे सभी कामगारों को समय पर वेतन मिलने की गारंटी भी दी जाएगी और महिलाओं और पुरुषों को समान मेहनताना मिल सकेगा। एक छोटे से योगदान के बाद सभी कामगारों को ईएसआईसी के हॉस्पिटल और डिस्पेंसरी में चिकित्सा सुविधा मिल सकेगी और यह सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने के लिहाज़ से काफ़ी अहम होगा।

अच्छी बात है कि इन संहिताओं में इस तरह के प्रावधान हैं, लेकिन महिलाओं को समान वेतन के साथ ही रात में काम के लिए बुलाने की भी छूट दी गई है। बेशक इसमें महिलाओं की सहमति जरूरी होगी, लेकिन इसके बावजूद महिला शोषण के खतरे बढ़ जाएंगे। नयी श्रम संहिता में श्रमिकों को हड़ताल की अनुमति नहीं है, चाहे उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाए, चाहे पगार कम कर दी जाए, वे अपने हक के लिए संगठित होकर खड़े नहीं हो पाएंगे।

गौरतलब है कि भारत में मज़दूर संगठनों ने लंबी लड़ाई के बाद कामगारों के हित में 44 क़ानून बनवाए थे। जिनमें काम के निर्धारित घंटे, श्रम संगठन बनाना, श्रमिकों के हितों के लिए सामूहिक तौर पर सौदेबाज़ी कर पाने की क्षमता वग़ैरह शामिल थे। लेकिन मोदी सरकार में इन सब ख़त्म कर दिया गया है। अहम बात यह है कि संहिता और क़ानून में फ़र्क होता है। क़ानून में सज़ा का प्रावधान होता है, जबकि संहिता में कंपनी/फ़ैक्टरी मालिकों पर ज़ुर्माने का प्रावधान रखा गया है।

कुल मिलाकर श्रम सुधारों के नाम पर उद्योगपतियों की मनमानियों को आसान करने का रास्ता मोदी सरकार ने बनाया है।

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